The worshipers of Lord Krishna, claim no allegiance to any particular religion, but only continue developing pure, unalloyed bhakti, love of God, through the practice of devotional service, bhakti-yoga. In this pure consciousness, there is no question of being Hindu, Muslim, Christian, Jewish, or being affected by any other distinction. There is only God and the lovers of God on the spiritual platform, all of whom are absorbed in sublime and boundlessly ecstatic, loving exchanges.
Search
Monday, April 9, 2012
श्री कृष्ण महा मंत्र "निजनाम"
' मन्त्र ' शब्द ' मत्रि ' धातु से निकला है जिसका अर्थ है - ' गुप्त प्रभाषण ' अर्थात जो प्रियतम परमात्मा के दिव्य सन्देश पु्र्ण समर्पित भाव से कान में धीमें स्वर में सुन पडे - उसे मंत्र कहते है । जब बीज मंत्र निजनाम चुपचाप (मौन होकर) आत्मा से ह्र्दय में उच्चरित होता है, तो उसका नित्य आनन्दमय परिणाम पुर्ण रूप से प्राप्त होता है । अध्यात्म शास्त्र का विशेष विधान है कि निजनाम मंत्र जप को जितना ही गुप्त रखा जाता है, उससे परमधाम की उतनी ही अधिक चिनमय आन्तरिक शक्ति प्रगत होती है - श्रीजी महाराज इसीलिये कहते है - "छिपके साहेब कीजे याद । "
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Pranamji
ReplyDeletePranam ji
ReplyDeleteSanton ka sang banaye satsang.
ReplyDelete