निस दिन रंग मोहोलनमें, साथ स्यामाजी स्याम ।
याद करो सुख सबों अंगों, जो करते आठों जाम ।।५
हम सभी रङ्गमहलमें रात-दिन श्रीश्यामश्यामाजीके साथ रहतीं थीं. अपने अङ्ग-प्रत्यङ्गोंसे उन सुखोंको याद करो जिनको हम आठों प्रहरकी लीलाओंसे प्राप्त किया करतीं थीं.
Everyday in RangMohol, sundarsath, Shyamaji Shyam, remember this bliss which we experienced in all 24 hours(8 prahar)
चौकस कर चित दीजिए, आतम को एह धन ।
निमख एक ना छोडिए, कर मनसा वाचा करमन ।।६
अपने चित्तको सचेत कर उन सुखोंको याद करो. यही आत्माकी अमूल्य सम्पदा है. अपने मन, वचन एवं कर्मसे क्षण भरके लिए भी इस निधिको दूर होने मत दो.
Alert your consciousness and pay attention(with awakened consciousness), this is treasure of the soul, do not let it be away from you for a moment and perfomr this with mind,speach and action.
एही अपनी जागनी, जो याद आवे निज सुख ।
इसक याहीसों आवहीं, याहीसों होइए सनमुख ।।
इन सुखोंका स्मरण होते रहना ही आत्माकी जागृति है. इसीसे प्रेमका आविर्भाव होगा. इसलिए सर्वदा इसीकी ओर उन्मुख बनीं रहो.
This is our awakening that when we can remember the bliss of the self. From here comes the Ishk(love) and from be always focus towards the remembrance of our original abode and Shyam Shyama.
इसक धनीको आवहीं, याही याद के माहिं ।
इसक जोस सुख धनी बिना और पैदा कहूं नाहिं ।।८
इन सुखोंका स्मरण करने पर अपने प्रियतम धनीके प्रति प्रेम प्रकट होगा. धामधनीके इन सुखोंको याद किए बिना प्रेम तथा जोश प्रकट नहीं हो सकते.
The love for Lord is sprouted in the heart in this very remembrance. Without remembering the Lord, the love and his inspiration and Lord cannot be created.
ताथें पल पलमें ढिग होइए, सुख लीजे जोस इसक ।
त्यों त्यों देह दुख उडसी, संग तज मुनाफक ।।९
इसलिए प्रति-क्षण अपने प्रियतमके निकट होते हुए उनके आवेश एवं प्रेमका सुख प्राप्त करो. तुम जैसे-जैसे मिथ्याचारका त्याग करोगी वैसे-वैसे तुम्हारे शारीरिक दुःख भी दूर हो जाएँगे.
Every moment you will be close to the beloved Lord and will experience the bliss and the inspiration and thus ego-body consciousness will cease and thus all the pains and agony caused by this body will be gone too.
जोलों इसक न आइया, तोलों करो उपाए।
योंहीं इसक जोस आवहीं, पल में देसी पट उडाए ।।१०
जब तक तुम्हारे हृदयमें प्रेम प्रकट नहीं होगा तब तक इस प्रकारके प्रयत्न करतीं रहो. जैसे ही प्रेम और जोश प्रकट होंगे तब पल
मात्रमें मायाका आवरण दूर हो जाएगा.
Till the love for Lord is not sprouted one must keep trying and when the love and inspiration comes, the veil of illusion(maya) will end in a moment.
पल पलमें पट उडत है, बढत बढत अनूकरम ।
इसक आए जोस धनी के, उड गयो अंतर भरम ।।११
जैसे पल-पलमें मायाका आवरण हटता जाएगा वैसे ही प्रेम भी क्रमशः बढ.ता जाएगा. इस प्रकार धामधनीके प्रेम और जोश प्राप्त होने पर अन्तरात्माके भ्रम दूर हो जाएँगे.
As every moment the veil disappears the love in the heart increases. Once one get the love and inspiration of Lord all the internal confusion/doubt/conflicts will fly away.
निमख निमख में निरखिए, पट न दीजे पल ल्याए ।
छेटी छिन ना पर सके, तब इसक जोस अंग आए ।।१२
इसलिए प्रतिक्षण परमधामके सुखोंकी ओर देखतीं रहो. पलमात्रके लिए भी अज्ञाानके आवरणको आने मत दो. जब एक क्षणके लिए भी अन्तर नहीं रहेगा तभी परब्रह्मके आवेश और प्रेम हृदयमें आ जाएँगे.
Hence every moment recall the memory of Paramdham(from heart) and behold it. Even for a moment do not let the veil interfere with it. It will take not even a moment to experience the love, inspiration of the Lord within. (The ang is for the soul and deh is for the body, one must feel one is ang then only any spiritual expererience takes place)
इसक पेहेलें अनभवी, निज सरूप निजधाम।
तिन खिन बेर न होवहीं, धनी लेत असल आराम।।१३
सर्वप्रथम प्रेमके द्वारा ही श्रीराजजीके स्वरूप तथा परमधामका अनुभव होने लगेगा तब एक क्षणका भी विलम्ब किए बिना धामधनी तुम्हें अपने हृदयसे लगा लेंगे.
First experience the love in the heart and the one's self in the Paramdham(abode of the self). Then without delaying for a moment Lord will take the true comfort in your heart and thus beloved Lord will grant you with true comfort.
Nijdham means the abode of the self which is Paramdham the ultimate abode.
बैठे मूल मेले मिने, धनी आगूं अंग लगाए।
अंग इसक जो अनभवी, तुम क्यों न देखो चित ल्याए ।।१४
तुम मूलमिलावामें धामधनीके समक्ष परस्पर अङ्गसे अङ्ग मिलाकर बैठीं हुइंर् हो. तुमने वहाँ पर जिस प्रकार प्रेमका अनुभव किया है अब उसे अपने हृदयमें क्यों अनुभव नहीं कर रहीं हो.
Sitting at moolmilava very close to the beloved Lord. What can make you experience the love of beloved Lord why do not you pay attention to it.
ए वचन विलास जो पेड के, आए हिरदें आतम के अंग ।
तब खिन बेर न लागहीं, असल चित एक रंग ।।१५
परमधामके प्रेमविलासके इन वचनोंको जब आत्मा हृदयङ्गम करने लगेगी, तब पर-आत्माके साथ एक चित्त होनेमें उसे क्षण मात्रका भी विलम्ब नहीं होगा.
These words of love and romance of eternity when the heart of the soul accepts, then it will not take moment to unite with the super soul in the Paramdham.
बैठते उठते चलते, सुपन सोवत जागृत।
खाते पीते खेलते, सुख लीजे सब विध इत।।१६
इसलिए बैठते, उठते, चलते, फिरते, खाते, पीते, हँसते-खेलते, स्वप्नमें तथा जागृतिमें भी तुम यहाँ पर परमधामके उन सुखोंका अनुभव करती रहो.
Thus while sitting, standing, walking, in dreams while sleeping or when being awake! While eating, drinking, playing, experience the bliss of Paramdham while being over here.
एह बल जब तुम किया, तब अलबत बल सुख धाम ।
अरस परस जब यों हुआ, तब सुख देवें स्यामा स्याम ।।१7
इसके लिए यदि तुमने साहस किया तो तुम्हें निश्चय ही परमधामके अखण्ड सुखोंका अनुभव होने लगेगा. इस प्रकार जब आत्मा और पर-आत्मामें सुखोंका आदान-प्रदान होगा तब श्यामश्यामाजी तुम्हें अखण्ड सुखका अनुभव करवाएँगे.
You have been courageous that you determined to experience the bliss of Paramdham. Once you have soaked in the love completely, Shyama and Shyam will shower you with eternal bliss.
प्रकरण ४ parikrama
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