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श्री किरन्तन

राग श्री मारू
पेहेले आप पेहेचानो रे साधो, पेहेले आप पेहेचानो ।
बिना आप चीन्हें पार ब्रह्मको, कौन कहे मैं जानो।।१
महामति कहते हैं, हे साधुजन ! सर्व प्रथम स्वयं (आत्मा) को पहचानो, क्योंकि स्वयंको पहचाने बिना कौन कह सकता है कि मैंने परब्रह्म परमात्माको पहचान लिया है.
O seeker know thyself first. Who are you? Body is connected to Ego and Soul to Lord (eternal Brahma). Mind thinks that we are the body and ego as reality which is an illusion. We are actually that is blissful, eternal, everlasting, imperishable, beyond the mind and physical senses can experience. Become conscious of your original self. Realise your real self without it one cannot proclaim that they know the Supreme Lord.
पीछे ढूंढो घर आपनों, तब कौन ठौर ठेहेरानो।
जब लग घर पावत नहीं अपनों, तोलों भटकत फिरत भरमानो ।।२

यदि शरीर छोड.नेके पश्चात् अपने (आत्माके) मूल घरको ढूँढ.ने लगोगे, तब किस स्थानमें ठहर पाओगे ? क्योंकि जब तक आत्मा अपने मूल घरको प्राप्त नहीं कर लेती, तब तक भ्रममें पड.कर भवसागरमें ही भटकती रहती है.

Once the soul leaves the body, where will you dwell? Untill you effort to find your original home the Paramdham, the soul will keep wandering in the wilderness of the world.

पांच तत्व मिल मोहोल रच्यो है, सो अंत्रीख क्यों अटकानो ।
याके आसपास अटकाव नहीं, तुम जागके संसे भांनो ।। ३

(पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इन) पाँचों तत्त्वोंको मिलाकर इस नश्वर ब्रह्माण्डरूपी महलकी रचना की गई है. यह अन्तरिक्षमें कैसे अटक रहा है ? इसके आसपास या ऊपर नीचे कोई सहारा तक नहीं है. हे सज्जन वृन्द ! स्वयं जागृत होकर इस संशयका निवारण करो.

With the five elements (earth (solid), water (liquid), fire (energy), air (gas) and space(it is something which permeates the whole entire universe, science once called it ether but there is no specific term in English or Western Scientific language), this whole physical world that we see is created. How does it hang in the space? If you check there is nothing to support such huge physical forms. What is that force which is holding the entire universe? Who is the creator of the laws of matter? Awaken your inner self and realize the answer from within and clear the clouds of confusion.

नींद उडाए जब चीन्होंगे आपको, तब जानोगे मोहोल यों रचानो ।
तब आपै घर पाओगे अपनों, देखोगे अलख लखानो ।।४

हे साधुजन ! अज्ञाानरूपी निद्राको दूर कर जब स्वयंको पहचानोगे, तब ज्ञाात होगा कि इस ब्रह्माण्डरूपी महलकी रचना किस प्रकार हुई है ? तब तुम्हें स्वयं अपने मूल घर परमधामकी प्राप्ति (अनुभूति) हो जाएगी तथा पूर्णब्रह्म परमात्मा श्रीराजजीके दर्शन भी होंगे.

Once your amnesic sleep is over and you have known the self then you will understand how the whole physical world is created. Then you will find your home and also see the Lord.

बोले चाले पर कोई न पेहेचाने, परखत नहीं परखानो ।
महामत कहें माहें पार खोजोगे, तब जाए आप ओलखानो ।।५

अनेक लोगोंने परमात्माके विषयमें ज्ञाानोपदेश दिया तथा अनेक लोगोंने परमात्माकी प्राप्तिके लिए साधनाएँ भी कीं किन्तु किसीने भी उन्हें नहीं पहचाना. इस प्रकार प्रयत्न करनेपर भी पहचान योग्य परब्रह्म परमात्मा पहचाने नहीं गए. महामति कहते हैं, अन्तर्मुख होकर जब परम तत्त्वको ढूँढ.ोगे, तब आत्मा और परमात्माकी स्वतः पहचान हो जाएगी.

Lots of people speak about the Lord but no one has actually realized or known Him as He cannot be known. Mahamati says seach within beyond the worldly perceptions then you will recognize him and realize him.

प्रकरण १ चौपाई ५
राग श्री मारू

बिंदमें सिंध समाया रे साधो, बिंदमें सिंध समाया ।
त्रिगुन सरूप खोजत भए विसमए, पर अलख न जाए लखाया ।।१
हे साधुजन ! इस बिन्दुरूपी झूठी मायामें विराट शक्तिशाली सिन्धुरूपी परमात्मा समाया हुआ प्रतीत होता है. सत रज और तम इन तीनों गुणोंके अधिष्ठाता देवता-ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी सिन्धुरूपी परमात्माको खोजते-खोजते चकित हो गए हैं तथापि वे अलख परमात्मा दृष्टिगोचर नहीं हुए.

This human body is a drop compared the vastness of the entire universe where as the Creator is the ocean. But O seeker, understand in this droplet the entire ocean is realized. Inside the physical entity (droplets) contains the oceanic entity the soul which has all the property of the Creator himself. The soul and the Creator are the same stuff and once realized the soul becomes one with the Lord. The lords of three gunas(qualities) sat, raj and tamas the Brahma-Vishnu-Mahesh have searched and are amazed as the Lord cannot be seen.

वेद अगम केहे उलटे पीछे, नेत नेत कर गाया।
खबर न परी बिंद उपज्या कहां थें, ताथें नाम निगम धराया ।।२

वेद भी परब्रह्मकी खोज करनेके उपरान्त उसे अगम्य (पहुँचसे परे) कहकर 'नेति नेति' (अन्त नहीं, अन्त नहीं) कहते हुए उलटे पीछे लौट गये. यह बिन्दुरूपी माया कहाँसे उत्पन्न हुई है, इसकी जानकारी न होनेसे उसका नाम निगम पड.ा.

The ancient Ved also tried to find the Lord and said Neti Neti (has no end) the whole cannot be known, they could not explain how these droplets of life have formed and named the Creator ‘Nigam’ who cannot be completely known.

असत मंडलमें सब कोई भूल्या, पर अखंड किने न बताया ।
नींदका खेल खेलत सब नींदमें, जागके किने न देखाया ।।३

इस असत्य मण्डल (नश्वर ब्रह्माण्ड अर्थात् भवसागर) में सभी लोग अपना मार्ग भूल गए हैं. अखण्ड अविनाशी परमात्माकी बात कोई नहीं करता. यह संसार स्वप्नका खेल है और सभी लोग अज्ञाानकी निद्रामें यहाँ विचरण कर रहे हैं, स्वयं जागृत होकर परमात्माके विषयमें किसीने भी मार्गदर्शन नहीं किया.

The seekers in this illusionary perishable world too have forgotten and cannot not tell the akhand (imperishable ,indivisible, whole, not changing reality) entire creation is a dream sport and everyone over here is also in the emnesic sleep and no one has been able to shake off the sleep and guide the people being fully awake.

सुपनकी सृस्टि वैराट सुपनका, झूठे सांच ढंपाया ।
असत आपे सो क्यों सत को पेखे, इन पर पेड न पाया ।।४

यह विराट ब्रह्माण्ड स्वप्नका बना हुआ है और इसकी समग्र सृष्टि भी स्वप्नकी ही है. इसलिए असत्यके विस्तारसे सत्य ढक गया है. मायावी जीव स्वयं स्वप्नके होनेके कारण सत्य परमात्माको कैसे देख सकते ? इस प्रकार उन्हें परम तत्त्व भी नहीं मिल सका.

The creation is of dream and the entire physical universe is of dream and the illusion has covered the truth. How can the untruth itself (the beings created in the dream) can uncover the ultimate truth the Lord. It is highly impossible these will ever find the reality.

खोजी खोजें बाहेर भीतर, ओ अंतर बैठा आप।
सत सुपने को पारथें पेखे, पर सुपना न देखे साख्यात ।।५

परमात्माको ढूँढ.नेवाले लोग इस विश्वमें पिण्ड-शरीरमें अथवा ब्रह्माण्ड (बाहर) में परमात्माको ढूँढ.ते हैं, परन्तु स्वयं परमात्मा तो आत्म स्वरूपसे अन्तरमें विराजमान हैं. सत्य आत्माएँ (ब्रह्मात्माएँ) पार परमधाममें रहकर इस स्वप्नरूपी झूठे संसारको देख रही हैं, परन्तु स्वप्नके जीव उन्हें देख नहीं पाते.

The seekers look for the Creator in this world like temples or outside like Heaven/Swarg but He is dwelling inside the self. The soul (true being) can witness this illusionary world but the ego conciousness (the perishable entity) cannot see the true form.
Wake up and recognize the world within where we may find the Supreme Lord Himself (imperishable, infinite, eternal, luminious, beautiful, bountiful, abundant supply, love, conscious living -chaitainya,energy, truth, always awake, witnessing). Do not go after the world without, it is just a reflection of world within.

भरमकी बाजी रची विस्तारी, भरमसों भरम भरमाना ।
साध सोई तुम खोजो रे साधो, जिनका पार पयाना ।।६

यह संसारका खेल मात्र भ्रमका विस्तार है. (यहाँ पर) भ्रमके जीव इसी भ्रमरूपी खेलमें भ्रमित हो रहे हैं. इसलिए हे साधुजन ! ऐसे तत्त्वदर्शी सद्गुरुकी खोज करो, जिसने भ्रान्तियोंसे मुक्त होकर पारका मार्ग प्राप्त किया हो.

The entire creation is of illusion and the illusionary beings are loitering aimlessly in this creation. O seeker of the truth! Search such a saint who can eliminate all the confusion and can guide you to the reality (beyond the senses can sense).

मृगजलसों जो त्रिषा भाजे, तो गुरु बिना जीव पार पावे ।
अनेक उपाए करे जो कोई, तो बिंदका बिंदमें समावे ।।

यदि मृगजल द्वारा तृषा शान्त हो सकती हो, तो सद्गुरुके ज्ञाानके बिना भी जीव पार पा सकता है (किन्तु यह तो सम्भव नहीं है). इसलिए कोई अनेक प्रयत्न ही क्यों न कर ले किन्तु बिन्दुरूप मायाके जीव मायामें ही समाहित हो जाते हैं.

The earthly being cannot find the beyond without a true guru just like one cannot quench the thirst seeing a mirage. One can try many ways to find the reality but the droplet of illusion will dissolve in the illusion.

देत देखाई बाहेर भीतर, ना भीतर बाहेर भी नाहीं।
गुरु प्रसादे अंतर पेख्या, सो सोभा वरनी न जाई।।८

ब्रह्माण्डमें चौदह लोकोंके अन्दर एवं बाहर जितने भी दृश्यमान पदार्थ हैं, उनमें परमात्मा नहीं है (मात्र परमात्माकी सत्ता है). सद्गुरुकी असीम कृपा द्वारा अन्तरमें उनके दर्शन हुए उनकी यह शोभा अवर्णनीय है.

I could not see the Lord inside out or outside in of the physical universe. By the grace of satguru, I could witness Him inside the self. I cannot describe in words the splendour and the joy of it.

सतगुरु सोई मिले जब सांचा, तब सिंध बिंद परचावे ।
प्रगट प्रकास करे पारब्रह्मसों, तब बिंद अनेक उडावे ।।९

ऐसे सच्चे सद्गुरु जब मिल जाते हैं, तब वे सिन्धुरूपी पूर्णब्रह्म परमात्मा और बिन्दुरूपी झूठी मायाकी पहचान करा देते हैं और पूर्णब्रह्म परमात्मा का साक्षात् अनुभव (दर्शन) करवाकर बिन्दुरूपी मायाके अनेक प्रपञ्चोंको उड.ा देते हैं.

When one meets the true satguru then only one can understand the infinite ocean being- the Lord and finite entity -the illusionary perishable body. He will enable one to experience Lord Almighty supreme and shall destroy lots of ignorance of the world.

महामत कहें बिंद बैठे ही उडया, पाया सागर सुख सिंध ।
अक्षरातीत अखंड घर पाया, ए निध पूरव सनमंध।।१०

महामति कहते हैं, सद्गुरुकी कृपा द्वारा अनायास (सहज) ही बिन्दुरूपी झूठी मायाके प्रपञ्च दूर हो गए हैं और सिन्धुरूप पूर्णब्रह्म परमात्माका अपार सुख प्राप्त हो गया. पूर्णब्रह्म परमात्मा अक्षरातीतके अखण्ड घर-परमधामकी प्राप्ति हो गई. यह अखण्ड निधि पूर्व सम्बन्धके कारण ही प्राप्त हुई.

Mahamati (the great mind) says by the Grace of satguru, the infinitisimally small worldly entity is lost and ocean of eternal bliss of the infinite is gained. I have found the Aksharateet Akhand (whole eternal infinte which is beyond the imperishable Akshar) abode and also have established the original relationship with the Lord.
प्रकरण २ चौपाई १५

राग केदारो

साधो भाई चीन्हो, सबद कोई चीन्हो।
ऐसो उतम आकार तोको दीन्हों, जिन प्रगट प्रकास जो किन्हों ।।१

हे साधुजन ! परमात्माकी पहचान करानेवाले शास्त्र वचनोंके रहस्यको समझो (इन शब्दोंका ज्ञाान प्राप्त कर अपनी अन्तरात्माको पहचानो). धामधनीने तुम्हें ऐसा श्रेष्ठ शरीर (मनुष्य देह) दिया है, जिसके द्वारा परमात्माका साक्षात् अनुभव किया जा सकता है.

O seeker! Understand the Reality enmeshed in the words of scriptures. You have got a human form which is the greatest amongst other living beings in which you can see the one who brought the light for us (you can see the Supreme)

मानषे देह अखंड फल पाइए, सो क्यों पाएके वृथा गमाइए।
ए तो अधखिनको अवसर, सो गमावत मांझ नींदर।।२

मनुष्य शरीरके द्वारा ही परब्रह्म परमात्मारूपी अखण्ड फल प्राप्त हो सकता है. ऐसे महामूल्यवान् मानव शरीरको प्राप्त कर उसे क्यों व्यर्थ गँवा रहे हो? यह अवसर तो आधे क्षणके लिए प्राप्त हुआ है, इसे अज्ञाानरूपी निद्रामें पड.कर व्यर्थ गँवा रहे हो.

The human body can achieve the indivisible, imperishable, eternal Supreme Godhead; after receiving such valuable form why do you let it waste for nothing. The opportunity granted at this moment which lasts only a split of a second, why do you waste in sleeping? Wake up Sundarsath and make best use of your time, achieve the love of Lord in this precious birth as a human being, this opportunity is only for few moments.

सबदा कहे प्रगट परवान, सबदा सतगुरसों करावे पेहेचान ।
सतगुरु सोई जो अलख लखावे, अलख लखे बिन आग न जावे ।।३

धर्मशास्त्रोंके (शब्दोंके) द्वारा यथार्थ ज्ञाान प्रकट होता है और वे धर्मशास्त्र ही सद्गुरुकी पहचान भी कराते हैं. जो पूर्णब्रह्म परमात्माकी वास्तविक परख करवाते हैं वे ही सद्गुरु कहलाते हैं. क्योंकि परमात्माकी पहचान हुए बिना अन्तर्दाह (त्रय ताप) नहीं मिटती है.

The words in the Scriptures say can describe Reality and it also guides you how to recognize the true guru. The true guru (satguru) is the one who can reveal the Supreme and without knowing the Supreme Truth the fire burning as the desire can never be extinguished.

सास्त्र ले चले सतगुरु सोई, वानी सकलको एक अरथ होई ।
सब स्यानांेकी एक मत पाई, पर अजान देखे रे जुदाई ।।४

धर्मग्रन्थोंके प्रमाणभूत सिद्धान्तोंके अनुरूप चलने वाले ही सद्गुरु हो सकते हैं. सब धर्मग्रन्थोंकी वाणी समान अर्थ धारण करती है (अर्थात् एक ही पूर्णब्रह्म परमात्माकी ओर संकेत करती है). वास्तवमें सब ज्ञाानीजनोंका अभिप्राय भी एक है, किन्तु धर्मग्रन्थोंके सिद्धान्तोंको न समझने वाले अज्ञाानीजन उनमें भिन्नता देखते हैं.

Remember the true Guru is the one who approves all the scriptures as all the teaching of all the scriptures of all the religions has one and one reality. And all the wise also hold one and only one truth it is the ignorant who see the differences and create conflicts.
Mahamti-Prannathji finds no conflict in any shastra scriptures, holy Quran and Bible. He said they all point to one Lord but they have hidden the Reality so only a true seeker could see. He tried hard to clarify the mysticism in all the shastras but look at Dunis! They have divided tartamsagar into Meherraj says, Indrawati says and Mahamati says and continue their conflict. What does Kuljam Swaroop Mean?

सास्त्रोंमें सबे सुध पाइए, पर सतगुरु बिना क्यों लखाइए ।
सब सास्त्र सबद सीधा कहे, पर ज्यों मेर तिनके आडे रहे ।।५

शास्त्रोंमें परमात्माकी सभी सुधि मिलती है, किन्तु बिना सद्गुरुके उसे किस प्रकार समझा जाए ? सर्वशास्त्रमें परमतत्त्वको समझनेके लिए सीधी और सरल बातें कही हैं परन्तु जिस प्रकार आँखके सामने केवल एक तिनका आ जानेसे पर्वत ढँक जाता है, उसी प्रकार मनमें व्याप्त भ्रान्तियोंसे सत्यज्ञाान छिप जाता है.

The scriptures have all the wisdom to understand the Reality the Supreme Truth but without a true guru how can one understand it. The words of scriptures are actually very straightforward, simple and easy to understand but like a tiny particle in the eyes can prevent a person to see even a huge mountain ahead so does the confusion and wrong perceptions hides the truth.

सो तिनका मिटे सतगुरुके संग, तब पारब्रह्म प्रकासे अखंड ।
सतगुरुजीके चरन पसाए, सबदों बडी मत समझाए।।६

सद्गुरुके समागम द्वारा जब यह भ्रान्तिरूपी तिनका दूर होगा, तभी परब्रह्मका अखण्ड प्रकाश दिखाई देगा. सद्गुरुके चरणोंके प्रताप (कृपा) से ही शास्त्रोंके शब्दोंमें निहित गूढ. रहस्य समझा जा सकता है.

The foreign particle of the eye i.e. the doubts, the confusion in the mind can be easily removed by a true guru and the Absolute, the Whole one that is not divisible, Supreme Lord of the beyond (paar Brahma) will shine upon you. Only with the grace of true Guru the hidden meaning of the words about Reality in scriptures will be revealed to your mind.

तब खोज सबदको लीजे तत्व, तौल देखिए बडी केही मत ।
जासों पाइए प्रानको आधार, सो क्यों सोए गमावे रे गमार ।।
इसलिए हे सज्जन वृन्द ! शास्त्रोंमें र्नििदष्ट वचनोंका मन्थन कर उनके तत्त्वज्ञाानको ग्रहण करो. विवेक पूर्वक तुलनात्मक दृष्टिसे देखो कि बड.ी बुद्धि (महामति) कौन हैं ? जिस मानव देह द्वारा प्राणाधार परमात्माकी प्राप्ति होती है, उसे अज्ञाान निद्रामें सोकर मूढ.ोंकी भाँति क्यों गँवा रहे हो ?

When you go through the scriptures measure with your wise mind(not ego) which one is better and the one that leads you to the Supreme and accept that and do not waste your precious opportunity sleeping like an idle idiot.

यामें बडी मतको लीजे सार, सतगुरु याहीं देखावें पार ।
इतहीं वैकुंठ इतहीं सुंन, इतहीं प्रगट पूरन पारब्रह्म।।८
ऐसेमें विवेक बुद्धि द्वारा बड.ी मति वालोंके ज्ञाानका सार ग्रहण करो. सद्गुरु यहीं पर (इसी संसारमें) पूर्णब्रह्म परमात्माके धामका साक्षात्कार कराते हैं. आत्म-जागृति होने पर यहीं वैकुण्ठ तथा शून्यका अनुभव होगा और यहीं पर पूर्णब्रह्म परमात्माका साक्षात्कार भी होगा.

Derive the truth out of the wise words. Take the the advice of wise mind and the true Guru who will be able to show you the beyond living in this world. And you will be able to see the Baikunth, Vacuum(emptiness) and the Supreme shall appear before you over here. (Sorry I could not do justice to Mahamati Prannath ji’s wani)

ए वानी गरजत मांझ संसार, खोजी खोज मिटावे अंधार।
मूढमति न जाने विचार, महामत कहे पुकार पुकार।।९
यह तारतम वाणी इस संसारमें गर्जना कर रही है. खोजनेवाले जिज्ञाासु ही खोजकर अपने हृदयके अज्ञाानरूप अन्धकारको दूर करते हैं. इसलिए महामति प्राणनाथजी पुकार-पुकार कर इसका रहस्य स्पष्ट कर रहे हैं. मूढ लोग इसका मूल्य न समझनेके कारण इस विषयमें विचार नहीं करते.

These words of the wisdom are roaring right in the middle of the world but only the seekers search can find it and destroy the darkness of ignorance in the heart. The fool can never understand it and will pay no heed to Mahamati’s persisting call.
All the efforts of Mahamati Prannath is to awaken us, show us the Truth, the Reality hidden under the words of mystics or scriptures. As per Mahamati Prannath only the true seeker (Brahma and Ishwari) can understand what he is talking about for others it is just another jargon of words to create division and conflicts.

“Wisdom is the fruit of communion; ignorance the inevitable portion of those who ‘keep themselves to themselves,’ and stand apart, judging, analyzing the things which they have never truly known ” Evelyn UnderHill
There must be a deep down seeking to know the truth, but egoist people are arrogant, they do not know what they are doing and harming themselves. Sometimes they hate when someone comes and tells them the truth.
There are some who pretend they know everything but they are far from the truth and if someone tries to make them understand they won't listen.
There are some actually know the truth but do not believe it and if a wise tries to explain to them they will say they know it and will not pay attention.
There are some who know the truth and believe it as well, but do not follow it, these type of people have all the knowledge stored to tell others but not themselves. Knowing the truth will do no good to them (They will not see God). All the above bundle of ego personalities lack the fundamental desire to taste the love of Lord, to unite with Him. They are busy preparing their role in the world, their position in society. Their mind is running wild in senses, the pleasures which are momentous are keeping them in the loop forever.
When their mind is turned towards themselves, when they turn their attention to the call of their soul they might change their course of doing.
But they neither listen to others nor try to understand, nor trust God and thus waste their lives. There is very little hope for such a person.

The wise are who are always seeking to understand the truth, they like the company who understands the truth and would like to listen more from each other. There is a mutual exchange of same truth in different flavour. Their live itself is a truth as they practice it on themselves. Lord resides in their heart. They become the light for other seekers.
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धंन धंन सखी मैं किए स्याम संग


धंन धंन सखी मेरे सोई रे दिन, जिन दिन पियाजीसों हुओ रे मिलन ।
धंन धंन सखी मेरे हुई पेहेचान, धंन धंन पीउ पर मैं भई कुरबान ।।१

हे ब्रह्मात्माओ ! जिस दिन सद्गुरु धनीके साथ मेरा मिलाप हुआ, वह दिन धन्य है. वह दिन भी धन्य है जिस दिन मैंने अपने धनीको पहचाना तथा उनपर स्वयंको सर्मिपत कर दिया.
O Souls, the day I united with my beloved is extremely blessed. The moment that I identified my beloved Lord is also very blessed and I am so grateful that I totally surrender myself to beloved Lord.

धंन धंन सखी मेरे नेत्र अनियाले, धंन धंन धनी नेत्र मिलाए रसाले ।
धंन धंन मुख धनीको सुन्दर, धंन धंन धनी चित चुभायो अंदर ।।२

मेरी नुकीली आँखें धन्य हैं क्योंकि उन्हें धनीजीके दिव्य चक्षुके दर्शन प्राप्त करनेका सद्बाग्य मिला. धनीजीका सुन्दर मुख कमल धन्य है क्योंकि वह मेरे हृदयमें स्थायीरूपसे अङ्कित हो गया है.
Blessed are my sharp eyes which met the blessed eyes of the Master which were full of nectar of love. I am so grateful that the beautiful face of the Master has impressed within my mind. I am so grateful that the heart within is pierced by the beauty of the face of Master.

धंन धंन धनी के वस्तर भूषन, धंन धंन आतम से न छोडूं एक खिन ।
धंन धंन सखी मैं सजे सिनगार, धंन धंन धनिएं मोकों करी अंगीकार ।।३

धनीजीके वस्त्राभूषण धन्य हैं, जिनकी शोभाका आनन्द लेनेके एक क्षणको भी मैं भूल नहीं सकती. हे सखी ! प्रियतम धनीको प्रसन्न करनेवाले मेरे शील, सन्तोष आदि शृङ्गार भी धन्य हैं और वह क्षण भी धन्य है, जब धामधनीने मुझे स्वीकारा है.
Blessed are the clothes/ornaments of the Master (atributes of the Master), my blessed soul will not forget for a moment. I am all adorned with such beauty(the real ornaments of within) that the Master has accepted me.

धंन धंन सखी मैं सेज बिछाई, धंन धंन धनी मोकों कंठ लगाई ।
धंन धंन सखी मेरे सोई साइत, धंन धंन विलसी मैं पीउसों आईत ।।४

धन्य है, धनीजीने मेरे हृदयरूपी शय्यामें विराजमान होकर मुझे कण्ठसे लगाया और धन्य बनाया. वह घड.ी भी धन्य है, जब मैंने अपने धनीसे मिलनका अपार सुख प्राप्त किया.
Oh Sakhi, I made bed and my beloved Master embraced me. (I prepared myself to surrender, got ready for the union and my beloved Lord accepted me). That moment is so auspicious and blessed when got I drenched in the joy that originated from the beloved Lord.

धंन धंन सखी मेरी सेज रसभरी, धंन धंन बिलास मैं कै विध करी ।
धंन धंन सखी मेरे सोई रस रंग, धंन धंन सखी मैं किए स्याम संग ।।५

हे सखी ! मेरी प्रेम-रससे भरी हुई हृदयरूपी शय्या धन्य है, जिस पर मैंने अपने प्रियतम धनीके साथ विभिन्न प्रकारके विलास किए. मैंने अपने रङ्गीले प्रियतम धनीके साथ रस-रङ्ग, आनन्द-विनोदके अखण्ड सुखोंका अनुभव किया, वे सभी खेल धन्य हैं.
How grateful my bed(heart within) is now full with nectar of love and how fortunate that Lord amused me in various ways. Now O my Sakhi I am colored in the color of beloved, How fortunate O my Sakhi that I united with Shyam.

धंन धंन सखी मोकांे कहे दिलके सुकन, धंन धंन पायो मैं तासों आनंदघन ।
धंन धंन मनोरथ किए पूरन, धंन धंन स्यामें सुख दिए वतन ।।६

धन्य है, सद्गुरु धनीने मुझसे अपने दिलकी बातें कीं जिससे मुझे अपार आनन्द हुआ. ऐसे श्यामसुन्दर स्वरूप सद्गुरु धन्य हैं, जिन्होंने मुझे परमधामके सुखोंका अनुभव करवा कर मेरी सम्पूर्ण मनोकामनाएँ पूर्ण कीं.
How grateful I am O Sakhi the beloved master opened His heart and I receieved extreme bliss. How blessed it is all my wishes are fulfilled as Shyam gave me the bliss of original abode.

धंन धंन सखी मेरे पीउ कियो विलास, धंन धंन सखी मेरी पूरी आस ।
धंन धंन सखी मैं भई सोहागिन, धंन धंन धनी मुझ पर सनकूल मन ।।7

हे सखी ! प्रियतम धनीने मेरे साथ आनन्द-विलास कर मेरी सभी आशाएँ पूरी कीं. इस प्रकार धनीने प्रसन्न चित्तसे मुझे सुहागिनी बनाया जिससे मैं धन्य-धन्य हो गई.
How blessed is my sports with my beloved and all my hopes and aspirations are fulfilled. O my Sakhi, I am so fortunate that I became the bride of the beloved Lord as the Master was pleased with me. I got united with the Master.

धंन धंन सखी मेरे मन्दिर सोभित, धंन धंन सरूप सुन्दर प्रेम प्रीत ।
धंन धंन चौक चबूतरे सुन्दर, धंन धंन मोहोल झरोखे अंदर ।।८

हे सखी ! सद्गुरुकी कृपासे मेरे हृदय मन्दिरमें अङ्कित श्याम-श्यामाका सुन्दर स्वरूप, उनका प्रेम, प्रीति, परमधामके चाँदनी चौक, लाल चबूतरा, रङ्गमहल एवं अन्दरके झरोखे ये सभी धन्य हैं.
O Sakhi, How fortunate that in my mind within enshines the epitomy of beauty, love and affection. Blessed are all the beautiful meeting places, assemblies and the windows, the palaces of within.

धंन धंन जवेर नकस चित्रामन, धंन धंन देखत कै रंग उतपन ।
धंन धंन थंभ गलियां दिवाल, धंन धंन सखियां करें लटकती चाल ।।९

जवाहरातोंसे भरी रङ्गमहलकी नक्काशी और चित्रकारीके दर्शन हमारे हृदयमें धनीजीके अपरिमित प्रेम सुखका अनुभव कराते हैं. रङ्गमहलके स्तम्भ, गलियाँ, हवेलियोंकी दीवारें आदिके बीच नृत्य करती हुई, मटकती चालसे चलनेवाली सखियाँ सभी धन्य हैं.
The intricate designs, artitechs, paintings seeing which creates many colors. Blessed are the pillars, alleys, walls and blessed are all the Sakhis who walk these places.

धंन धंन सखी मेरे भयो उछरंग, धंन धंन सखियों को बाढयो रस रंग।
धंन धंन सखी मैं जोवन मदमाती, धंन धंन धामधनीसों रंगराती ।।१०

हे सखी ! मेरे मनमें प्रियतमके प्रति प्रेम उमड. रहा है. उसमें आनन्द रसका आवेग छलक रहा है. अपने यौवनकी मस्तीमें मग्न होकर प्रियतमके रङ्गमें रंगी हुई मैं धन्य हो गई.
O my dear Sakhi, it is very fortunate that I overflowed with joy and thus how grateful I am to be able to share this nectar of love. I am grateful for this youth (eternal youthfulness of the soul) which is such intoxicating which is colored in the color of the Master.

धंन धंन साथ मुख नूर रोसन, धंन धंन सुख सदा धाम वतन ।
धंन धंन सखी मेरे भूषन झलकार, कौन विध कहूं न पाइए पार ।।११

ब्रह्मात्माओंके मुखारविन्दकी अनुपम शोभा एवं परमधामके अखण्ड सुख धन्य हैं. मेरे देदीप्यमान आभूषणोंकी शोभाका भी कोई पारावार नहीं है.
How blessed are the sundarsath whose face is enlightened with beauty and blessed is the eternal original abode. Blessed are my clothes and ornaments (attributes of the soul) how can I describe the unlimited of beyond.

धंन धंन नूर सबमें रह्यो भराई, देखे आतमसों मुख कह्यो न जाई ।
धंन धंन साथ छक्यो अलमस्त, धंन धंन प्रेम माती महामत ।।१२

सभी ब्रह्मआत्माओंमें धामधनीका एक-सा ही प्रकाश विद्यमान है, आत्मा ही उसका अनुभव कर सकती है, मुखसे वर्णन नहीं हो सकता. सभी ब्रह्मात्माओंके साथ महामति भी धनीजीके प्रेममें मस्त होकर धन्य-धन्य हो गई.
Great are all the souls where the light of beauty is filled in all which can be seen only by the eyes of the soul and cannot be described. All the souls totally immersed has tasted this delight, blessed is the Mahamat (the greater intelligence) who got intoxicated in this love.
प्रकरण ८४
किरंतन