श्री रास ग्रन्थ:-
सबको सार कह्यो ए जो रास, ए जो इन्द्रावती मुख हुओ प्रकास ॥ (प्रकास ३३/२५)
इस प्रकार श्री इन्द्रावती के मुखारविन्द से बेहद कि अद्वैत वाणी श्री रास प्रकट हुई, जिनके साथ समस्त ब्रह्ममुनि सुंदरसाथ ने परमधाम के अखंड सुख का रस महारास लीला के द्वारा सब प्रकार से पिया :-
ए वानी बेहड प्रगटि, इन्द्रावती मुख।
बोहोत बिधें हम रस पिए, बेहद के सुख॥ (प्रकास ३१/९४)
महामति श्री प्राणनाथ जी कहते... है कि इस नश्वर ब्रह्माण्ड के जीव अखंड परमधाम मे नित्य निरंतर होनेवाली रास लील के आनंद को कैसे आत्मानुभव कर सकते है। उनके लिए तो अनादि अक्षरातीत श्री क्रिष्ण के साथ चिन्मय अखंड रास मे रमण करने वाली ब्रह्मात्माए कौन-क्या है-एक गोपनिय रहस्य ही है-जो ब्रह्मात्माए रास के बाद परम्धाम पहुन्चकर प्रभात के समय पुन: इस संसार मे प्रगत हुई:-
क्या जाने हद के जीवदे, बेहद की बातें।
रास में खेले अखंड, इत उठे प्रभातें॥ (प्रकास ३१/५०)
श्री रास लीला के प्रणयन का उद्रेश्य -
अनादि अक्षरातीत श्री क्रिष्ण ने परमधाम मे नित्य होनेवालि 'प्रेम विलास' की लीला को अक्षर ब्र्हम के ह्रदय मे अखंड करने के लिए श्री रास लीला की है-
अक्षर मन उपजी ए आस, देखो धनीजी को प्रेम विलास। (प्रक्टवानी)
दो भुजा सरूप जो स्याम, आतम अखयर जोस धनी धाम।
ए खेल देख्या सैया सबन, हम खेले धनी भेले आनंद धन॥
बाल चरित्र लीला जोबन, कै विध सनेह किए सैयन।
कै लिए प्रेम विलास जो सुख, सो केते कहु या मुख॥ (प्रकास ३७/२४,२५)
महारास में परमधाम कि श्याम - श्यामा जी की जोडी श्री राधा क्रिष्ण के स्वरूप में इतनी सुन्दर और शोभायमान है कि उनके मुखारर्विंद की शोभा नित्य दर्शनीय है। वे रास रमण के समय परस्पर नित्य आनंद विलास कि लीला कर रहे है:-
प्रणामजी
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