खेल देखाऊं इन भांत का, जित झूठैमें आराम।
झूठे झूठा पूजहीं, हक का न जानेें नाम।।२२
सब मिल साख ऐसी दई, जो मेरी आतम को घर धाम ।
सनमंध मेरा सब साथसों, मेरो धनी सुन्दर वर स्याम ।।
इन खसम के नाम पर, कै कोट बेर वारों तन।
टूक टूक कर डार हूं, कर मनसा वाचा करमन।। 7
ऐसे धामधनीके नाम पर मैं मन, वचन और कर्मसे अपने शरीरको करोड.ों बार टुकड.े-टुकड.े कर सर्मिपत कर दूँ.
प्रकरण ९१ kirantan
यों चाहिए मोमिन को, रूह उडे सुनते हक नाम।
बेसक अरस से होए के, क्यों खाए पिए करे आराम।।१३९
नाम लेत इन सरूप को, सुपन देह उड जाए।
जोलों रूह ना इसक, तोलों केहेत बनाए।।११५
Mohamad = Shyam swaroop
लिखी अनेकों बुजरकियां, पैगंमरों के नाम।
ए मुकरर सब महंमदपें, सो महंमद कह्या जो स्याम।।३7
बडी मत सो कहिए ताए, श्रीकृस्नजीसों प्रेम उपजाए ।
मतकी मत तो ए है सार, और मतको कहूं विचार ।।५
बिना श्रीकृस्नजी जेती मत, सो तूं जानियो सबे कुमत ।
कुमत सो कहिए किनको, सबथें बुरी जानिए तिनको ।।६
मोटी मत वल्लभ धणी करे, ते भवसागर खिण मांहें तरे।
तेहने आडो न आवे संसार, ते नेहेचल सुख पामे करार।।८
मोटी मत ते कहिए एम, जेहना जीवने वल्लभ श्रीक्रस्न।
मतनी मत तां ए छे सार, वली बीजी मतनो कहुं विचार।।५
एह विना जे बीजी मत, ते तुं सर्वे जाणे कुमत।
कुमत ते केही कहेवाय, निछाराथी नीची थाय।।६
अक्षरातीत श्रीकृष्णमें प्रेम रखने वाली बुद्धिके अतिरिक्त जितनी भी अन्य मायावी बुद्धियाँ हैं उन्हें तुम कुबुद्धि समझना. कुबुद्धि उसे कहा जाता है जो सर्वाधिक नीच और हलके विचार वाली हो.
प्रकरण २१ श्री प्रकाश ((गुजराती))
नाम मेरा सुनते, और सुनत अपना वतन।
सुनते मिलावा रूहों का, याद आवे असल तन।।४९
झूठे झूठा पूजहीं, हक का न जानेें नाम।।२२
सब मिल साख ऐसी दई, जो मेरी आतम को घर धाम ।
सनमंध मेरा सब साथसों, मेरो धनी सुन्दर वर स्याम ।।
इन खसम के नाम पर, कै कोट बेर वारों तन।
टूक टूक कर डार हूं, कर मनसा वाचा करमन।। 7
ऐसे धामधनीके नाम पर मैं मन, वचन और कर्मसे अपने शरीरको करोड.ों बार टुकड.े-टुकड.े कर सर्मिपत कर दूँ.
प्रकरण ९१ kirantan
यों चाहिए मोमिन को, रूह उडे सुनते हक नाम।
बेसक अरस से होए के, क्यों खाए पिए करे आराम।।१३९
नाम लेत इन सरूप को, सुपन देह उड जाए।
जोलों रूह ना इसक, तोलों केहेत बनाए।।११५
Mohamad = Shyam swaroop
लिखी अनेकों बुजरकियां, पैगंमरों के नाम।
ए मुकरर सब महंमदपें, सो महंमद कह्या जो स्याम।।३7
बडी मत सो कहिए ताए, श्रीकृस्नजीसों प्रेम उपजाए ।
मतकी मत तो ए है सार, और मतको कहूं विचार ।।५
बिना श्रीकृस्नजी जेती मत, सो तूं जानियो सबे कुमत ।
कुमत सो कहिए किनको, सबथें बुरी जानिए तिनको ।।६
मोटी मत वल्लभ धणी करे, ते भवसागर खिण मांहें तरे।
तेहने आडो न आवे संसार, ते नेहेचल सुख पामे करार।।८
मोटी मत ते कहिए एम, जेहना जीवने वल्लभ श्रीक्रस्न।
मतनी मत तां ए छे सार, वली बीजी मतनो कहुं विचार।।५
एह विना जे बीजी मत, ते तुं सर्वे जाणे कुमत।
कुमत ते केही कहेवाय, निछाराथी नीची थाय।।६
अक्षरातीत श्रीकृष्णमें प्रेम रखने वाली बुद्धिके अतिरिक्त जितनी भी अन्य मायावी बुद्धियाँ हैं उन्हें तुम कुबुद्धि समझना. कुबुद्धि उसे कहा जाता है जो सर्वाधिक नीच और हलके विचार वाली हो.
प्रकरण २१ श्री प्रकाश ((गुजराती))
नाम मेरा सुनते, और सुनत अपना वतन।
सुनते मिलावा रूहों का, याद आवे असल तन।।४९
No comments:
Post a Comment