प्रभाती
प्रातः समिरूँ अक्षरातीत , श्याम श्यामाजी साथ रे ॥
प्रथम पाट सातों घाट, दौ पुल रेति पाल रे ।
सोर तेर झुंड नव देहुरियाँ, टापू निज ताल रे ।१
...
चौबीस हाँस जवेरोंकी नेहेरें, मानिक मोहोल अपार रे ।
बन मोहोल नेहेरोंके आगे , हार हवेली चार रे ।२
गिरद रांग आठों सागर, पशु पंखी कै जात रे ।
अन्न-वन मेवा फूल नूर बाग, चेहेबच्चे कै भांत रे ।३
लाल चबूतरा खडोकली ताडवन, पुखराजी आकासी रे ।
हजार गुर्ज चाँदनी सोहें, खेलत वाके वासी रे ॥४
पुखराजी ताल चार घडनाले, गिरत सोले चादरें खासी रे ।
अधबीच बंगला मूल कुंड सोहे, ढपी खुली जमुना जासी रे ॥५
बट केल दोऊ पुल अरस परस, शोभित सातों घाट रे ।
बीच पाट चान्दनी सोहे, बारह थम्भ झलकात रे ॥६
चान्दनी चौक में हरे लाल दरखत , सौ सीढी ऊपर द्वार रे ।
छ: छ: हजार मन्दिर दौ हारें, अंदर हार हवेली चार रे ॥७
गोल हवेली चौंसठ थम्भ, विध विध रंग अपार रे ॥
तले गिलम ऊपर चन्द्रवा, शोभा चारों द्वार रे ॥८
बारह हजार खिलवत बैठीं, संग धनीजीके पास रे ।
जुगल स्वरूप चरनकी आस, राखत दयादास रे ॥ ९
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