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Monday, April 9, 2012

श्री कृष्ण महा मंत्र "निजनाम" (श्री षटत्रुतु ग्रन्थ)

श्री षटत्रुतु ग्रन्थ :-

पर्व त्योहार किसी भी धार्मिक समाज की आध्यात्मिक शक्ति के मापक होते है। समाज का चरित्र और उसका सांस्क्रुतिक दर्शन इन त्योहारोके माधय्म से जलकता और प्रवाहित रहता है। सुन्दरसाथ धर्म - संस्क्रुत मे इन पर्वो और त्योहारो की बारह्मासी प्रक्रिया अपने परमात्माको पुन: पाने के लिए लालायित होकर दिन रात विरह मे तडपने लगती है। इसीलीए षटत्रुतु मे ''बारह मासी '' वर्षा, शिशिर, शरद, हेम, वस...न्त और ग्रीष्म-पर्व-त्योहारो के माध्यम से विरह को चरमसीमा तक पहुंचा देती है। इस ग्रन्थ मे विरह की बारह मासी प्रकिया को संवत्सर चक्र के सावन मास से आरम्भ कर अषाढ मास तक छ: त्रुतुओ मे सम्पन्न किया है। इन पर्व - त्योहारो मे श्री क्रिष्ण की दिव्य लीलाओ का स्मरण कर विरहिणी ब्रह्मात्माये अपने प्रियतम के बिना आकुल व्याकुल दिखाई देती है। श्री क्रिष्ण जन्माष्टमी की स्म्रुति इस विरह की स्थिती मे असहनिय पीडादायक सिद्ध होती है:-

वालाजी रे श्रावण मास नी अष्टमी, कांई क्रिष्ण पक्ष नी जेह ॥

इसी प्रकार राधा अष्टमी के अवसर पर:-

वालाजी रे अष्टमी भादरवातणी, कांई शुकल पक्ष नी रात ।

सदगुरु धाम गमन के समय - वालाजी रे भादरवामासनी चतुरदसी ।

इस प्रकार उदाहरण के लिए, होली कके त्योहार पर विरहिणी ब्रह्मात्माओ की आकुलता इसी से मालुम होती है कि इस पर्व पर श्री क्रिष्ण लीला की स्म्रुति मे विरह गीत गाकर अपने प्रियतम के बीना उनका मनोरथ निरर्थक सिद्ध होता है:-

एणे समय अबीर गुलाल उछालिया,
चोबा चंदन केसर कचोले भरिया ।
नाहो नारी रमे रे फ़ागणीए मलिया,
हो स्याम पीउ पीउ करी रे पुकारू ॥ (षटत्रुतु बारहमासी २/२)

इसी प्रकार शरद पूर्णिमा की चांदनी कितनी सुन्दर और शीतल होती है-जिस महिमावान रात्रि मे अनादि अक्षरातीत श्री क्रिष्ण रास लीला की है, किन्तु इस महारास की स्म्रुति मे श्री क्रिष्ण बिना सुन्दरसाथ विरहिन को चैन कहा? इस रास की रात मे भी प्रियतम ने अपनी आत्माओ की सुधी नही ली, नही तो उन्हे अवश्य बुला लेते:-

वालाजी रे पूनम रात नो चांदलो, कांई वन सोभे अपार ।
रासनी रातनो ओछव, मूने कां न तेडी आधार ॥ (षटत्रुतु २/१४)

अस्तु, निजानंद सम्प्रदाय के सभी पर्व- त्योहार प्राय: श्री क्रिष्न लीला से सम्बन्ध्ति है। होली, दीपावली, बसन्त, आदि सभी त्योहार क्रिष्ण लीला के गीतो को गाकर सम्पन्न होते है। यही कारण है की मुक्तिपीठ श्री पद्मावतीपुरी धाम मे ये सभी त्योहार प्राचिन परम्परागत पवित्र प्रथा के अनुसार श्री क्रिष्ण लीला के राग रागनियो के माध्यम से श्रद्धा पूर्वक प्रतिवर्ष सम्पन्न होते है।

प्रणामजी
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