देखो बाहेर माहें अंतर, लीजो सार को सार जो सार
सुनो साथजी सिरदारो, ए कीजो वचन विचार।
देखो बाहेर माहें अंतर, लीजो सार को सार जो सार ।।१
हे शिरोमणि सुन्दरसाथजी ! सुनो तथा इन वचनों पर विचार करो. इन वचनोंको बाहरसे श्रवण कर अन्दरसे मनन भी करो एवं इनके सारके भी सारतत्त्वको अन्तर आत्मामें धारण करो.
सुंदरबाई कहे धाम से, मैं साथ बुलावन आई।
धाम से ल्याई तारतम, करी ब्रह्मांड में रोसनाई।।२
सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी महाराज (सुन्दरबाई) ने कहा था कि मैं परमधामसे सुन्दरसाथको बुलानेके लिए आया हूँ. उन्हीं सद्गुरुने परमधामसे तारतम ज्ञाान लाकर पूरे विश्वको प्रकाशित कर दिया है.
सो संुदरबाई धाम चलते, जाहेर कहे वचन।
आडी खडी इंद्रावती, कहे मैं रेहे ना सकों तुम बिन ।।३
सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी (सुन्दरबाई) ने धाम चलते समय स्पष्ट कहा था कि परमधामके द्वार पर इन्द्रावती खड.ी होकर कह रही है कि मैं आपके बिना इस संसारमें नहीं रह सकती.
दई दिलासा बुलाए के, मैं लई सिखापन।
रूहअल्ला के फुरमान में, लिखे जामें दोए तन।।४
उन्होंने मुझे बुलवाकर सान्त्वना दी. मैंने उनके उपदेश भरे वचन ग्रहण किए. उन्होंने कतेब ग्रन्थोंका प्रसङ्ग उल्लेख करते हुए कहा कि श्यामाजी (रूहअल्लाह) संसारमें आकर दो तन (जामे) धारण करेंगी.
मूल सरूप बीच धामके, खेल में जामें दोए।
हरा हुल्ला सुपेत गुदरी, कहे रूहअल्ला के सोए।।५
ब्रह्मात्माओंके मूल स्वरूप श्रीश्यामाजीने इस खेलमें आकर दो तन (एक सद्गुरु श्री देवचन्द्रजीका और दूसरा मेरा शरीर) धारण किए. कतेब ग्रन्थोंमें इन दो जामों (वस्त्रों) को ईसाके हरे रङ्गके दिव्य वस्त्र (हरा हुल्ला) और सफेद रङ्गकी गुदडी बताई है.
हदीसों भी यों कह्या, आखर ईसा बुजरक।
इमाम ज्यादा तिनसें, जिन सबों पोहोंचाए हक।।६
हदीसोंमें भी ऐसा कहा गया है कि आत्मजागृति (कयामत) के समय ब्रह्मात्माओंकी शिरोमणि (सर्वश्रेष्ठ) श्री श्यामाजी श्री देवचन्द्रजीके रूपमें प्रकट हांेगी. जब वह दूसरा शरीर धारण कर इमाम महदी (अन्तिम समयके धर्मगुरु) के रूपमें प्रसिद्ध होंगी, तब उनको और अधिक ख्याति प्राप्त होगी. क्योंकि वे सभी जीवोंको परमात्माके मार्ग पर पहुचाएँगी.
खासी गिरो के बीच में, आखर इमाम खावंद होए।
ए जो लिख्या फुरमान में, रूहअल्ला के जामें दोए।।7
विशिष्ठ समुदाय-ब्रह्मात्माओंमें अन्तिम धर्मगुरु (आखरी इमाम) सबके स्वामीके रूपमें विराजमान होंगे. इनको ही कतेब ग्रन्थमें श्यामाजी (रूहअल्लाह) का दूसरा जामा (दूसरा शरीर) कहा गया है.
भी कह्या बानीय में, पांच सरूप एक ठौर।
फुरमान में भी यों कह्या, कोई नाहीं या बिन और।।८
सद्गुरुने अपनी वाणीमें भी कहा था कि पाँचों शक्तियाँ (जोश, आत्मा, तारतम, आदेश, मूलबुद्धि) एक ही स्थान पर प्रकट होंगी. कतेब ग्रन्थोंमें भी ऐसा कहा गया है कि अन्य कोई भी इन (धर्मगुरु-इमाम) से श्रेष्ठ नहीं होंगे.
कहे सुन्दरबाई अक्षरातीत से, आया खेल में साथ।
दोए सुपन ए तीसरा, देखाया प्राननाथ।।९
सद्गुरुने यह भी कहा कि अक्षरातीत धामसे ब्रह्मात्माएँ इस नश्वर खेलमें सुरता रूपसे आई हैं. धामधनीने इस स्वप्न जगतमें व्रज और रास तथा यह तीसरी जागनी लीला दिखाई है.
कहे फुरमान नूर बिलंद से, खेल में उतरे मोमन।
खेल तीन देखे तीन रात में, चले फजर इनका इजन ।।१०
कुरानमें कहा गया है कि नूरबिलन्द-उच्चधाम (परमधाम) से ब्रह्मात्माएँ मायावी खेलमें उतर आई हैं. उन्होंने लैल-तुल-कद्र (महिमामयी रात्रि) के तीन खण्डोंमें तीन लीलाएँ देखी हैं. प्रभातके समय (जागनी लीला) में उनका ही आदेश चलेगा.
यों विध विध द्रढ कर दिया, दे साख धनी फुरमान ।
अपनी अकल माफक, केहे केहे मुख की बान।।११
इस प्रकार सद्गुरु धनीने कतेब ग्रन्थोंकी अनेक साक्षियाँ देकर उक्त तथ्यको दृढ. कर दिया. संसारके अन्य लोगोंने भी अपनी बुद्धिके अनुसार सद्गुरुके इन वचनोंकी पुष्टि की है.
धनी फुरमान साख लेय के, देखाय दई असल।
सो फुरमाया छोड के, करें चाह्या अपने दिल।।१२
सद्गुरुने कतेब ग्रन्थोंकी साक्षी देकर पूर्णब्रह्म परमात्मा एवं ब्रह्मात्माओंके वास्तविक स्वरूपका दर्शन करवा दिया. कतेब ग्रन्थोंको माननेवाले लोग उनके ऐसे वचनोंको छोड.कर अपने मनोनुकूल अर्थघटन करते हैं.
तोडत सरूप सिंघासन, अपनी दौडाए अकल।
इन बातों मारे जात हैं, देखो उनकी असल।।१३
ऐसे लोग परमात्माके स्वरूप तथा उनके स्थान (सिंहासन-परमधाम) की अवगणना करते हैं और अपनी बुद्धिको परमात्माके प्रति दौड.ाते हैं. वे इन्हीं रहस्यों पर धोखा खा जाते हैं. यही उनकी वास्तविकता है.
बिना दरद दौडावे दानाई, सो पडे खाली मकान।
इसक नाहीं सरूप बिना, तो ए क्यों कहिए ईमान।।१४
परमात्माके विरहकी पीड.ाके बिना ही वे अपना बुद्धिचातुर्य्य दौड.ाते हैं. इसलिए वे लोग शून्य-निराकारमें ही फँस जाते हैं. परमात्माका स्वरूप न हो तो उनके प्रति प्रेम उत्पन्न नहीं होता है. (जब परमात्माके स्वरूपको ही नहीं मानते) तो फिर वे किसके प्रति विश्वास (ईमान) रखेंगे ?
दरदी जाने दिलकी, जाहेरी जाने भेख।
अन्तर मुस्किल पोहोंचना, रंग लाग्या उपला देख।।१५
धामधनीके विरहका अनुभव करनेवाली विरही आत्मा ही सद्गुरुके दिलकी बात समझ सकती है, बाह्य दृष्टिवाले लोग मात्र उनकी वेश-भूषाको ही महत्त्व देते हैं. जिन्होंने मात्र बाह्य रूप पर ही विश्वास किया है, उनको अन्तर्हृदय तक पहुँचना कठिन होता है.
इन विध सेवें स्याम को, कहे जो मुनाफक।
कहावें बराबर बुजरक, पर गई न आखर लों सक।।१६
इस प्रकार बाह्यदृष्टिसे परमात्माकी उपासना करनेवाले लोग मिथ्याचारी कहलाते हैं. स्वयंको तो वे ज्ञाानी कहलवाते हैं, किन्तु अन्त तक उनके हृदयसे दुविधा नहीं मिटती.
मूल ना लेवें माएना, लेत उपली देखादेख।
असल सरूप को दूर कर, पूजत उनका भेख।।१7
लोग मूल अर्थको समझे बिना मात्र ऊपरी (बाह्य) दृष्टि रखते हैं तथा चिन्मय स्वरूपको छोड.कर मात्र उनके बाह्य वेश (र्मूित आदि)की पूजा करते हैं.
इत बात बडी है समझ की, और ईमान का काम।
साथजी समझ ऐसी चाहिए, जैसा कह्या अल्ला कलाम ।।१८
यहाँ पर तो विशेष समझनेकी बात है तथा श्रद्धा एवं विश्वासकी ही आवश्यकता है. हे सुन्दरसाथजी ! समझ ऐसी होनी चाहिए जैसे रसूलने कुरानमें कहा है.
जेती बातें कहूं साथजी, तिनके देऊं निसान।
और मुख थें न बोल हूं, बिना धनी फुरमान।।१९
हे सुन्दरसाथजी ! मैं जितनी बातें कह रहा हूँ, उन सबके लिए प्रमाण भी देता हूँ. शास्त्रवचन एवं सद्गुरुके वचनोंके अतिरिक्त मैं अन्य एक भी बात अपने मुखसे नहीं कह रहा हूँ.
इन फुरमान में ऐसा लिख्या, करे पातसाही दीन।
बडी बडाई होएसी, पर उमराओं के आधीन।।२०
कतेब ग्रन्थोंमें ऐसा लिखा है कि भविष्यमें एक ही सत्यधर्मका शासन चलेगा. उसका महत्त्व बहुत बढ.ेगा, परन्तु वह धनवानों (प्रतिष्ठितों) के अधीन रहेगा.
कहे कुरान बंद करसी, इनके जो उमराह।
एक तो करसी बन्दगी, और जो कहे गुमराह।।२१
कुरानमें यह भी कहा है कि ऐसे अग्रणी-धनवान लोग कुरानके गूढ. अर्थोंको छिपा देंगे. एक ओर सच्ची आत्माएँ सत्यकी उपासना करेंगी तथा दूसरी ओर ऐसे लोग सबको पथभ्रष्ट (गुमराह) करेंगे.
मैं करूं खुसामद उनकी, मैं डरता हों उनसे।
जो कहावें मेरे उमराह, और मेरे हुकम में।।२२
रसूल मुहम्मदने कहा था कि मैं ऐसे अग्रणी व्यक्तियोंसे डरता हूँ. इसलिए ऐसे लोगोंकी चाटुकारिता (खुशामद) करता हूँ कि ऐसे लोग मेरे आदेशके नाम पर लोगोंको पथभ्रष्ट करेंगे.
ऐसा ना कोई उमराह, जो भांने दिल का दुख।
जब करसी तब होएसी, दिया साहेब का सुख।।२३
ऐसे कोई भी अग्रणी नहीं हुए जो किसीके भी दिलके दुःखको दूर कर सकें. जब वे दूसरोंका दुःख दूर करेंगे, तब उन्हें परमात्माका अखण्ड सुख प्राप्त होगा.
एही बडा अचरज, जो कहावत हैं बंदे।
जानों पेहेचान कबूं ना हुती, ऐसे हो गए दिल के अंधे ।।२४
यह आश्चर्यकी बात है कि जो खुदाके बन्दे (सेवक) कहलाते हैं उन्हें मानों कभी परमात्मा (खुदा) की पहचान ही नहीं हुई हो, ऐसे वे दिलके अन्धे हो गए हैं.
मैं बुरा न चाहूं तिनका, पर वे समझत नाहीं सोए।
यार सजा दे सकत हैं, पर सो मुझसे न होए।।२५
रसूल मुहम्मदने यह भी कहा कि ऐसे लोगोंका भी मैं बुरा नहीं चाहता, किन्तु वे समझते ही नहीं. उनके मित्र उन्हें दण्ड (सजा) दे सकते हैं, किन्तु यह मुझसे नहीं हो सकता.
मेरे दिल के दरद की, एक साहेब जाने बात।
ऐसा तो कोई ना मिलया, जासों करों विख्यात।।२६
मेरे दिलकी वेदना एक परमात्मा ही जान सकते हैं. मुझे ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला, जिससे मैं अपने दिलकी बात कह सकूँ.
जो कोई साथ में सिरदार, लई धाम धनी रोसन।
खैंच छोड सको सो छोडियो, ना तो आपे छूटे हुए दिन ।।२7
इसलिए जो अग्रणी सुन्दरसाथ धामधनीके ज्ञाानका प्रकाश लेकर चल रहे हैं, वे पारस्परिक खींचातानीको छोड. दें, अन्यथा समय आने पर स्वतः ही यह छूट जाएगा अर्थात् इसे छोड.ना ही पड.ेगा.
मेरे तो गुजरान होएसी, जो पडया हों बंध।
जो कदी न छूटया रात में, तो फजर छूटसी फंद ।।२८
मेरा तो इसी भाँति निर्वाह हो ही जाएगा क्योंकि मैं सुन्दरसाथकी जागृतिके लिए बँधा हुआ हूँ. जो खींचातानी अज्ञाानरूपी रात्रिमें नहीं छूटी, वह तारतम ज्ञाानका प्रभात होने पर तो अवश्य छूट जाएगी.
धाम धनी दई रोसनी, जो बडे जमातदार।
सोभा दई अति बडी, जिनके सिर मुद्दार।।२९
ब्रह्मात्माओंके अग्रणी धामधनी सद्गुरुने मुझे तारतम ज्ञाानके प्रकाश द्वारा जाग्रत किया एवं जागनीका दायित्व सौंपकर सुन्दरसाथमें मेरी शोभा बढ.ाई.
मैं इन सुख दुख से ना डरूं, मेरे धनी चाहिए सनमुख ।
मोहे एही कसाला होत है, जब कोई देत साथ को दुख ।।३०
अब मैं इन सांसारिक सुख-दुःखोंसे नहीं डरता. मैं तो मात्र यही चाहता हूँ कि धामधनी ही मेरे सम्मुख होने चाहिए. जब कोई सुन्दरसाथको कष्ट पहुँचाता है, मुझे मात्र इसीसे दुःख होता है.
मेरी एक द्रष्टि धनीय में, दूजी साथ के माहें।
तो दुख आवे मोहे साथ को, ना तो दुख मोहे कहूं नाहें ।।३१
मेरी एक दृष्टि धनीके प्रति है, तो दूसरी दृष्टि सुन्दरसाथकी ओर लगी हुई है. इसलिए सुन्दरसाथको दुःखी देखकर मुझे पीड.ा होती है, अन्यथा मुझे किसी प्रकारका दुःख नहीं है.
कोई कोई अपनी चातुरी, ले खैंच करे मूढ मत।
अकल ना दौडी अंतर लों, खैंचें ले डारे गफलत।।३२
कई लोग मूर्खोंकी भाँति अपनी बुद्धि चातुर्य्यसे परस्पर खींचातानी करते हैं. उनकी बुद्धि शास्त्रोंकी गहराइयों (गूढ.ार्थों) तक नहीं पहुँचती. उनकी अज्ञाानता ही उन्हें खींचकर भ्रममें डालती है.
ए तो गत संसार की, जो खैंचाखैंच करत।
आपन तो साथी धाम के, है हममें तो नूर मत।।३३
संसारका व्यवहार ही ऐसा है कि यहाँ पर लोग परस्पर खींचातानी ही करते रहते हैं. हम तो परमधामकी ब्रह्मात्माएँ हैं, हमारे अन्दर तो जाग्रत बुद्धिका प्रकाश है.
मोमिन बडे आकल, कहे आखर जमाने के।
इनकी समझ लेसी सबे, आसमान जिमी के जे।।३४
ऐसा कहा गया है कि अन्तिम समयमें प्रकट होनेवाली ब्रह्मात्माएँ बड.ी बुद्धिशाली हांेगीं, स्वर्गादिके देवतागण तथा पृथ्वीके मानव सभी इनसे ही ज्ञाान प्राप्त करेंगे.
जो कोई निज धाम की, सो निकसो रोग पेहेचान।
जो सुरत पीछी खैंचहीं, सो जानो दुसमन छल सैतान।।३५
जो परमधामकी आत्माएँ हैं, वे राग-द्वेषरूपी रोगको पहचानकर उससे मुक्त हो जाएँ. परमधामकी ओर जा रही सुरताको जो मायाकी ओर खींचते हैं, उन्हें ही छल-कपट वाले शत्रु समझना.
अब बोहोत कहूं मैं केता, करी है इसारत।
दिल आवे तो लीजो सलूक, सुख पाए कहे महामत।।३६
अब मैं अधिक क्या कहूँ ? मैंने तो मात्र सङ्केत ही किया है. अच्छा लगे तो उसे व्यवहारमें उतार लेना. महामति कहते हैं, ऐसा करने वालोंको अखण्ड सुख प्राप्त होगा.
प्रकरण ९४
श्री किरन्तन
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