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Monday, April 23, 2012

Ranjana Oli

प्रभाती

प्रातः समिरूँ अक्षरातीत , श्याम श्यामाजी साथ रे ॥
प्रथम पाट सातों घाट, दौ पुल रेति पाल रे ।
सोर तेर झुंड नव देहुरियाँ, टापू निज ताल रे ।१
...
चौबीस हाँस जवेरोंकी नेहेरें, मानिक मोहोल अपार रे ।
बन मोहोल नेहेरोंके आगे , हार हवेली चार रे ।२

गिरद रांग आठों सागर, पशु पंखी कै जात रे ।
अन्न-वन मेवा फूल नूर बाग, चेहेबच्चे कै भांत रे ।३

लाल चबूतरा खडोकली ताडवन, पुखराजी आकासी रे ।
हजार गुर्ज चाँदनी सोहें, खेलत वाके वासी रे ॥४

पुखराजी ताल चार घडनाले, गिरत सोले चादरें खासी रे ।
अधबीच बंगला मूल कुंड सोहे, ढपी खुली जमुना जासी रे ॥५

बट केल दोऊ पुल अरस परस, शोभित सातों घाट रे ।
बीच पाट चान्दनी सोहे, बारह थम्भ झलकात रे ॥६

चान्दनी चौक में हरे लाल दरखत , सौ सीढी ऊपर द्वार रे ।
छ: छ: हजार मन्दिर दौ हारें, अंदर हार हवेली चार रे ॥७

गोल हवेली चौंसठ थम्भ, विध विध रंग अपार रे ॥
तले गिलम ऊपर चन्द्रवा, शोभा चारों द्वार रे ॥८

बारह हजार खिलवत बैठीं, संग धनीजीके पास रे ।
जुगल स्वरूप चरनकी आस, राखत दयादास रे ॥ ९

Ranjana Oli

एक ईमान दूजा इसक, ए पर मोमिन बाजू दोए ।
पट खोल पोहोंचावे लुदंनी, इन तीनों में दुनीपे न कोए ।।१८


ब्रह्मात्माओंको उड.ान भरनेके लिए एक ओर विश्वासका पङ्ख है तो दूसरी ओर प्रेमका पङ्ख है. इनके पास वह तारतम ज्ञान है जो अज्ञानके आवरणोंको दूर कर ...परमधामका अनुभव करवा सकता है जबकि नश्वरजगतके जीवोंके पास न प्रेम है, न विश्वास है और न ही इस प्रकारका ज्ञान है.

Faith and Love are the two wings of the celestial souls. The moment they open the holy book of wisdom like (Bhagawat, Quran,Tartamsagar) they experience the abode. The wordly people are missing all three faith,love and wisdom. (Even if they get hold of the book they cannot understand the mysticism and create confusions and divisions.)


ए दुनी चले चाल वजूद की, उमत चले रूह चाल ।

लिख्या एता फरक कुरानमें, दुनी उमत इन मिसाल ।।१९


नश्वर जगतके जीव शरीरके द्वारा (कर्मकाण्डके मार्ग पर) चलते हैं जबकि ब्रह्मात्माएँ आत्माकी रीतिसे चलतीं हैं. इस प्रकार कुरानमें नश्वर जगतके जीव एवं ब्रह्मात्माओंमें इतना अन्तर लिखा है.

The worldly people take the path of physical existence and take to rites and rituals. While the celestial souls realise the spiritual entity(soul). There is difference in these two beings.


कह्या दुनियां दिल मजाजी, सो उलंघे ना जुलमत ।

दिल अरस हकीकी मोमिन, ए कहे कुरान तफावत ।।२०


नश्वर जगतके जीवोंका हृदय भ्रमित है इसलिए वे शून्य-निराकारको पार कर आगे नहीं बढ. सकते जबकि ब्रह्मात्माओंका हृदय सत्य परमात्माका धाम कहा गया है. कुरानमें इन दोनोंमें यह अन्तर कहा गया है.

The mind of the worldly being (physical existence) is confused. Their desires also are physical and materialistic. They cannot achieve beyond the formless nothingness (Sunya, Nirakaar Niranjan). The world is miserable because of ego when one subdues the ego one experiences the peace (If you are walking on fire you are hurt when you leave the fire you will feel good but that is called relief not the supreme bliss)

But the heart of the celestial souls is the eternal abode as Supreme Brahm Shri Krishna of Aksharateet resides in their heart. Thus holy Quran distinguishes between the two beings.


इनमें रूह होए जो अरस की, सो क्यों रहे दुनीसों मिल ।

कौल फैल हाल तीनों जुदे, तामें होए ना चल विचल ।।२१


इस जगतमें जो परमधामकी आत्माएँ होंगी वे नश्वर जगतके जीवोंके साथ मिल कर कैसे रह सकेंगीं ? क्योंकि उन दोनोंके मन, वचन एवं कर्म तीनों ही भिन्न-भिन्न प्रकारके होंगे, जिनमें कोई परिवर्तन नहीं होगा.

The celestial souls in this world, who are from the Paramdham always long for the beloved Lord, how can they integrate with the beings who aspire for the worldly (physical and materialistic) pleasures. There is no relation between the speech, action and living of the worldly beings. The worldly say one thing, think and act another.

Where as, the celestial souls, the mind, speech and actions are corelated, they walk the talk and pursue the truth.


सरीयत करे फरज बंदगी, करे जाहेर मजाजी दिल ।

बका तरफ न पावे अरस की, ए फानी बीच अंधेर असल ।।३३


नश्वर जगतके जीव कर्मकाण्डके आधार पर औपचारिक पूजा-वन्दना करते हैं. उनका हृदय असत्यकी ओर उन्मुख होता है. इनको अखण्ड परमधामकी दिशा प्राप्त न होनेसे ये नश्वरताको ही सत्य समझ कर अज्ञाानरूप अन्धकारमें पड.े रहते हैं.

The worldly being follow the rituals and pray as a formality towards God. Their mind is restless. They strive towards name,fame and glory.

Their objective is to be recognised by others, they strive to rule in other's lives and do not know themselves.

Their desires are materialistic and physical. They cannot concentrate on the deeper meanings of the scriptures. They do not aspire for the eternal abode or the beloved Lord and live in the darkness of ignorance.


दिल हकीकी जो मोमिन, सो लें माएने बातन।

हक इलम इसक हजूरी, रूहें चलें बका हक दिन।।३४


ब्रह्मात्माएँ सत्यहृदया कहलातीं हैं वे ही धर्मग्रन्थोंके गूढ. रहस्योंको ग्रहण करतीं हैं. वे तारतम ज्ञाानरूपी ब्रह्मज्ञाानको प्राप्त कर प्रेमपूर्वक परब्रह...्म परमात्माकी सेवा करतीं हैं. ये ब्रह्मात्माएँ ब्रह्मज्ञाानके प्रकाशमें अखण्ड धामका मार्ग ग्रहण करतीं हैं.

The will of the Lord rules the heart of the celestial souls. They gain the understanding of the true meaning in the scriptures. With the light of the Lord as the Commander, wisdom, love and devotion these souls reach the abode of the Lord.

श्री कयामतनामा (छोटा)




कहे महंमद सुनो मोमिनों, ए उमी मेरे यार।
छोड दुनी ल्यो अरस को, जो अपना वतन नूर पार।।7३

हे ब्रह्मात्माओ ! सुनो, श्यामाजी (सद्गुरु) ने भी यही कहा है कि ये अनपढ. (उभी-चातुर्यपूर्ण लौकिक ज्ञाानसे अनभिज्ञा)) आत्माएँ ही मेरे श्रेष्ठ मित्र हैं. इस...लिए नश्वर संसारको छोड.कर अखण्ड धामका मार्ग ग्रहण करो, अक्षरसे भी परे हमारा अक्षरातीत परमधाम है.
O my celestial souls, Satguru also has said these less knowledgeable souls are my true friends and not those who think themselves very street smart (loaded with extra knowledge), Reject the world and accept our original abode the Paramdham -Aras (that is beyond Noor Akshar where resides Tajalla Noor Aksharateet)
प्रकरण ३ श्री खुलासा

The last will of Mahamati

The last will of Mahamati
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Oh dear Sakhi, hey Sundarsath, are you not the sathi of Sundarbai? Are you not the brahmatma?
Please read this what Mahamati Prannath conveyed to us just before leaving this world for Paramdham.

अब हम चले धाम को, साथ अपना ले।
लिख्या कौल फुरमान में, आए पोहोंच्या ए।।१

अब हम अपने सुन्दरसाथको लेकर परमधाम चल रहे हैं. कुरानमें लिखी हुई भविष्य वाणीका समय आ पहुँचा है.
Now I am leaving for Paramdham along with my Sundarsath. The prophecy in the holy Quran has come near.

सखी हम तो हमारे घर चले, तुम हूजो हुसियार।
सुरता आगे चल गई, हम पीठ दई संसार।।२

हे आत्माओ ! हम अपने घर चल रहे हैं, तुम सब सावधान हो जाओ. हमारी सुरता परमधामकी ओर आगे बढ. गई, इसलिए हमने संसारको पीठ दे दी है.
O my dear celestial souls, now I am leaving for my abode, you be alert. My astral consciousness that came to visit here has already left for Paramdham and I have already shown my back to the world.

हममें पीछे कोई ना रहे, और रहो सो रहो।
गुन अवगुन सब के माफ किए, जिन जो भावे सो कहो ।।३

अब हममेंसे कोई भी आत्मा पीछे नहीं रहेगी और जिनको रहना हो वे रहें. सबके गुण (पुण्य) अवगुण (पाप) को क्षमा कर दिया है. जिनको जो कहना है वह निःसङ्कोच कहें.
All the souls will join me to Paramdham, no one will long to be here but those who wants to live longer may do so. I have forgiven all the good or bad deeds of everyone. Whoever wants to say anything to me can come and say it.
अब हम रह्यो न जावहीं, मूल मिलावे बिन।
हिरदें चढ चढ आवहीं, संसार लगत अगिन।।४

अब हम मूल मिलावामें पहुँचे बिना नहीं रह सकते. परमधामकी स्मृति हृदयमें बार-बार आ रही है, इसलिए यह संसार अग्निके समान लगने लगा है.
Now I cannot stay away from moolmilava and the heart is filled with longing to be at Paramdham and this world has become a fire.

सोई वस्तर सोई भूषन, सोई सेज्या सिनगार।
सोई मेवा मिठाइयां, अलेखें अपार।।५

अब हमें परमधामके वही वस्त्राभूषण, रमणीय शय्या, दिव्य शृङ्गार, अनन्त मेवा-मिठाइयाँ याद आ रही हैं.

The same eternal dress and the same ornaments and same singar and the same dried fruits and sweets which cannot be expressed of the beyond.

सोई धनी सोई वतन, सोई मेरो सुंदर साथ।
सोई विलास अब देखिए, दोरी खैंची उनके हाथ।।६

वही धामधनी, वही दिव्यधाम, वही अपने सुन्दरसाथ तथा परमधामका वही आनन्द-विलास दिखाई देने लगा है. धामधनीने हमारी सुरतारूपी डोरीको अपने हाथोंसें खींच ली है.
The same Lord, the same abode and the same my beautiful companions(sundar sath all the companions of Sundarbai).
सोई चौक गलियां मंदिर, सोई थंभ दिवालें द्वार।7
सोई कमाड सोई सीढियां, झलकारों झलकार।।

वही परमधामके चौक, गलियाँ, मन्दिर, स्तम्भ, भीत (दीवारें), द्वार, किवाड., सीढि.याँ दृष्टिगोचर हो रही हैं. सर्वत्र उनका ही प्रकाश जगमगा रहा है.
Mahamati is describing Paramdham. It is the same square crossing, alleys, mandir(the room within), the same pillars, walls and doors, the same windows, the same strairs which are brilliantly shining their lights.

सोई मोहोल सोई मालिए, सोई छज्जे रोसन।
सोई मिलावे साथ के, सोई बोलें मीठे वचन।।८

वही ऊँचा रङ्गमहल, उसकी ऊँची भौमें, वही तीसरी भौमका छज्जा प्रकाशमान है, जहाँ पर सुन्दरसाथ मिलकर बैठते हैं और धामधनीसे मीठे वचन बोलते हैं. ये सब मुझे अब याद आ रहे हैं.
The same palace Rang mohol, and tall floors, and the same terrace shining brightly. The same meeting of sundarsath and same are the exchange of sweet words.

सोई झरोखे धाम के, जित झांकत हम तुम।
सो क्यों ना देखो नजरों, बुलाइयां खसम।।९

वही तीसरी भौमका झरोखा याद आ रहा है, जहाँसे हम तुम नीचे झाँकते थे. जब धामधनी स्वयं हमें बुला रहे हैं तब तुम इन दृश्योंको क्यों नहीं देखते ?
Mahamati is explaining the Paramdham.
It is the same window, remember from where we peep out. Why are you not seeing the sight of our Lord calling us.
सोई खेलना सोई हंसना, सोई रस रंग के मिलाप।
जो होवे इन साथ का, सो याद करो अपना आप।।१०

परमधाममें हमारा वही खेलना, हँसना तथा प्रेमानन्दमें मिलना, यह सब हमें याद आ रही है. जो परमधामकी इन ब्रह्मात्माओंमेंसे हैं, वे सभी अपनी लीलाओंको स्वयं याद करें.
Those Sakhi who are from Paramdham, remember your own bliss of Paramdham.
The same playing games, laughing and the same union full with nectar of love.
The soul of Paramdham the sundarsath will remember this within the self. When sundarsath becomes soul conscious she will remember everything.
Those Sakhi who are from Paramdham, remember your own bliss of Paramdham.
--------PLEASE READ----- our Lord in Paramdham is Shyam

सोई चाल गत अपनी, जो करते माहें धाम।
हंसना खेलना बोलना, संग स्यामाजी स्याम।।११

हम परमधाममें जिस प्रकार चलते थे तथा श्याम-श्यामाजीके साथ हँसते, खेलते व बोलते थे, उन प्रसङ्गोंको याद करो.
How was our actions and how we behaved in Paramdham. How we laughed, played and talked along with Shyamaji and SHYAM. The same actions, same attitude that is required!
This is the description of Paramdham and this is the last instruction to us by Mahamati Prannath.
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सोई बातें प्रेम की, सोई सुख सनेह।
सुख अखंड को भूलके, क्यों रहे झूठी देह।।१२

वे ही प्रेम भरी बातें, स्नेहपूर्ण सुख याद आ रहे हैं, ऐसे अखण्ड सुखोंको भूलकर इस झूठे शरीरके मोहमें क्यों पड.े हो ?

The same talk of love, the same blissful affection, forgetting the eternal everlasting bliss how can one get attached to this perishable false body?

सोई सेज्या सोई मंदिर, सोई पीउजी को विलास।
सोई मुख के मरकलडे, छूटी अंग की आस।।१३

वही रङ्गपरवाली मन्दिर एवं वही सुख-शय्या, धनीजीका वही हाँस-विलास, वही मन्दमुस्कान, इन सबको याद करते हुए इस झूठी देहकी आशा छूट गई है.

Its the same rangparwali mandir and the same cot and the same blissful play with beloved. Remembering this blissful memories, the soul has no hope with this body.

सोई रसीले रंग भरे, निरखें नेत्र चढाए।
सुंदर मुख सनकूल की, भर भर अमृत पिलाए।।१४

धामधनी उन्हीं रसीले तथा आनन्द भरे नेत्रोंसे हमें निहार रहे हैं. प्रसन्न मुखारविन्दसे शोभायमान होकर हमें प्रेमके प्याले भर-भर कर पिला रहे हैं.
Our beloved Lord of Paramdham with eyes full of nectar of love and filled with colors of joy is watching us and gleeful beautiful face is offering the nectar of immortality filling the cups of life.

Read celestial soul! Read this! Mahamati Prannath is preparing to leave this mortal world and at this last moment of his life he is giving us instructions.

सोई कटाक्षे स्यामकी, सींचत सुरत चलाए।
बंके नैन मरोर के, द्रष्टें द्रष्ट मिलाए।।१५

श्यामसुन्दर-धनीके वही कटाक्षपूर्ण नेत्र हैं, जिनसे वे हमारी सुरताको अपनी ओर खींचते हुए हमारे हृदयमें स्नेहका सिंचन करते हैं तथा तिरछी दृष्टिसे हमारी आँखसे आँख मिलाते हैं.
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Same are the sharp eyes of Shyam which attracts our astral body and fills our heart with love and with skew-eyed he meets our eyes. Remember, all your action must be centered so you can see eye to eye with our Lord Shyam!
Lord is looking at us with questioning eyes? Do we remember anything?

कहां कहूं सुख साथ को, देखें भृकुटी भौंह चढाए ।
सुखकारी सीतल सदा, सुख कहा केहेसी जुबांए।।१६

सुन्दरसाथके उस सुखका क्या वर्णन करूँ जब धनी अपनी भौंहे चढ.ाकर प्रेमपूर्वक उन्हें निहारते हैं. धामधनीकी ऐसी सदा सुखदायी शीतल नयनोंके सुखका वर्णन यह जिह्वा कैसे कर पाएगी ?

What can I say about the bliss of sundarsath when they look at the Supreme with raised brows. The eternal cool blissful eyes how can I describe the supreme bliss from this mortal tongue.

सूछम सरूप ने सुंदरता, उनमद सारे अंग।
बराबर एकै भांत के, और कै विध के रस रंग।।१7

सुन्दरसाथके सूक्ष्म चिन्मय स्वरूपकी सुन्दरता तथा उनके अङ्ग-प्रत्येङ्गोंमें भरा हुआ प्रेम-उन्माद सबमें एक ही प्रकारका होता हुआ भी उससे विभिन्न प्रकारके आनन्दकी अनुभूति होती है.

The beauty of souls of Paramdham are subtle and full of ectasy in the whole being. They are all same type but they have variety in the colour of nectar of joy!

एक दूजे के चित पर, चाल चले माहों माहें।
पात्र प्रेम प्रीत के, हांस विनोद बिना कछू नांहें।।१८

ब्रह्मात्माएँ परस्पर एक दूसरीके मनोनुकूल चाल चलती हैं. प्रेम-प्रीतिके पात्र इन ब्रह्मात्माओंमें हास्य-विनोदके अतिरिक्त अन्य कोई व्यवहार नहीं है.
The souls of Paramdham (momin, brahmshristi) they walk to give happiness to other. There is harmony and unity consciousness. All are our actions towards others is to give happiness to others. Sundarsath are the ones who deserve the love and affection hence they just involve in humour and laughter and nothing much serious.

बोए नेक आवे इन घर की, तो अंग निकसे आहे।
सो तबहीं ततखिन में, पीउजी पें पोहोंचाए।।१९

ऐसे परमधामकी थोड.ी-सी भी सुगन्धि यदि आ जाए, तो हमारी आत्मा तत्क्षण इस देहको त्याग देती और धामधनीके चरणोंमें पहुँच जाती.
Even a scent of the abode if the soul gets of Paramdham, instantly then it will reach the beloved.

याद करो जो मागिया, धनिएं खेल देखाया कर हेत ।
महामत कहे मेहेबूब के, सुखमें हो सावचेत।।२०

हे सुन्दरसाथजी ! याद करो कि धामधनीसे तुमने जैसा खेल देखनेकी माँग की थी, धनीने उसे स्नेह पूर्वक दिखा दिया. इसलिए महामति कहते हैं कि धामधनीके आनन्दको पानेके लिए तैयार हो जाओ.
Remember what we asked from the Supreme Master (Dhani) and hence out of affection the Master showed us this game. Be alert now says Greater Intelligence (Mahamati Prannath) to gain the bliss of the beloved.

प्रकरण ९३ किरंतन

कहे महंमद सुनो मोमिनों, ए उमी मेरे यार।
छोड दुनी ल्यो अरस को, जो अपना वतन नूर पार।।7३

हे ब्रह्मात्माओ ! सुनो, श्यामाजी (सद्गुरु) ने भी यही कहा है कि ये अनपढ. (उभी-चातुर्यपूर्ण लौकिक ज्ञाानसे अनभिज्ञा)) आत्माएँ ही मेरे श्रेष्ठ मित्र हैं. इस...लिए नश्वर संसारको छोड.कर अखण्ड धामका मार्ग ग्रहण करो, अक्षरसे भी परे हमारा अक्षरातीत परमधाम है.

O my celestial souls, Satguru also has said these less knowledgeable souls are my true friends and not those who think themselves very street smart (loaded with extra knowledge), Reject the world and accept our original abode the Paramdham -Aras (that is beyond Noor Akshar where resides Tajalla Noor Aksharateet)

प्रकरण ३ श्री खुलासा

Saturday, April 21, 2012

BIND ME SINDH SAMAYA RE SADHO

BIND ME SINDH SAMAYA RE SADHO. BIND ME SINDH SAMAYA l
TRIGUN SAROOP KHOJAT BHE VISMAE, PAR ALAKH NA JAE LAKHAYA ll

He Sadhujan ! is binurupi juthi maya me virat shaktishali sindhurupi parmatma samaya huaa pratit hotahai. sat raj aur tam is tino guno ke adhistha devta - brahmma, vishnu aur mahesh bhi sindhurupi parmatma ko khojate khojate chakit ho gae hai tathapi ve alakh parmatma drustigochar nahi hue.
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VED AGAM KEHE ULTE PICHE, NET NET KAR GAYA l
KHABAR NA PARI BIND UPAJYA KAHA THE, TAATHE NAAM NIGAM DHARAYA ll

ved bhi parbrahm ki khoj karne ke uprant use agamya (pahunch se pare) kah kar 'neti neti' (ant nahi, ant nahi) kahte hue ulte piche laut gaye. yah bindurupi maya kahase upanna hui hai, iski jankari na honese uska naam nigam pada.
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ASAT MANDAL ME SAB KOI BHULIYA. PER AKHAND KINE NA BATAYA l
NING KA KHEL KHELAT SAB NIND ME, JAAG KE KINE NA DEKHAYA ll

is asatya mandal (nashvar brahmand arthat bhavsagar) me asabhi log apna marg bhul age hai. akhand avinashi parmatma ki baat koi nahi karta. yah sansaar svapna ka khel hai aur sabhi log agyan ki nindra me yaha vicharan kar rahe hai, svayam jagrut hokar parmatma ke vishay me kisine bhi margdarshan nahi kiya.
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SUPAN KI SRUSTI VAIRAT SUPAN KA, JHUTHE SANCH DHAMPAYA l
ASAT AAPE SO KYO SAT KO PEKHE, IN PER PED NA PAYA ll

yah virat brahmand svapna ka bana hua hai aur iski samgra srusti bhi svapna ki hi hai. isliye asatya ke vistaar se satya dhak gaya hai. mayavi jeev svayam svapna ke hone ke karan satya parmatma ko kaise dekh sakte hai? is prakar unhe param tatva bhi nahi mil saka.
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KHOJI KHOJE BAHER BHITAR, O ANTER BAITHA AAP l
SAT SUPANE KO PARTHE PEKHE, PER SUPANA NA DEKHE SAKHYAT ll

parmatma ko dhundhnewale log is vishva me pind sharir me athava brahmand (baahar) me parmatma ko dhundhte hai, parantu svayam parmatma to aatma svaroop se anter me birajman hai. satya aatmae (brahmaatmae) paar paramdham me rah kar is svapnarupi juthe sansaar ko dekh rahi hai, parantu svapna ke jeev unhe dekh nahi pate.
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BHARAM KI BAJI RACHI VISTARI, BHARAM SO BHARAM BHARMANA l
SAADH SOI TUM KHOJO RE SAADHO, JINKA PAAR PAYANA ll

yah sansaar ka khel matra bhram ka vistaar hai. (yaha per) bhram ke jeev is bhramrupi khel me bhramit horahe hai. isliye he sadhujan ! ese tatvadashi sadguru ki khoj karo, jisne bhrantiyo se mukt hokar paa ka marg prapt kiya ho.
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MRUGJAL SO JO TRISHA BHAJE, TO GURU BINA JEEV PAAR PAAVE l
ANEK UPAAE KARE JO KOI, TO BIND KA BIND ME SAMAVE ll

yadi mrugjal dvara trusha shant hosakti ho, to sadguru ke gyan ke bina bhi jeev paar paasakya hai ( kintu yah to sambhav nahi hai ). isliye koi anek prayatna hi kyo na kar le kintu bindurupi maya ke jeev maya me hi samahit hojate hai.
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DET DEKHAI BAHER BHITAR, NA BHITAR BAHER BHI NAHI l
GURU PRASADE ANTER PEKHYA, SE SOBHA VARANI NA JAAI ll

brahmand me choudah loko ke ander evam bahar jitna bhi drashyaman padarth hai, unme parmatma nahi hai ( matra parmatma ki satta hai ). sadguru ki asim krupa dvara anter me anek darshan hue unki yah sobha avarnaniy hai.
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SATGURU SOI MILE JAB SANCHA, TAB SINDH BIND PARCHAVE l
PRAGAT PRAKAS KARE PAARBRAHMSO, TAB BIND ANEK UDAVE ll

ese sache sadguru jab mil jate hai, tab ve sindhurupi purnbrahm parmatma aur bindurupi juthi maya ki pahchan kara dete hai aur purnbrahm parmatma ka shakshat anubhav (DARSHAN) karvakar bindurupi maya ke anek prayatno ko uda dete hai.
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MAHAMAT KAHE BIND BAITHE HI UDAYA, PAYA SAGAR SUKH SINDH l
AKSHARATIT AKHAND GHAR PAYA, E NIDH PURAV SANMANDH ll

maya ke praytna dur ho gae hai aur sindhrupi purnbrahm parmatma apaar sukh prapt ho gaya. purnbrahm parmatma aksharatit ke akhand ghar - paramdham ki prapti ho gai. yah akhand nidhi purva sambandh ke karan hi prapt hui.

Prakaran 2 Kirantan
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Pranam

Friday, April 20, 2012

O Sundarsath, lets all go to the Paramdham.

चलो चलो रे साथजी, आपन जैए धाम।
मूल वतन धनिएं बताया, जित ब्रह्म सृष्टि स्यामाजी स्याम ।।१
हे सुन्दरसाथजी ! चलो, हम सब साथ मिलकर परमधाम जाएँ. परमधामकी बात सद्गुरुने हमें बताई है, जहाँ ब्रह्मसृष्टि और श्यामाजी सहित श्री श्याम (अक्षरातीत श्रीकृष्णजी) विराजमान हैं.

O Sundarsath, lets all go to the Paramdham. The original abode our Lord has shown where dwells the celestial souls (brahmshristhi),Shyamaji and Shyam.

मोहोल मंदिर अपने जो देखिए, देखिए खेलन के सब ठौर ।
जित है लीला स्याम स्यामाजी, साथजी बिना नाहीं कोई और ।।२
अब तुम अपने महल-मन्दिरोंकी शोभा एवं सभी क्रीडास्थलोंको ध्यानसे देखो, जहाँ पर श्री राजश्यामाजी तथा सुन्दरसाथके अतिरिक्त अन्य कोई भी नहीं है.

Now see the splendour of our palaces, buildings and all the places of the sports where Shyam, Shyamaji and Sundarsath and none other play various sports.

रेत सेत जमुनाजी तलाब, कै ठौर बन करे बिलास।
इसक के सारे अंग भीगल, रेहेस रंग विनोद कै हांस ।।३
श्रीयमुनाजी, हौजकौेसर ताल तथा विभिन्न वन-उपवनोंमें मोतियोंकी भाँति चमक रहे श्वेत रेत कण हैं, जहाँ पर विभिन्न प्रकारके क्रीडास्थल बने हुए हैं. उनमें प्रेमसिक्त (प्रेमसे सींचे हुए) अंगोंसे हम श्रीराजजीके साथ एकान्तमें आनन्द विलासका अनुभव करें.

Remember dear sundarsathji the white sand in the bank of the Jamuna lake where there are various types of sporting spots and forest. How drenched in the infinite love of Lord in ourselves we lived blissfully and merrily with the Lord.

पसु पंखी मांहें सुन्दर सोभित, करत कलोल मुख मीठी बान ।
अनेक विध के खेल जो खेलत, सो केते कहूं मुख इन जुबान ।।४
उन सुन्दर वनोंमें भाँति-भाँतिके पशु पक्षी शोभायमान हैं तथा वे अपनी मीठी वाणीसे धनीजीका गुणानुवाद करते हुए क्रीड.ा कर रहे हैं. वे अनेक प्रकारके ऐसे खेल खेलते हैं, जिनका वर्णन इस जिह्वा द्वारा कहाँ तक करूँ ?

The splendour of animals and the birds in this abode and their melodious talks. The various types of games we played how can I describe with this physical tongue.

एही सुरत अब लीजो साथजी, भुलाए देओ सब पिंड ब्रह्मांड ।
जागे पीछे दुख काहेको देखे, लीजे अपना सुख अखंड ।।५
हे सुन्दरसाथजी ! परमधामकी इन लीलाओंमें अपनी सुरता (ध्यान) लगाओ तथा इस नश्वर शरीर व संसारके सुखोंको छोड. दो. जागृत होनेके पश्चात् इस संसारके कष्टोंको क्यों भोग रहे हो ? अब तो परमधामके अखण्ड सुखोंका ही अनुभव करो.
Now comtemplate in this O dear sundarsathji (focus within) and forget this body and the universe(physical). Now that you have awakened then why are you accepting the miseries of the world, accept the self bliss which is eternal and indivisible. (Awaken- Be conscious. Realize the self- nij, contemplate in the real being - the surat and the real abode Paramdham, experience the eternal joy- nijanand. Focus within and forget that is external the body, the world and the misery).

साथ मिल तुम आए धाम से, भूल गए सो मूल मिलाप ।
भूलियां धाम धनी के वचन, ना कछू सुध रही जो आप ।।६
तुम सब मिलकर परमधामसे इस नश्वर संसारके खेल देखनेके लिए आए हो. परन्तु यहाँ आने पर परमधामके मूल सम्बन्ध और पारस्परिक मिलनको भी भूल गए हो. इतना ही नहीं, इस खेलमें आनेसे पूर्व धामधनीजीने जो वचन कहे थे, उनको भी तुम भूल गए हो. तुम्हें तो स्वयंकी सुधि भी नहीं रही.
O my dear Sundarsath, you all have come here from the Supreme abode, you forgot how the original union is! You have forgotten the words of our Lord and you have no consciousness of your own self.
Who you are, where is your abode, Are you awake? What is the promise that you made to Lord?

धनी भेज्या फुरमान बुलावने, कह्या आइयो सरत इन दिन ।
खेलमें लाहा लेयके आपन, चलिए इत होए धन धन ।।
धामधनीने तुम्हें परमधाम बुलानेके लिए शास्त्रोंके द्वारा अपना सन्देश भेजा तथा कहा कि निश्चित समय पर जागृत होकर पुनः परमधाम लौट आओ. इस लिए धनीजीकी आज्ञाानुसार इस खेलमें उनकी पहचानका लाभ लेकर यहाँ भी धन्य होते हुए परमधाम चलो.
Lord has sent the message to call you and that your astral body must return to original abode. Understanding the Supreme and His grace in this game and feeling extremely grateful lets all go back.

चौदे लोक में झूठ बिस्तरयो, तामें एक सांचे किए तुम ।
हंसते खेलते नाचते चलिए, आनंद में बुलाइयां खसम ।।८
चौदह लोकोंमें झूठी मायाका ही विस्तार है. इस मायामें सद्गुरुने मात्र तुम (सुन्दरसाथ)को ही सत्य माना है. इसलिए अब इस खेलसे प्रसन्न चित्त होकर, हँसते, खेलते, नाचते तथा विनोद करते हुए परमधाम चलो. धामधनी परमधामके आनन्दमें हमें बुला रहे हैं.
The false perception(ego-body consciuousness) is spread in all 14 physical lokas and Sadguru you brought the truth and made this true. Merrily, dancing joyously let us go, our Lord has invited us in the eternal bliss.

अब छलमें कैसे कर रहिए, छोड देओ सब झूठ हराम ।
सुरत धनीसों बांध के चलिए, ले ब्रहा रस प्रेम काम ।।९
अब इस मिथ्या जगतमें कैसे रहा जाए ? इस झूठे संसारके कपट और प्रपञ्चपूर्ण व्यवहारको छोड. दो. धनीके विरह रसका आस्वाद लेते हुए प्रेममिलनकी कामना सहित धनीजीसे अपनी सुरता बाँधकर परमधाम चलो.
How can you continue to live in this world of illusion, let go all that is false and forbidden. Binding the soul with the Supreme Lord lets go and accept the juice of Brahm of divine love.
Brahm is ras swaroop , Brahm is Love. Bliss is one part of Brahm(Shyama) and souls are parts of the Bliss.

जो जो खिन इत होत है, लीजो लाभ साथ धनी पेहेचान ।
ए समया तुमें बहुर न आवे, केहेती हों नेहेचे बात निदान ।।१०
हे सुन्दरसाथजी ! यहाँ पर जितने पल व्यतीत हो रहे हैं, उनमें धामधनीकी पहचानका लाभ प्राप्त करो. ऐसा सुअवसर बार-बार नहीं मिलेगा. यह मैं तुम्हें निश्चयपूर्वक कह रहा हूँ.
Every moments that you spend here, benefit it to understand and know the Lord. This moment you shall never get again. I am saying you the true resolve.

अब जो घडी रहो साथ चरने, होए रहियो तुम रेन समान ।
इत जागे को फल एही है, चेत लीजो कोई चतुर सुजान ।।११
अब तुम जितने समय तक सुन्दरसाथके बीचमें रहो, तब तक चरण-रजके समान विनम्र होकर रहो. यहाँ पर जागृत होनेका यही तो लाभ (फल) है. कोई चतुर सज्जन यह रहस्य समझकर चेत जाए.
Once the soul is awakened in Paramdham, and also have realised the original relationship with the Beloved Lord, embodiment of bliss Shyama and BrahmShristis. At this moment you live amongst the other devotees (sundarsath), bowing at each other’s feet. Be humble like sand under their sole. This is the fruit of being awakened here, realise this O the intelligent and wise one. To be humble and soft and kind after awakening is a great opportunity to achieve the appreciation from the Lord.

ज्यों ज्यों गरीबी लीजे साथ में, त्यों त्यों धनी को पाइए मान ।
इत दोए दिन का लाभ जो लेना, एही वचन जानो परवान ।।१२
तुम सुन्दरसाथके साथ जितना अधिक विनम्र व्यवहार करोगे, उतना ही धनीजीका प्रेम और मान प्राप्त करोगे. यहाँ थोड.े ही दिन रहकर उसका लाभ लेना है. मेरे इन वचनोंको प्रमाणरूप समझो.
The more humility you bring in yourself, the more you will please the Lord and receive his admiration.
The more humble you behave the more you will receive Lord’s appreciation. Human life span is very short, these few moments are very crucial. You take advantage of these moments and take my words as the postulate.
अब जो साइत इत होत है, सो पीउ बिना लगत अगिन ।
ए हम सह्यो न जावहीं, जो साथ में कहे कोई कुटक वचन ।। १३
अब यहाँ पर जागृत होने पर धनीके बिना जो भी समय व्यतीत होगा, वह अग्निके समान दाहक सिद्ध होगा. यदि सुन्दरसाथ परस्पर व्यवहारमें कटु वचन बोलने लगें, तो वह मुझसे सहन नहीं हो सकेगा.
The moment after the awakening and separation of the Lord is like burning in fire. At such hour when one is awakened, life without Lord has become painful like flame, sundarsaths fight amongst with each other and spill bitterness to one another is like adding salt to the injury and is very unbearable to me says Greater Intelligence.
ज्यों ज्यों साथ में होत है प्रीत, त्यों त्यों मोही को होत है सुख ।
ज्यों ज्यों ब्रोध करत हैं साथ में, अंत वाही को है जो दुख ।।१४
ज्यों-ज्यों सुन्दरसाथमें पारस्परिक प्रेमभाव बढ.ता जाता है, त्यों-त्यों मुझे उत्तरोत्तर सुखका अनुभव होता है. परन्तु यदि सुन्दरसाथमें कोई विरोध पैदा करता हैं, तो अन्तमें उसे ही दुःख भोगने पड.ेंगे.
The behaviour that brings harmony and love amongs the sundarsath gives immense pleasure to Swami Prannathji. One who tries to create conflicts amongst the sundarsath, must suffer miserably later.
इत खिनका है जो लटका, जीत चलो भावे जो हार ।
महामत हेत कर कहें साथ को, विध विध की करत पुकार ।। १५
यह संसार क्षणभङ्गुर है, इसलिए यहाँ पर धनीजीकी आज्ञाानुसार चलकर इच्छित सफलता प्राप्त करो अथवा आज्ञााका उल्लङ्घन कर असफलताके भागी बनो. इस प्रकार महामति प्रेम पूर्वक कहकर सुन्दरसाथको जागृत करनेके लिए विभिन्न प्रकारसे पुकार रहे हैं.
In this momentary perishable world, either you accept Lord’s will or reject it. Remember this world is momentary either you leave this as a winner or a loser as you wish. The Greater Intelligence (Cosmic Universal Mind) out of compassion is persistently requesting everyone to be awakened using various technique.
प्रकरण ८९
श्री किरन्तन

Read this very carefully, my dearest Sundarsathji


दुनी नाम सुनत नरक छूटत, इनोंपें तो असल नाम।
दिल भी हकें अरस कह्या, याकी साहेदी अल्ला कलाम।।८४

इस नश्वर जगतके जीव भी अपने स्वामी (ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि) का नाम सुनते ही नरकसे छुटकारा प्राप्त करते हैं तो इन ब्रह्मात्माओंके पास तो अपने स्वामी पूर्णब्रह्म परमात्माका मूल नाम अनादि अक्षरातीत श्रीकृष्ण है. स्वयं परब्रह्म परमात्माने इनके हृदयको परमधामकी संज्ञाा दी है. कुरान आदि धर्मग्रन्थ भी इन्हीं ब्रह्मात्माओंकी साक्षीके लिए हैं.

Taking the name of masters of this world(Brahma, Vishnu, Mahesh) one gets relieved from the suffering of the hell and this NAME is the real one. The Lord has said the heart of the celestial souls is the Arash (Paramdham) and witness is given in the Holy Quran.

इलम भी हकें दिया, इनमें जरा न सक।
सो क्यों न करें फैल वतनी, करें कायम चौदे तबक।।८५

स्वयं अक्षरातीत श्रीकृष्णने प्रकट होकर इन ब्रह्मात्माओंको तारतम ज्ञाान दिया है, इसमें लेशमात्र भी सन्देह नहीं है. इसलिए ब्रह्मात्माएँ इस जगतमें परमधामका व्यवहार कैसे नहीं करेंगी ? जिन्होंने इन चौदह लोकोंको भी अखण्ड कर दिया है.
The wisdom about the Supreme Master given by the Lord, the celestial souls will never ever doubt. Why wouldn't their action show the path of Paramdham(their behaviour will reflect the essence of Paramdham i.e. they will walk the talk) and its they who will make all the 14 planes eternal.

प्रतिबिंब के जो असल, तिनों हक बैठे खेलावत।
तहां क्यों न होए हक नजर, जो खेल रूहों को देखावत।।८६

इन्हीं पूर्णब्रह्म परमात्माने इन ब्रह्मात्माओंके मूल स्वरूप (परआत्मा) को अपने निकट बैठाकर यह नश्वर खेल दिखाया है. इन पर-आत्माके ऊपर उनकी कृपादृष्टि क्यों नहीं होगी जिनको वे अपने चरणोंमें बैठाकर यह खेल देखा रहे हैं.
The reflection of the original, the Akshar and the souls are under the Supreme and He is programming this game. Then why would He not see the game that He is showing to the souls. He is aware of our every actions.

आडा पट भी हकें दिया, पेहेले ऐसा खेल सहूरमें ले।
जो खेल आया हक सहूर में, तो क्यों न होए कायम ए।।८7

सर्वप्रथम पूर्णब्रह्म परमात्माने ऐसा नश्वर खेल दिखानेका विचार कर इन ब्रह्मात्माओंके हृदयमें भ्रम (फरामोशी) का आवरण डाल दिया. जो नश्वर खेल सर्वप्रथम पूर्णब्रह्म परमात्माके हृदयमें आ गया है, वह कैसे अखण्ड नहीं होगा ?
First Lord thought of this game and then he gave the veil between Him and the souls. What game that crossed the mind of Supreme how can that be not eternal!

हुए इन खेल के खावंद, प्रतिबिंब मोमिनों नाम।
सो क्यों न लें इसक अपना, जिन अरवा हुजत स्यामा स्याम।।८८
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इन ब्रह्मात्माओंके प्रतिबिम्बके नाम भी स्वप्नवत् जगतके खेलके स्वामीके रूपमें माने गए हैं. जिनको अपने श्यामाश्यामका अधिकार प्राप्त है ऐसी आत्माएँ अपने हृदयमें अपने स्वामीका प्रेम क्यों धारण नहीं करेंगी ?

The image of the name of celestial souls will be the master of this game. Then why wouldn't the souls grace the love on whose heart resides Shyama and Shyam (The name of our Lord Shyam and Shyama is ceaselessly repeated in the heart of the souls and where there is contemplation of the Lord, He makes it His abode and resides there!)

बडी बडाई इनकी, जिन इसकें चौदे तबक।
करम जलाए पाक किए, तिन सबों पोहोंचाए हक।।८९

इन ब्रह्मात्माओंकी महिमा अत्यन्त श्रेष्ठ है. इनके प्रेमके प्रभावने चौदह लोकोंके जीवोंके कर्मबन्धन भस्मीभूत कर उनके हृदयको पवित्र बनाया एवं उन सभीको अखण्ड मुक्ति प्रदान की है.

It is the greatness of celestial souls who introduced the divine love in this 14 planes of existence. All the karma(fruits of good/bad deeds) is burnt and the souls are purified and all take them to the Supreme.
The brahmashristhi will show the path of Paramdham, will destroy all the karma(fruits of action) and purify the souls and take them to the Lord. Thus brahmashrishthi are very praiseworthy.

इनों धोखा कैसा अरस का, जिन सूरतें खेलावें असल।
खेलाए के खैंचें आपमें, तब तो असलै में नकल।।९०

इन ब्रह्मात्माओंको अपने मूल घर परमधामके विषयमें कैसे सन्देह हो सकता है जिनके मूल स्वरूप (पर-आत्मा) को अपने चरणोंमें बैठाकर श्रीराजजी यह नश्वर खेल दिखा रहे हैं. जब श्रीराजजी इस नश्वर खेलको दिखाकर इसे अपने हृदयमें संवरण कर लेंगे तब ब्रह्मात्माओंकी सुरताएँ भी अपने मूल स्वरूपमें ही जागृत होंगी.

How can the celestial souls(arvahen,chosen souls , brahmashristhi, friend of Lord) of Arash, Paramdham Supreme abode can ever be mistaken about the abode when Lord Supreme keeping the souls closely with him is showing this game of the perishable world.
After the sport is over, Lord will take back his attention from this and take back the celestial soul's astral body will return to the original self.

प्रकरण २१ सिनगार

श्री किरन्तन

देखो बाहेर माहें अंतर, लीजो सार को सार जो सार

सुनो साथजी सिरदारो, ए कीजो वचन विचार।

देखो बाहेर माहें अंतर, लीजो सार को सार जो सार ।।१

हे शिरोमणि सुन्दरसाथजी ! सुनो तथा इन वचनों पर विचार करो. इन वचनोंको बाहरसे श्रवण कर अन्दरसे मनन भी करो एवं इनके सारके भी सारतत्त्वको अन्तर आत्मामें धारण करो.

सुंदरबाई कहे धाम से, मैं साथ बुलावन आई।

धाम से ल्याई तारतम, करी ब्रह्मांड में रोसनाई।।२

सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी महाराज (सुन्दरबाई) ने कहा था कि मैं परमधामसे सुन्दरसाथको बुलानेके लिए आया हूँ. उन्हीं सद्गुरुने परमधामसे तारतम ज्ञाान लाकर पूरे विश्वको प्रकाशित कर दिया है.

सो संुदरबाई धाम चलते, जाहेर कहे वचन।

आडी खडी इंद्रावती, कहे मैं रेहे ना सकों तुम बिन ।।३

सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी (सुन्दरबाई) ने धाम चलते समय स्पष्ट कहा था कि परमधामके द्वार पर इन्द्रावती खड.ी होकर कह रही है कि मैं आपके बिना इस संसारमें नहीं रह सकती.

दई दिलासा बुलाए के, मैं लई सिखापन।

रूहअल्ला के फुरमान में, लिखे जामें दोए तन।।४

उन्होंने मुझे बुलवाकर सान्त्वना दी. मैंने उनके उपदेश भरे वचन ग्रहण किए. उन्होंने कतेब ग्रन्थोंका प्रसङ्ग उल्लेख करते हुए कहा कि श्यामाजी (रूहअल्लाह) संसारमें आकर दो तन (जामे) धारण करेंगी.

मूल सरूप बीच धामके, खेल में जामें दोए।

हरा हुल्ला सुपेत गुदरी, कहे रूहअल्ला के सोए।।५

ब्रह्मात्माओंके मूल स्वरूप श्रीश्यामाजीने इस खेलमें आकर दो तन (एक सद्गुरु श्री देवचन्द्रजीका और दूसरा मेरा शरीर) धारण किए. कतेब ग्रन्थोंमें इन दो जामों (वस्त्रों) को ईसाके हरे रङ्गके दिव्य वस्त्र (हरा हुल्ला) और सफेद रङ्गकी गुदडी बताई है.

हदीसों भी यों कह्या, आखर ईसा बुजरक।

इमाम ज्यादा तिनसें, जिन सबों पोहोंचाए हक।।६

हदीसोंमें भी ऐसा कहा गया है कि आत्मजागृति (कयामत) के समय ब्रह्मात्माओंकी शिरोमणि (सर्वश्रेष्ठ) श्री श्यामाजी श्री देवचन्द्रजीके रूपमें प्रकट हांेगी. जब वह दूसरा शरीर धारण कर इमाम महदी (अन्तिम समयके धर्मगुरु) के रूपमें प्रसिद्ध होंगी, तब उनको और अधिक ख्याति प्राप्त होगी. क्योंकि वे सभी जीवोंको परमात्माके मार्ग पर पहुचाएँगी.

खासी गिरो के बीच में, आखर इमाम खावंद होए।

ए जो लिख्या फुरमान में, रूहअल्ला के जामें दोए।।7

विशिष्ठ समुदाय-ब्रह्मात्माओंमें अन्तिम धर्मगुरु (आखरी इमाम) सबके स्वामीके रूपमें विराजमान होंगे. इनको ही कतेब ग्रन्थमें श्यामाजी (रूहअल्लाह) का दूसरा जामा (दूसरा शरीर) कहा गया है.

भी कह्या बानीय में, पांच सरूप एक ठौर।

फुरमान में भी यों कह्या, कोई नाहीं या बिन और।।८

सद्गुरुने अपनी वाणीमें भी कहा था कि पाँचों शक्तियाँ (जोश, आत्मा, तारतम, आदेश, मूलबुद्धि) एक ही स्थान पर प्रकट होंगी. कतेब ग्रन्थोंमें भी ऐसा कहा गया है कि अन्य कोई भी इन (धर्मगुरु-इमाम) से श्रेष्ठ नहीं होंगे.

कहे सुन्दरबाई अक्षरातीत से, आया खेल में साथ।

दोए सुपन ए तीसरा, देखाया प्राननाथ।।९

सद्गुरुने यह भी कहा कि अक्षरातीत धामसे ब्रह्मात्माएँ इस नश्वर खेलमें सुरता रूपसे आई हैं. धामधनीने इस स्वप्न जगतमें व्रज और रास तथा यह तीसरी जागनी लीला दिखाई है.

कहे फुरमान नूर बिलंद से, खेल में उतरे मोमन।

खेल तीन देखे तीन रात में, चले फजर इनका इजन ।।१०

कुरानमें कहा गया है कि नूरबिलन्द-उच्चधाम (परमधाम) से ब्रह्मात्माएँ मायावी खेलमें उतर आई हैं. उन्होंने लैल-तुल-कद्र (महिमामयी रात्रि) के तीन खण्डोंमें तीन लीलाएँ देखी हैं. प्रभातके समय (जागनी लीला) में उनका ही आदेश चलेगा.

यों विध विध द्रढ कर दिया, दे साख धनी फुरमान ।

अपनी अकल माफक, केहे केहे मुख की बान।।११

इस प्रकार सद्गुरु धनीने कतेब ग्रन्थोंकी अनेक साक्षियाँ देकर उक्त तथ्यको दृढ. कर दिया. संसारके अन्य लोगोंने भी अपनी बुद्धिके अनुसार सद्गुरुके इन वचनोंकी पुष्टि की है.

धनी फुरमान साख लेय के, देखाय दई असल।

सो फुरमाया छोड के, करें चाह्या अपने दिल।।१२

सद्गुरुने कतेब ग्रन्थोंकी साक्षी देकर पूर्णब्रह्म परमात्मा एवं ब्रह्मात्माओंके वास्तविक स्वरूपका दर्शन करवा दिया. कतेब ग्रन्थोंको माननेवाले लोग उनके ऐसे वचनोंको छोड.कर अपने मनोनुकूल अर्थघटन करते हैं.

तोडत सरूप सिंघासन, अपनी दौडाए अकल।

इन बातों मारे जात हैं, देखो उनकी असल।।१३

ऐसे लोग परमात्माके स्वरूप तथा उनके स्थान (सिंहासन-परमधाम) की अवगणना करते हैं और अपनी बुद्धिको परमात्माके प्रति दौड.ाते हैं. वे इन्हीं रहस्यों पर धोखा खा जाते हैं. यही उनकी वास्तविकता है.

बिना दरद दौडावे दानाई, सो पडे खाली मकान।

इसक नाहीं सरूप बिना, तो ए क्यों कहिए ईमान।।१४

परमात्माके विरहकी पीड.ाके बिना ही वे अपना बुद्धिचातुर्य्य दौड.ाते हैं. इसलिए वे लोग शून्य-निराकारमें ही फँस जाते हैं. परमात्माका स्वरूप न हो तो उनके प्रति प्रेम उत्पन्न नहीं होता है. (जब परमात्माके स्वरूपको ही नहीं मानते) तो फिर वे किसके प्रति विश्वास (ईमान) रखेंगे ?

दरदी जाने दिलकी, जाहेरी जाने भेख।

अन्तर मुस्किल पोहोंचना, रंग लाग्या उपला देख।।१५

धामधनीके विरहका अनुभव करनेवाली विरही आत्मा ही सद्गुरुके दिलकी बात समझ सकती है, बाह्य दृष्टिवाले लोग मात्र उनकी वेश-भूषाको ही महत्त्व देते हैं. जिन्होंने मात्र बाह्य रूप पर ही विश्वास किया है, उनको अन्तर्हृदय तक पहुँचना कठिन होता है.

इन विध सेवें स्याम को, कहे जो मुनाफक।

कहावें बराबर बुजरक, पर गई न आखर लों सक।।१६

इस प्रकार बाह्यदृष्टिसे परमात्माकी उपासना करनेवाले लोग मिथ्याचारी कहलाते हैं. स्वयंको तो वे ज्ञाानी कहलवाते हैं, किन्तु अन्त तक उनके हृदयसे दुविधा नहीं मिटती.

मूल ना लेवें माएना, लेत उपली देखादेख।

असल सरूप को दूर कर, पूजत उनका भेख।।१7

लोग मूल अर्थको समझे बिना मात्र ऊपरी (बाह्य) दृष्टि रखते हैं तथा चिन्मय स्वरूपको छोड.कर मात्र उनके बाह्य वेश (र्मूित आदि)की पूजा करते हैं.

इत बात बडी है समझ की, और ईमान का काम।

साथजी समझ ऐसी चाहिए, जैसा कह्या अल्ला कलाम ।।१८

यहाँ पर तो विशेष समझनेकी बात है तथा श्रद्धा एवं विश्वासकी ही आवश्यकता है. हे सुन्दरसाथजी ! समझ ऐसी होनी चाहिए जैसे रसूलने कुरानमें कहा है.

जेती बातें कहूं साथजी, तिनके देऊं निसान।

और मुख थें न बोल हूं, बिना धनी फुरमान।।१९

हे सुन्दरसाथजी ! मैं जितनी बातें कह रहा हूँ, उन सबके लिए प्रमाण भी देता हूँ. शास्त्रवचन एवं सद्गुरुके वचनोंके अतिरिक्त मैं अन्य एक भी बात अपने मुखसे नहीं कह रहा हूँ.

इन फुरमान में ऐसा लिख्या, करे पातसाही दीन।

बडी बडाई होएसी, पर उमराओं के आधीन।।२०

कतेब ग्रन्थोंमें ऐसा लिखा है कि भविष्यमें एक ही सत्यधर्मका शासन चलेगा. उसका महत्त्व बहुत बढ.ेगा, परन्तु वह धनवानों (प्रतिष्ठितों) के अधीन रहेगा.

कहे कुरान बंद करसी, इनके जो उमराह।

एक तो करसी बन्दगी, और जो कहे गुमराह।।२१

कुरानमें यह भी कहा है कि ऐसे अग्रणी-धनवान लोग कुरानके गूढ. अर्थोंको छिपा देंगे. एक ओर सच्ची आत्माएँ सत्यकी उपासना करेंगी तथा दूसरी ओर ऐसे लोग सबको पथभ्रष्ट (गुमराह) करेंगे.

मैं करूं खुसामद उनकी, मैं डरता हों उनसे।

जो कहावें मेरे उमराह, और मेरे हुकम में।।२२

रसूल मुहम्मदने कहा था कि मैं ऐसे अग्रणी व्यक्तियोंसे डरता हूँ. इसलिए ऐसे लोगोंकी चाटुकारिता (खुशामद) करता हूँ कि ऐसे लोग मेरे आदेशके नाम पर लोगोंको पथभ्रष्ट करेंगे.

ऐसा ना कोई उमराह, जो भांने दिल का दुख।

जब करसी तब होएसी, दिया साहेब का सुख।।२३

ऐसे कोई भी अग्रणी नहीं हुए जो किसीके भी दिलके दुःखको दूर कर सकें. जब वे दूसरोंका दुःख दूर करेंगे, तब उन्हें परमात्माका अखण्ड सुख प्राप्त होगा.

एही बडा अचरज, जो कहावत हैं बंदे।

जानों पेहेचान कबूं ना हुती, ऐसे हो गए दिल के अंधे ।।२४

यह आश्चर्यकी बात है कि जो खुदाके बन्दे (सेवक) कहलाते हैं उन्हें मानों कभी परमात्मा (खुदा) की पहचान ही नहीं हुई हो, ऐसे वे दिलके अन्धे हो गए हैं.

मैं बुरा न चाहूं तिनका, पर वे समझत नाहीं सोए।

यार सजा दे सकत हैं, पर सो मुझसे न होए।।२५

रसूल मुहम्मदने यह भी कहा कि ऐसे लोगोंका भी मैं बुरा नहीं चाहता, किन्तु वे समझते ही नहीं. उनके मित्र उन्हें दण्ड (सजा) दे सकते हैं, किन्तु यह मुझसे नहीं हो सकता.

मेरे दिल के दरद की, एक साहेब जाने बात।

ऐसा तो कोई ना मिलया, जासों करों विख्यात।।२६

मेरे दिलकी वेदना एक परमात्मा ही जान सकते हैं. मुझे ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला, जिससे मैं अपने दिलकी बात कह सकूँ.

जो कोई साथ में सिरदार, लई धाम धनी रोसन।

खैंच छोड सको सो छोडियो, ना तो आपे छूटे हुए दिन ।।२7

इसलिए जो अग्रणी सुन्दरसाथ धामधनीके ज्ञाानका प्रकाश लेकर चल रहे हैं, वे पारस्परिक खींचातानीको छोड. दें, अन्यथा समय आने पर स्वतः ही यह छूट जाएगा अर्थात् इसे छोड.ना ही पड.ेगा.

मेरे तो गुजरान होएसी, जो पडया हों बंध।

जो कदी न छूटया रात में, तो फजर छूटसी फंद ।।२८

मेरा तो इसी भाँति निर्वाह हो ही जाएगा क्योंकि मैं सुन्दरसाथकी जागृतिके लिए बँधा हुआ हूँ. जो खींचातानी अज्ञाानरूपी रात्रिमें नहीं छूटी, वह तारतम ज्ञाानका प्रभात होने पर तो अवश्य छूट जाएगी.

धाम धनी दई रोसनी, जो बडे जमातदार।

सोभा दई अति बडी, जिनके सिर मुद्दार।।२९

ब्रह्मात्माओंके अग्रणी धामधनी सद्गुरुने मुझे तारतम ज्ञाानके प्रकाश द्वारा जाग्रत किया एवं जागनीका दायित्व सौंपकर सुन्दरसाथमें मेरी शोभा बढ.ाई.

मैं इन सुख दुख से ना डरूं, मेरे धनी चाहिए सनमुख ।

मोहे एही कसाला होत है, जब कोई देत साथ को दुख ।।३०

अब मैं इन सांसारिक सुख-दुःखोंसे नहीं डरता. मैं तो मात्र यही चाहता हूँ कि धामधनी ही मेरे सम्मुख होने चाहिए. जब कोई सुन्दरसाथको कष्ट पहुँचाता है, मुझे मात्र इसीसे दुःख होता है.

मेरी एक द्रष्टि धनीय में, दूजी साथ के माहें।

तो दुख आवे मोहे साथ को, ना तो दुख मोहे कहूं नाहें ।।३१

मेरी एक दृष्टि धनीके प्रति है, तो दूसरी दृष्टि सुन्दरसाथकी ओर लगी हुई है. इसलिए सुन्दरसाथको दुःखी देखकर मुझे पीड.ा होती है, अन्यथा मुझे किसी प्रकारका दुःख नहीं है.

कोई कोई अपनी चातुरी, ले खैंच करे मूढ मत।

अकल ना दौडी अंतर लों, खैंचें ले डारे गफलत।।३२

कई लोग मूर्खोंकी भाँति अपनी बुद्धि चातुर्य्यसे परस्पर खींचातानी करते हैं. उनकी बुद्धि शास्त्रोंकी गहराइयों (गूढ.ार्थों) तक नहीं पहुँचती. उनकी अज्ञाानता ही उन्हें खींचकर भ्रममें डालती है.

ए तो गत संसार की, जो खैंचाखैंच करत।

आपन तो साथी धाम के, है हममें तो नूर मत।।३३

संसारका व्यवहार ही ऐसा है कि यहाँ पर लोग परस्पर खींचातानी ही करते रहते हैं. हम तो परमधामकी ब्रह्मात्माएँ हैं, हमारे अन्दर तो जाग्रत बुद्धिका प्रकाश है.

मोमिन बडे आकल, कहे आखर जमाने के।

इनकी समझ लेसी सबे, आसमान जिमी के जे।।३४

ऐसा कहा गया है कि अन्तिम समयमें प्रकट होनेवाली ब्रह्मात्माएँ बड.ी बुद्धिशाली हांेगीं, स्वर्गादिके देवतागण तथा पृथ्वीके मानव सभी इनसे ही ज्ञाान प्राप्त करेंगे.

जो कोई निज धाम की, सो निकसो रोग पेहेचान।

जो सुरत पीछी खैंचहीं, सो जानो दुसमन छल सैतान।।३५

जो परमधामकी आत्माएँ हैं, वे राग-द्वेषरूपी रोगको पहचानकर उससे मुक्त हो जाएँ. परमधामकी ओर जा रही सुरताको जो मायाकी ओर खींचते हैं, उन्हें ही छल-कपट वाले शत्रु समझना.

अब बोहोत कहूं मैं केता, करी है इसारत।

दिल आवे तो लीजो सलूक, सुख पाए कहे महामत।।३६

अब मैं अधिक क्या कहूँ ? मैंने तो मात्र सङ्केत ही किया है. अच्छा लगे तो उसे व्यवहारमें उतार लेना. महामति कहते हैं, ऐसा करने वालोंको अखण्ड सुख प्राप्त होगा.

प्रकरण ९४

श्री किरन्तन

श्री किरन्तन

सोई सोहागिन धाममें, जो करसी इत रोसन।

तौल मोल दिल माफक, देसी सुख सबन।।१

वही आत्मा परमधामकी सुहागिनी है, जो इस संंसारमें परमधामके ज्ञाानको प्रकाशित करे. वह सभी आत्माओंका सही मूल्याङ्कन कर सभीको अपनी-अपनी योग्यतानुसार अखण्ड सुख प्रदान करेगी.

Only the celestial souls who have original relationship with the Lord, they are bride of the Lord Supreme, can enlighten and judge from their heart and grant the bliss to all. They can understand and judge the heart within(They will not all that one tries to show but what is within) and bestow happiness to all as per their heart.

These souls will have total faith in their abode -> will value the treasures of the abode-> they will be steadfast in their belief.

साथ माहें सैयां धामकी, ईमान वाली सिरदार।

सो धन धामको तौलसी, करसी द्रढ निरधार।।२

सुन्दरसाथमें भी परमधामकी आत्माएँ ही विश्वासी तथा शिरोमणि कहलाएँगी. वे परमधामकी सम्पदाका मूल्याङ्कन करेंगी और उसे अपने हृदयमें दृढ. करेंगी.

Among the Sundarsath only the souls from Paramdham will have faith and will be the leader of other souls. She can understand the treasures of the Paramdham and accordingly determine herself.

Remember sundarsath from dham they have the faith and they can lead. They can value the treasures of Paramdham(what is important and what is not) and will be steadfast in their heart.

First they will judge the awakend mind of the Akshar->judge inspiration of the Lord->judge the love described in Tartam sagar-> they will see the reality

पेहेले तौले बुध जागृत, पीछे तौले धनी आवेस।

और तौले इसक तारतम, तब पलटे उपलो भेस।।३

वे सर्वप्रथम जागृत बुद्धिका और धनीके आवेशका मूल्याङ्कन करेंगी. पश्चात् प्रेम और तारतमका भी मूल्याङ्कन करेंगी. तब उनकी बाह्य (लौकिक) मान्यताएँ बदल जाएगी.

First they will judge the cosmic intelligence and then the inspiration of Lord and then they will judge the love shown by tartam then all the outward display/formalities etcs will change.

(The souls from paramdham will know what intelligence, cosmic intelligence is!) They can differenciate between cosmic intelligence and inspiration of the Supreme. They can only value the love revealed in tartam then all the false perception will vanish and one will be exposed to the reality.

Then they will judge the astral body-> judege the will of the Lord-> all the powers inherent in the celestial souls -> they will judge the Lord’s swaroop(appearances)

Then they will judge the astral body -> will of the lord -> the inherent powers residing within the celestial souls-> appearances of the Lord

तब तौलासी वासना, और तौलासी हुकम।

सब बल तौलें बलवंतियां, और तौलें सरूप खसम।।४

तब ब्रह्मवासनाओं एवं धनीजीकी आज्ञााका मूल्याङ्कन होगा. ऐसी शक्तिशाली ब्रह्मात्माएँ ही अपने धनीके स्वरूपके साथ-साथ सभी वस्तुओंका मूल्याङ्कन कर सकेंगी.

Then they will judge the astral body of the celestial souls and then they will judge will of the Lord. All the powers will be judged by these powerful souls and then they will judge the swaroop of the beloved.

->enlighten themselves and prove their worth-> remember Lord’s promise ->fulfill the promise too

रोसन करसी आपे अपना, जो सैयां जमातदार।

ए कौल अव्वल जोस का, जो किया है करार।।५

ऐसी जो अग्रणी ब्रह्मात्माएँ होंगी, वे स्वयं ही अपना महत्त्व प्रकट करेंगी. संसारमें जाकर न भूलनेकी जो प्रतिज्ञाा परमधाममें की थी, उसे वे ही निभाएँगी.

They will throw light upon their ownself that her Lord is Supreme. She will also remember the promise that she made with Lord originally and she will also fulfill it by turning away from the world and seeking Lord every moment.

(They have said that they will remember their Lord and the world of illusion cannot affect them.)

-----The truth ShyamShyam in Paramdham----

->gain the confidence of abode->can judge all others-> even Shyam, Shyama and sundarsath and their value

जो सैयां हम धाम की, सो जानें सब को तौल।

स्याम स्यामाजी साथ को, सब सैयोंपे मोल।।६

परमधामकी हम ब्रह्मात्माएँ ही सबका मूल्याङ्कन कर सकतीं हैं. श्याम-श्यामाजी एवं ब्रह्मसृष्टिका मूल्याङ्कन (महत्त्व) भी हम ब्रह्मात्माओंको ही ज्ञाात है.

Then they will gain the confidence that we belong to Supreme abode, they can judge all others.

They can only understand the value of Shyam, Shyamaji and all the sundarsath that is in Paramdham. A brahmashristi will get the message what Mahamati is trying to reveal.

Then radiant light of wisdom, the power of abode is felt at this stage.

नूर रोसन बल धाम को, सो कोई न जाने हम बिन।

अंदर रोसनी सो जानहीं, जिन सिर धाम वतन।।7

परमधामके दिव्य ज्ञाानके प्रकाशके सामर्थ्यकी जानकारी हम ब्रह्मात्माओंके अतिरिक्त किसीको नहीं है. जिनको परमधामका दायित्व प्राप्त है, वे ही उसके अन्दरके प्रकाशको जान सकतीं हैं.

No one but the divine celestial souls knows the splendour, illumination and power of the supreme abode paramdham. Those who are acquainted with light within, only those can experience the original abode of the supreme and bear the responsibility of Paramdham.

The splendour of the Paramdham, no one but the celestial souls can know. Those who are enlightened within only they can know and who belongs to the original abode Paramdham.

The love and faith is developed for the master of the abode and also know the will that which awakened inspiration and then they will judge the value of the Lord His treasures(love) and the abode

इसक ईमान धनी धाम को, और जोस जागृत पेहेचान ।

तौले धनी धन धाम का, यों कहे कुरान निसान।।८

ब्रह्मात्माएँ ही धामधनीका प्रेम, उनके प्रति विश्वास, धनीका जोश, आत्म-जागृति एवं धनीकी पहचान तथा परमधामका महत्त्व समझ सकतीं हैं, ऐसे सङ्केत कुरानमें दिए गए हैं.

The love and faith towards our Dhani Dham and the inspiration, awakened consciousness and the knowledge of the Lord, can value the treasures of the Lord, abode so says the signs of holy Quran.

The souls will realize that they are the part of the chief soul and the chief soul is the part of Lord. The role of chief soul is always uniting the souls with Lord and not otherwise…..

साथ अंग सिरदार को, सिरदार धनी को अंग।

बीच सिरदार दोऊं अंग के, करे न रंग को भंग।।९

सभी ब्रह्मात्माएँ श्यामाजीकी अङ्गरूपा हैं तथा श्यामाजी श्रीराजजीकी अङ्गरूपा हैं. इसीलिए श्रीश्यामाजी दोनों अङ्गों (श्रीराजजी एवं ब्रह्मात्माओं) के प्रेम रसको न्यून (कम) होने नहीं देतीं.

All the sundarsath(souls) are the body parts of the chief soul (Roohallah, Shyama) and Shyama is part of the Lord. The chief soul between two beings does not allow the love to diminish.

(Remember this chaupai is cue, Shyama Devachandraji is only between the souls and the Supreme Lord who never shall disrupt the affection between the souls a...nd the Supreme. For us only tartam gyaan brought by Shri Devachandraji presented to us by Mahamati Prannath is Shyama and nothing else. We must not allow anybody to intervene in between us.

He has also warned us that the danger of people misguiding us and taking us away from Lord exists in his later chaupai.)

The souls realize that the chief soul has very soft corner for all the souls and she unites the soul with Lord (as there is some sort of amnesia in the souls which keeps them away from Lord.) The soul is awakened by the chief soul.

साथ धाम के सिरदार को, मोमिन मन नरम।

मिलावे और धनीय की, दोऊ इनके बीच सरम।।१०

सुन्दरसाथके लिए श्यामाजीका हृदय द्रवित (नरम) रहता है. सभी सुन्दरसाथको जागृतकर धामधनीकी पहचान करवानेके दायित्वको निभानेमें ही श्यामाजीका गौरव है.

The leader of the souls (Shyma Roohallah) has very soft corner for the souls and she is trying to unite them with the Lord as there is some sort of shyness/shamefulness between them.

So far they have inspected this and then they will take responsibility of themselves and other souls. They will become the instrument in carrying the will of the Lord.

इत परीख्या प्रगट, उठावें अपना भार।

और बोझ निबाहे साथ को, और बोझ मसनंद भरतार ।।११

उनकी यही प्रत्यक्ष परीक्षा है कि उन्होंने अपने दायित्वका वहन किया. उन्होंने सुन्दरसाथको जागृत करनेका दायित्व एवं धामधनीके वर्चस्व (पदवी) को बनाए रखनेका कर्तव्य निभाया.

This is their test that they understood the duty and has taken their responsibility. They will also be responsible for other celestial souls and their Lord on whom they fully rely upon. Awaken Oh soul of Lord, you won't let Lord and other souls down, would you?

How to do it…. Only through love, patience, humility they understand this. Destroying ego consciousness.

ए तो पातसाही दीन की, सो तो गरीबी से होए।

और स्वांत सबूरी बिना, कबहूं न पावे कोए।।१२

धर्मके साम्राज्यका वहन तो विनम्रतासे ही हो सकता है. शान्ति (सन्तोष) और धैर्यके बिना ऐसे साम्राज्यको कोई भी प्राप्त नहीं कर सकता.

Our kingdomof Lordis of poor (lowered ego) and hence only can be done with humility. Without the calmness and patience this can never be done.

The souls realize the whole affair is matter of within and deep within everyone is seeking love hence first they give the heart to win their heart and this way they will achieve their goal of taking everyone to the feet of Lord.

ए लसकर सारा दिल का, सो दिलबरी सब चाहे।

दिल अपना दे उनका लीजिए, इन विध चरनों पोहोंचाए ।।१३

ये सारी सेनाएँ (शान्ति, धैर्य आदि) हृदयकी ही हैं, इसलिए सबलोग हृदयकी उदारता (दिलबरी) चाहते हैं. अतः अपने दिलको देकर दूसरोंका दिल जीत लीजिए, इसीके द्वारा धामधनीके चरणोंमें पहुँचा जा सकता है.

This is a battalion of within and hence this demands that radiates from the heart (love and compassion), by giving your heart you have to win their heart and by this method you bring them to the feet of the Lord.

WARNING: Those who take souls away from the master how can such be the leader souls.

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जो कोई उलटी करे, साथी साहेब की तरफ।

तो क्यों कहिए तिन को, सिरदार जो असरफ।।१४

जो व्यक्ति धामधनीकी ओर उन्मुख आत्माओंको उनसे विमुख करनेका प्रयत्न करता है, तो ऐसे व्यक्तिको प्रतिष्ठित अथवा अग्रणी कैसे माना जाए?

And those who create confusion and make sundarsath away from the Saheb(the master), so how can one call such a person leader?

Big or Small will have to follow the true leader the chief soul Roohallah Shyama avtar Devachandraji who brought the knowledge of abode.

कह्या कुराने बंद करसी, इन के जो उमराह।

आधीन होसी तिन के, जो होवेगा पातसाह।।१५

कुरानमें कहा है कि ऐसे अग्रणी (प्रतिष्ठित) व्यक्ति ही धनीके आदेशकी अवहेलना करेंगे. धर्मके सम्राटको भी ऐसे लोगोंके अधीन रहना पडे.गा.

The holy Quran has said that the people who are rich and respected will not obey its command (the innocent, humble and downtrodden will obey). Such disobedient people also must follow the souls of Paramdham (otherwise they will not get God)

लटी तिन से न होवहीं, जो कहे सिरदार।

सबों सिरदार एक होवहीं, मिने बारे हजार।।१६

सभी ब्रह्मात्माओंमें शिरोमणि कहलाने वाली श्यामाजीसे किसी भी प्रकारकी भूल नहीं होगी, क्योंकि सभी ब्रह्मात्माओंके शिरोमणि तो एक श्यामाजी ही हैं.

There will be no mistake from Shyama-RoohAllah the leader of the souls, because she is the supreme leader of all the 12,000.

The celestial souls will never doubt the RoohAllah Shyama who has come to earth as Devachandraji Maharaj.

लिख्या है कुरान में, छिपी गिरो बातन।

सो छिपी बातून जानही, ए धाम सैयां लछन।।१7

कुरानमें लिखा है कि ब्रह्मात्माएँ छिपी हुईं हैं. वे ही कुरानके गूढ. रहस्योंको समझेंगी. परमधामकी आत्माओंके ये ही लक्षण हैं.

The holy Quran has written that these group of souls of Arsh Ajeem (Paramdham) is hidden but they will understand the secret message in the holy Quran. They will decipher the code of scriptures and this is the trait of the celestial souls (arvaahen).

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भी लिख्या कुरान में गिरो की, सोहोबत करसी जोए ।

निज बुध जागृत लेय के, साहेब पेहेचाने सोए।।१८

कुरानमें और भी लिखा है कि जो ऐसी आत्माओंका सङ्ग करेंगे, वे भी उनसे जागृत बुद्धि प्राप्त कर अपने धनीको पहचानेंगे.

It is written in holy Quran that those who support or accompany this group of celestial souls the intelligence their self (nij budh) will be awakened (self illumination) and they will know the same Saheb the master.

Mahamati has first make us known the master is Shyam Shyama in Paramdham, He is the Saheb our master.

First awaken your inner self's intelligence and recognize the same Master that the celestial souls have come to show.

(Check Mahamati is asking nijbudh means the intelligence of the self(aatma) and not somebody else’s interpretation)!

फुरमान कहे गिरो साहेदी, देसी कारन पैगंमर।

सब केहेसी महंमद का देखिया, तब कुफर तोडसी मुनकर ।।१९

कुरानका कहना है कि आत्माओंका यह समुदाय ही पैगम्बरकी साक्षी देगा. वे आत्माएँ ही रसूल मुहम्मदके म्याराजकी बातें करेंगी, तब इन बातोंसे नास्तिकोंका भ्रम टूट जाएगा.

Holy Quran says these celestial souls (rooh from arasajeem) will provide the witness to Mohamad paigambar’s message, they will disclose the Mohamad saheb’s conversation in the Myaraj and this will end all the disbeliefs.

करे पाक जिमी आसमान को, ऐसी बुजरक गिरो सोए ।

होसी रुजू माएने सब इन से, इन जैसी दूजी न कोए ।।२०

वे ब्रह्मात्माएँ ऐसी महान होंगी कि वे पृथ्वी तथा आकाशके लोगों (मानव तथा देवों) को भी पवित्र बनाएँगी. इनसे ही सभी धर्मग्रन्थोंके रहस्य स्पष्ट होंगे. अतः इनके समान अन्य कोई नहीं होंगे.

These celestial souls will purify the whole physical world (earthlings and other beings that exist like dev, fariste.angel) they will enlighten their heart with the faith of Lord and will start searching within and they will also be able to understand the truth in the scriptures and hence there will be none like them.

गिरो माफक सिरदार चाहिए, जैसा कह्या रसूल।

खैंच लेवें दिल साथ को, सब पर होए सनकूल।।२१

रसूलने कहा है कि ऐसी महान आत्माओंके समुदायका शिरोमणि भी ऐसा ही महान होना चाहिए, जो प्रसन्नचित्त रहकर सभी सुन्दरसाथके हृदयको अपनी ओर खींच सके.

The head of such superior souls must be really great such is said by Rasool Mohamad. They will attract the heart of all other celestial souls grant bliss to everyone.

Mahamati has always praised Shyama avtar Devachandraji as she brought the tartam gyan knowledge of the vatan abode.

ए मैं कही तुम समझने, ए है बडो विस्तार।

बोहोत कह्या मेरे धनी ने, तुम करोगे केता विचार ।।२२

तुम्हें समझानेके लिए ही मैंने यह संक्षेपमें कहा है, परन्तु इसका विस्तार अत्यधिक है. धामधनी सद्गुरुने तो बहुत कुछ कहा है, किन्तु तुम उस पर कितना विचार कर पाओगे ?

I have said this to make you (other celestial souls) understand but this is very vast (Just imagine the knowledge of creation, its law and the knowledge of Paramdham, its spledour, the Lord, Shyama and the souls). Lord Devachandraji my master has said a lot to me but how much can you understand. (This cosmic knowledge is vast but the wisdom of the beyond is unlimited and infinite but it will be revealed to all might some more lifetime but we cannot wait that long, we have to awaken ourselves right now!)

ले साख धनी फुरमान की, महामत कहें पुकार।

समझ सको सो समझियो, या यार या सिरदार ।।२३

धामधनी सद्गुरु तथा धर्मग्रन्थोंकी साक्षीके आधारपर महामति पुकार कर कह रहे हैं. ब्रह्मआत्माएँ अथवा शिरोमणि सखियाँ इस रहस्यको जितना समझ सकें, उतना समझ लें.

My master has given lots of proof and witnesses from the holy Quran the (Mahamat)Greater Intelligence is telling it as a call. If you can understand it then try it if you are celestial soul or leader of the souls.

I am narrating you in brief, but this is very vast. Lord Devachandrajee has spoken more but how much can you be able to think over it or understand it. Lord Devachandraji has given proofs from the scriptures, Mahamati is announcing it. If you can understand it then do it if you are the celestial soul or the head of the celestial souls.

What Shri Devachandraji has said is very vast and will be elaborated and revealed to the whole of 14 lokas(tabak) and the creation from the cosmic intelligence, the tartamsagar book is in brief meant for celestial souls from the beyond.

प्रकरण ९५

श्री किरन्तन

कृपानिध सुंदरवर स्याम

कृपानिध सुंदरवर स्याम, भले भले सुंदरवर स्याम।

उपज्यो सुख संसार में, आए धनी श्री धाम।।१

श्री श्यामाजीके वर श्याम-श्रीराजजी कृपाके सागर तथा अत्यन्त सुन्दर हैं. ऐसे धामके धनीके प्रकट होने पर संसारमें अखण्ड सुखका उदय हुआ.
...
प्रगटे पूरन ब्रह्म सकल में, ब्रह्म सृष्टि सिरदार।

ईस्वरी सृष्टि और जीव की, सब आए करो दीदार।।२

ब्रह्मसृष्टियोंकी शिरोमणि श्यामाजी पूर्णब्रह्मका आवेश लेकर इस संसारमें सद्गुरुके रूपमें पधारी हैं. ईश्वरीसृष्टि एवं जीवसृष्टि सभी आकर उनके दर्शन करें.

नित नए उछव आनंद में, होत किरंतन सार।

वैस्नव जो कोई षट दरसनी, आए इष्ट आचार।।३

धामके सुन्दरसाथ नित्य नवीन उत्साहके साथ धनीजीके गुणानुवादके लिए कीर्तनोंका गान कर आनन्द मङ्गलके साथ उत्सव मनाते हैं, वैष्णव, षट्दर्शनके ज्ञााता और विभिन्न इष्टों तथा आचारको मानने वाले लोग भी दर्शनके लिए आने लगे.

भोजन सरवे भोग लगावत, पांच सात अंन पाक।

मेवा मिठाई अनेक अथाने, विध विध के बहु साक ।।४

सभी मिलकर मेवा-मिठाई पक्वान्न सहित विभिन्न प्रकारकी सामग्रियाँ, भाँति-भाँतिके अचार, नाना प्रकारके शाक तैयार कर धामधनीको भोग लगाते हैं. (पाँच-सातका तात्पर्य छप्पन्न प्रकारका व्यञ्जन (भोग) और एक जल इस प्रकार सतावन (५) प्रकारके भोग भी माना जाता है).

अठारे बरन नर नारी आए, साजे सकल सिनगार।

प्रेम मगन होए गावें पिया के, धवल मंगल चार।।५

अठारह वर्णके स्त्री-पुरुष सुन्दर वस्त्राभूषणसे सजकर आते हैं. धनीजीके प्रेमानन्दमें मग्न होकर, धामधनीके गुणानुवादके साथ विविध गीतों, मङ्गलाचरणका गान करते हैं.

कै गंधर्व गुन गावें बजावें, कै नट नाचनहार।

कै रिषी मुनी वेद पढत हैं, वरतत जै जै कार।।६

कई सङ्गीतशास्त्री (गन्धर्व), गवैये विभिन्न प्रकारके वाद्ययन्त्रोंकी सुन्दर सुरावलीके साथ धनीजीके गुणोंका गान करते हैं, नर्तक नृत्य करते हैं, ऋषि-मुनि वेद मन्त्रोंका पठन-पाठन करते हैं, इस प्रकार सर्वत्र जय-जयकार होती है.

जब की माया ए भई पैदा, ए लीला न जाहेर कब ।

व्रज रास और जागनी लीला, ए जो प्रगटी अब।।

जबसे यह माया (मायावी खेल) उत्पन्न हुई है, तबसे आज तक यह ब्राह्मी लीला प्रकट नहीं हुई थी. अब यह लीला व्रज, रास और जागनीके रूपमें नवतनपुरीमें प्रकट हो गई है.

चारों तरफों चौदे लोकों, ए सुध हुई सबों पार।

बाजे दुंदभी भई जीत सकल में, नेहेचल सुख बेसुमार ।।८

चौदह लोकोंकी चारों दिशाओंमें ब्राह्मी लीलाकी सुधि हुई, चारों ओर विजयकी दुन्दुभी बजने लगी, सर्वत्र विजय पताका फहराने लगी. इस प्रकार सभीको अपार तथा अखण्ड सुखका अनुभव हुआ.

जोत उदोत कियो त्रिलोकी, उडयो मोह तत्व अंधेर।

वरस्यो नूर वतन को, जिन भांन्यो उलटो फेर।।९

धनीजीके अखण्ड ज्ञाानकी ज्योतिका प्रकाश तीनों लोकोंमें फैल जानेसे मोह तत्त्वका अन्धकार मिट गया. परमधामके दिव्य ज्ञाानके तेज (नूर) की वर्षा हुई, जिससे आवागमनरूपी मायावी बन्धनोंका नाश हो गया.

प्रगटे ब्रह्म और ब्रह्मसृष्टि, और ब्रह्म वतन।

महामत इन प्रकास थें, अखंड किए सब जन।।१०

इस संसारमें पूर्णब्रह्म परमात्मा, ब्रह्मसृष्टि और ब्रह्मधाम (परमधाम) की पहचान प्रकट हो गई. महामतिने इस अखण्ड ज्ञाानके द्वारा संसारके सभी जीवोंको अमरत्व प्रदान किया है.

प्रकरण ५7 श्री किरन्तन

Pehele Aap Pehchano Re Sadhao

Pehele Aap Pehchano Re Sadhao, Pehele Aap Pehchano l
Bina Aap Chinhe Paar Brahmko, Kaun Kahe Mai Jano ll 1

Mahamati Kahte Hai, He Sadhujan ! Sarva Pratham Svayam (Aatma) Ko Pahchano. Kyonki Svayamko Pahachane Bina Kaun Kah Sakta Hai Ki Maine Parbrahm Parmatma Ko Pahchan Liya Hai.
....................
...
Piche Dhundho Ghar Aapno, Tab Kaun Thaur Theherano l
Jab Lag Ghar Pavat nahi Apno, Tolo Bhatkat Firat Bharmano ll 2

Yadi Sharir Chhodne Ke Paschat Apne (Aatma ke) Mul Ghar Ko Dhundhne Lagoge, Tab Kis Sthanme Thahar Paoge? Kyonki Jab Tak Aatma Apne Mul Ghar ko Prapt Nahi Kar Leti, Tab Tak Brahm Me Padkar Bhavsagar Me Hi Bhatakti Rahti Hai.
....................

Panch Tatva Mil Mohol Rachyo Hai, so Antrikh Kyo Atkano l
Yaake Aaspaas Atkaav Nahi, Tum Jaag Ke Sanse Bhano ll 3

(Pruthvi, Jal, Tej, Vaayu Aur Aakash In) Pancho Tatvo Ko Milakar Is Nashvar Brahmandroopi Mahal Ki Rachna Ki Gayi hai. yah antariksh Me Kaise atak Raha Hai? Iske Aappaas Ya Uper Niche Koi Sahara Tak Nahi Hai. He sajjan Vrund! Svayam Jagrut Hokar Is Sanshay Ka Navaran karo.
....................

Nind Udae Jab Chinhoge Aapko, Tab janoge Mohol Yo Rachano l
Tab Aapai Ghar Paoge Apno, Dekhoge Alakha Lakhano ll 4

He Sadhujan! agyanroopi Nidra Ko Dur Kar Jab Svayam Ko Pehchanoge, Tab Gyaat Hoga Ki Is Brahmandroopi Mahal Ki Rachna Kis Prakar Hui Hai? Tab Tumhe Svayam Apne Mul Ghar Paramdham Ki Prapti (Anubhuti) Ho Jaegi Tatha Purnbrahma Parmatma Shree Rajji Ke Darshan Bhi Honge.
....................

Bole Chale Par Koi Na Pehchane, Parkhat Nahi Pehchano l
Mahamat Kahe Manhe Paar Khojoge, Tab Jae Aap Olkhano ll 5

Anek Logo Ne Parmatma ke vishay Me Gyanopadesh diya Tatha Anek Logo Ne Parmatma Ki Prapti Ke Lie sadhnae Bhi Ki Kintu Kisi Ne Bhi Unhe Nahi Pehchana. Is Prakar Prayatna Karne Per Bhi Pahchan Yogya Parbrahm Parmatma Pahchane Nahi gae, Mahami Kahte Hai, antermukh Hokar Jab Param Tatva Ko dhundhoge, Tab Aatma Aur Parmatma Ki Svatah: Pahchan Ho Jaegi.

Pranam

Here is something for non-बेलिएवेर्स........

Here is something for non-believers and who create doubts.

सो काफर पडे माहें दोजक, आखर को जो ल्यावें सक
जो मोमिन हैं खबरदार, डरते रहें परवरदिगार ।।६

... ... ऐसे अविश्वासी लोग नारकीय यातनाओंको भोगते हैं जो अन्तिम समयमें अवतरित परमात्माके प्रति सन्देह करते हैं. जो ब्रह्मात्माएँ धर्ममें सचेत रहतीं हैं वे परमात्माके प्रति अपना विश्वास कम हो इस लिए डरती रहतीं हैं.
प्रकरण bada Kayamatnama

जो बैठा माहें सबन, एही खुदाए का है दुसमन
काफर करे बोहोतक सोर, तो मोमिनों सों चले जोर ।।१९

सब लोगोंके हृदयमें बैठा हुआ दुष्ट इब्लीस सभीका शत्रु बनकर परमात्मा प्राप्तिके मार्ग पर चलने नहीं देता है. नास्तिक लोग कितने ही शोर मचाएँ किन्तु ब्रह्मात्माओं पर उनका वश नहीं चलता है.
प्रकरण badakayamatnama

In Vrindavan we played रास.......

In Vrindavan we played Raas with Shri Krishna and Radha and they are none but Shyam and Shyama!

वृन्दावन तो जुगते जोयुं, स्याम स्यामाजी साथ।
रामत करसुं नव नवी, कांई रंग भर रमसुं रास।।२

... हे सखी ! हमने श्याम और श्यामाजीके साथ समस्त वृन्दावनकी शोभा भलीभाँति देख ली. अब हम विभिन्न प्रकारकी रामतें करेंगी और हृदयमें उल्लास भरकर रास खेलेंगी.
प्रकरण ११ श्री रास

We saw the splendour of the Vridavan along with Shyam Shyama and we will be playing new games and colorful plays of (variety of colors and types) Raas(that is full with nectar that is not dry)!

सिणगार सरवे सोहे, वालोजी खंत करी जुए।
जाणिए मूलगां रे होय, तारतम विना नव कोय, जाणे एह धन ।।४

सखियोंका शृङ्गार अति शोभायुक्त है. प्रियतम भी उन्हें उत्सुकतावश देख रहे हैं. मानों मूल (परमधाम) से ही यह प्रेम सम्बन्ध है किन्तु तारतम ज्ञाानके बिना कोई भी इस अखण्ड निधि (ब्रह्मात्माओं तथा श्रीकृष्णका प्रेम सम्बन्ध) को नहीं जान सकता.

The Brahmshritis are adorned beautifully and our beloved is looking with attention. This relationship is original(mool), without tartam, how can one understand this treasure!
प्रकरण १३ श्री रास
Shyamaji = Thakuraniji and Shyam Shri Krishna = Shri Raaj

उलास दीसे अंगों अंगे, श्री स्यामाजीने आज।
ठेक दई ठकुराणीजीए, जैने झाल्या श्री राज।।१५

आज श्रीश्यामाजीका अङ्ग-प्रत्यङ्ग उल्लसित दिखाई देता है. उन्होंने छलांग मारकर बड़ी चतुराईसे प्रियतम श्रीराजजीको पकड. लिया.
प्रकरण १५ श्री रास

Shri Thakurani is Shri Shyamaji and Shri Raaj is Shri Krishna ji. This is a chaupai from Shri Raas granth. The above chaupai is taking place at Yogmaya Raas mandal. The names Indravati sakhi who already has Tartam gyaan is narrating us the games the Brahmshritis are playing in Raas.

We are blessed with the words of Indravati Mahamati Prannath because of inspiration of our beloved Lord Shri Krishna who gave us the nijnaam mantra.

श्रीठकुरानीजी रूहअल्ला, महंमद श्रीकृस्नजी स्याम।
सखियां रूहें दरगाह की, सुरत अक्षर फिरस्ते नाम।।५३
इसी प्रकार श्रीठकुराणीजीको रूहअल्लाह एवं श्यामसुन्दर श्रीकृष्णजीको मुहम्मद कहा है तथा ब्रह्मात्माओंको दरगाहकी रूह एवं अक्षरब्रह्मकी सुरताको फरिश्ता नाम दिया है.
खुलासा फुरमानका (कुरानका स्पष्टीकरण)श्री खुलासा

पेहेलें भाई दोऊ अवतरे, एक स्याम दूजा हलधर।
स्याम सरूप है ब्रह्म का, खेले रास जो लीला कर।।२7

श्रीमद्बागवतके अनुसार व्रज मण्डलमें दो भाई अवतरित हुए. उनमें एक श्याम श्रीकृष्ण हैं और दूसरा हलधर बलभद्र हैं. उन दोनोंमें से श्याम ब्रह्मके स्वरूप हैं जिन्होंने रासलीला रचाई.
Shri Krishna - Shyam = Brahma!
It is the same Krishna(Shyam) came as nishkalank budhavatar!
श्री खुलासा

श्री प्रगटबानी -- श्री प्रकाश (हिन्दुस्थानी)
अब लीला हम जाहेर करें, ज्यों सुख सैयां हिरदे धरें ।
पीछे सुख होसी सबन, पसरसी चौदे भवन।।१

अब हम परमधामकी आनन्दमयी लीलाएँ प्रकट कर रहे हैं, जिनको हृदयमें धारण करने पर ब्रह्मात्माओंको अखण्ड सुखका... अनुभव होगा. इसके पश्चात् संसारके सभी लोगोंको भी आनन्द प्राप्त होगा. इस प्रकार इन लीलाओंका प्रकाश चौदह लोकोंमें फैल जाएगा.

अब सुनियो ब्रह्मसृष्ट बिचार, जो कोई निज वतनी सिरदार ।
अपने धनी श्री स्यामा स्याम, अपना बासा है निजधाम ।।२

हे परमधामकी शिरोमणि आत्माओ ! विचार पूर्वक सुनो. अपने धनी (आत्माके स्वामी) श्यामा-श्याम (श्यामावर श्याम) अक्षरातीत श्रीकृष्ण हैं और अपना मूल घर निजधाम - (परमधाम) है.

सोई अखंड अक्षरातीत घर, नित बैकुंठ मिने अक्षर ।
अब ए गुझ करूं प्रकास, ब्रह्मानंद ब्रह्मसृष्टि विलास ।।३

वही घर अखण्ड और अक्षरातीत कहलाता है और अक्षरब्रह्मके अन्तर्गत नित्य वैकुण्ठ माना गया है. अब मैं ब्रह्मसृष्टियोंके ब्रह्मानन्दमय नित्य विलासके गुह्य रहस्यको प्रकाशित करता हूँ.
Who is saying these vani? Out of mercy of Lord the Master of our soul is saying. This is the truth.
ए बानी चित दे सुनियो साथ, कृपा कर कहें प्राणनाथ ।
ए किव कर जिन जानो मन, श्रीधनीजी ल्याए धामथें बचन ।।४

हे सुन्दरसाथजी ! इन वचनोंको ध्यान देकर सुनिए, क्योंकि हमारे प्राणोंके नाथ सद्गुरु कृपा पूर्वक ये वचन कह रहे हैं. इनको कविताएँ मत समझना. साक्षात् धामधनी परमधामसे इन वचनोंको लेकर सद्गुरुके रूपमें पधारे हैं.

Shri Raj = Shri Krishna

Shri Raj = Shri Krishna
Piya = Shri Krishna
Piyuji = Shri Krishna
अखंड लीला अहेनिस, हम खेलें पिया के संग।
पूरे पीउजी मनोरथ, सदा नवले रंग।।४४
... हम सब सखियाँ रात-दिन श्री कृष्णजीके साथ अखण्ड लीला करतीं हैं. प्रियतम श्री कृष्णजी सदैव नई नई लीलाओं द्वारा हमारे मनोरथ पूर्ण करते हैं.
श्रीराज व्रज आए पीछे, व्रज वधू मथुरा ना गई।
कुमारका संग खेल करते, दान लीला यों भई।।४५
श्री राजजी (श्री कृष्णजी) जबसे व्रजमें आए, तबसे व्रजवधु (गोपिकाएँ) दूध-दधि बेचनेके लिए मथुरा नहीं गइंर्. कुमारिकाएँ (अक्षरकी सुरताकी सखियाँ) गोपियोंकी देखादेखी दूध दधि बेचनेका बहाना बनाकर श्री कृष्णजी के साथ खेल करतीं थीं. (उनका दूध-दधि लूटकर श्री कृष्णजी ग्वालोंको देते थे) इस प्रकार उनके साथ दानलीला होती थी.
प्रकरण १९
श्री कलश
(हिन्दुस्तानी)
Piyaji= Raaj = Shri Krishna

दूध दधी माखन ल्यावें, हम पियाजीके काज।
तित दधी हमारा छीन के, देवें गोवालोंको राज।।४८

हम सब सखियाँ प्रियतम श्री कृष्णजीके लिए ही दूध, दधि तथा मक्खन लातीं हैं. उस समय हमारे दूध-दधि छीनकर स्वयं श्री राजजी ग्वाल-बालोंमें वितरित कर देते हैं.
प्रकरण १९
श्री कलश
(हिन्दुस्तानी)

श्री परिक्रमा

पंथ होवे कोट कलप, प्रेम पोहोंचावे मिने पलक
जब आतम प्रेमसों लागी, द्रस्ट अंतर तबहीं जागी।।५३

करोड.ों कल्पोंका मार्ग क्यों हो, प्रेम उसे क्षण मात्रमें पार करवा देता है. जैसे ही आत्मा प्रेमरङ्गमें रङ्ग जाती है उसी समय उसकी अन्तर्दृष्टि खुल जाती है.
Love can cross the way of millions eons long in one moment. The path to God by other means will take millions of eons but by love one can reach instantly. When the soul awakens out of love, all the inner eyes will immediately be awakened (with this eye one can see God.)

जब आया प्रेम सोहागी, तब मोह जल लेहेरां भागी
जब उठे प्रेम के तरंग, ले करी स्याम के संग ।।५४

जब सुहागिनी आत्माओंको प्रियतमका प्रेम प्राप्त होता है तब उनके लिए भवसागरकी लहरें छिन्न-भिन्न हो जातीं हैं. जैसे ही उनके हृदयमें प्रेमकी तरङ्गें उठने लगतीं हैं वैसे ही वे अपने प्रियतम श्यामसुन्दरके समीप पहुँच जातीं हैं.

When the surrendered soul experiences the love of the beloved, then all the waves of ignorance due to attachment will vanish. When one experiences the vibration of love within, it takes the soul and unites with Shyam Shri Krishna.

पेहेचान हुती एते दिन, प्रेम नाहीं पिया सों भिन
पिया प्रेम पेहेचान जो एक, भेली होसी सबों में विवेक ।।५५

आज तक हमें यह ज्ञाात नहीं था कि यह प्रेम प्रियतम धनीसे भिन्न नहीं है. जो व्यक्ति प्रियतम धनी एवं प्रेमको एकरूपमें पहचानते हैं उनमें ही विवेक जागृत हुआ है ऐसा माना जाता है.
We did not know all these days, that love is not different from the beloved.(Love and beloved are one). Those who understand that the beloved Lord and love as one, they only have superior intelligence(Vivek)

जब चढे प्रेम के रस, तब हुए धामधनी वस
जब उपजे प्रेम के तरंग, तब हुआ धामधनीसों संग ।।५६

जब प्रेमरस हृदयमें उमड.ने लगेगा तभी धामधनी वशीभूत होंगे. जब हृदयमें प्रेमकी तरङ्गें उठने लगेंगी तभी धामधनीसे मिलन होगा.

When the juice of LOVE rises, then the beloved Lord of the ultimate abode also gets subdued. When the heart vibrates with love then one unites with the beloved Lord of Paramdham(nijdham) (Heart of soul)

श्री परिक्रमा

सब साहेदी दै जो हदीसों

सब साहेदी दै जो हदीसों, और अल्ला कलाम
सो साहेदी ले पीछा रहे, तिन सिर रसूल स्याम
I have tried my best, if you are interested I can give you more proofs these are few from kuljam swaroop saheb, there are too many of them for me to add when the people who challenged are no more showing up. There are beetak and other sant vani which I have not quoted at all!

चोपाई

खेल देखाऊं इन भांत का, जित झूठैमें आराम।
झूठे झूठा पूजहीं, हक का न जानेें नाम।।२२

सब मिल साख ऐसी दई, जो मेरी आतम को घर धाम ।
सनमंध मेरा सब साथसों, मेरो धनी सुन्दर वर स्याम ।।

इन खसम के नाम पर, कै कोट बेर वारों तन।
टूक टूक कर डार हूं, कर मनसा वाचा करमन।। 7

ऐसे धामधनीके नाम पर मैं मन, वचन और कर्मसे अपने शरीरको करोड.ों बार टुकड.े-टुकड.े कर सर्मिपत कर दूँ.
प्रकरण ९१ kirantan

यों चाहिए मोमिन को, रूह उडे सुनते हक नाम।
बेसक अरस से होए के, क्यों खाए पिए करे आराम।।१३९

नाम लेत इन सरूप को, सुपन देह उड जाए।
जोलों रूह ना इसक, तोलों केहेत बनाए।।११५

Mohamad = Shyam swaroop
लिखी अनेकों बुजरकियां, पैगंमरों के नाम।
ए मुकरर सब महंमदपें, सो महंमद कह्या जो स्याम।।३7

बडी मत सो कहिए ताए, श्रीकृस्नजीसों प्रेम उपजाए ।
मतकी मत तो ए है सार, और मतको कहूं विचार ।।५

बिना श्रीकृस्नजी जेती मत, सो तूं जानियो सबे कुमत ।
कुमत सो कहिए किनको, सबथें बुरी जानिए तिनको ।।६

मोटी मत वल्लभ धणी करे, ते भवसागर खिण मांहें तरे।
तेहने आडो न आवे संसार, ते नेहेचल सुख पामे करार।।८

मोटी मत ते कहिए एम, जेहना जीवने वल्लभ श्रीक्रस्न।
मतनी मत तां ए छे सार, वली बीजी मतनो कहुं विचार।।५

एह विना जे बीजी मत, ते तुं सर्वे जाणे कुमत।
कुमत ते केही कहेवाय, निछाराथी नीची थाय।।६

अक्षरातीत श्रीकृष्णमें प्रेम रखने वाली बुद्धिके अतिरिक्त जितनी भी अन्य मायावी बुद्धियाँ हैं उन्हें तुम कुबुद्धि समझना. कुबुद्धि उसे कहा जाता है जो सर्वाधिक नीच और हलके विचार वाली हो.
प्रकरण २१ श्री प्रकाश ((गुजराती))

नाम मेरा सुनते, और सुनत अपना वतन।
सुनते मिलावा रूहों का, याद आवे असल तन।।४९

सब साहेदी दै जो हदीसों

सब साहेदी दै जो हदीसों, और अल्ला कलाम ।
सो साहेदी ले पीछा रहे, तिन सिर रसूल न स्याम ।।77

जब कुरान, हदीस आदि कतेब ग्रन्थ तथा परब्रह्म परमात्माके वचन तारतम ज्ञाानने साक्षी दे दी है तो इस साक्षीको लेकर भी जो आत्माएँ स्वयं सर्मिपत होनेमें पीछे रहेंगी उन्हें सद्गुरु तथा परब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्णका संरक्षण प्राप्त नहीं होगा.
All the proves and witnesses from Hadish, Quran and the words of the Lord Allah Kalaam is given in the tartamsagar(Kuljamswaroopr), taking these witnesses those who stay behind and do not surrender themselves to Lord will be blessed by neither the Rasool(satguru) nor Shyam. Those who do not believe these words cannot be saved by the Satguru or Shyam.
श्री कयामतनामा (छोटा) प्रकरण १ चौपाई

deen Islam is our Saty Dharm (The true spiritual path)

सिर बदले जो पाइए, महंमद दीन इसलाम।
और क्या चाहिए रूहन को, जो मिले आखर गिरोह स्याम।।२५

अपना सिर देने पर भी यदि सद्गुरु श्री देवचन्द्रजी द्वारा र्नििदष्ट सत्य (धर्म) मार्ग एवं अपने धामधनी श्याम (श्रीकृष्ण) प्राप्त हो जाएँ तो इन आत्माओंको और क्या चाहिए ?
Offering your head -surrendering totally to Shri Devachandraji satguru who brought the true path what else does the celestial souls seek when the could unite with Shyam (souls unite with super soul!)

The Shyam - Shri Krishna is not the external physical body (Krishna, Mohamad, Devachandraji and Mahamati Prannath ) it is the master living within the soul and He is the master of all the souls. All the souls must in the end unite with Him!

Who is the Saheb mentioned in Holy Kuljam Swaroop saheb?

गिरो बचाई साहेब ने, तले कोहतूर हूद तोफान
बेर दूजी किस्ती पर, चढाए उबारी सुभान।।१२

इसी व्रज मण्डलमें इन्द्रकोपके समय श्रीकृष्णजीने ब्रह्मात्माओंको गोवर्धन पर्वतके नीचे सुरक्षित रखा था. इस प्रसङ्गको कुरानमें हूद तूफान कहा गया है. उस समय हूद पैगम्बरने अपने समुदायके लोगोंको कोहतूर पर्वतके नीचे सुरक्षित रखा था. दूसरी बार नूह तूफानके समय भी उन्होंने ही योगमायाकी नावमें चढ.ाकर उन्हें पार किया था.

prakaran 1 Chhota kayamatnama