पन्ना का प्राचीन नाम परना है। परना का अर्थ पर अर्थात अन्य और ना का अर्थ नहि होता है। अत: परना का सीधा अर्थ 'अन्य नही' अद्वैत है। श्री मुखवाणी और बीतक ग्रन्थो मे अद्वैत का भाव 'परमधाम' के लिये बार - बार आया है। जैसे :-
जो प्रदक्षिना निजधाम की, सातों सरुप श्री राज ।
सो सारे परना मिने, वास्ते सैयन के सुख काज ॥
अनेक ब्रह्मुनियो ने भी अपनी अपनी रचनाओ मे परना धाम को परमधाम कहा है। श्री क्रिष्ण प्रणामी धर्म के महान संत कवि मस्ताना जी ने भी परना मे ही परमधाम के दर्शन किये। वे अपने पंचक मे लिखते है:-
परना परमधाम देख, करिके परनाम देख ।
इश्क को आराम देख, सकल दु:ख भागे है ॥
महामति श्री प्राणनाथजी श्री बाईजूराज और ५००० सुन्दरसाथ को संग लेकर परना पहुंचे। तब पन्ना के महाराजा छत्रसाल जी ने श्री जी के अन्दर साक्षात श्री राजजी महाराज के और श्री बाईजू राजजी के अन्दर श्री श्यामा महारानी जी के दर्शन किये और कहा कि:-
जानि के मूल धनी अंगना अपनी, सो घर आये हमारे ।
श्री ठकुरानी जी सखियन सुधां, लेकर संग पधारे ॥
महामति श्री प्राणनाथजी परना पहुंचे कि शीघ्र ही उन्हे परमधाम के 'नूरी झण्डे' का स्मरण हो आया और उन्होने जागनी रास का नूरी झण्डा पन्ना मे फहरा कर मुक्तिपीठ श्री ५ पदमावतीपुरी धाम स्थापित किया। तब सभी सुन्दरसाथ ने परना मे परमधाम की अनुभूती कि और 'धाम के धनी की जय' का गगनभेदी नारा लगाया।
श्रीजी सुन्दरसाथ के स्वामी है। अत: उन्होने क्यामतनामा ग्रन्थ मे कहा है :-
इन देहुरी के सब चूमसी खाक, सिरदार मेहेरबान दिल पाक ।
परना में ही श्री मुखवाणी के खुलासा, खिलवत, परिक्रमा, सागर, सिनगार, मारफत सागर आदि ग्रन्थो का अवतरण हुआ। दिव्य परमधाम की गली गली की जानकारी सभी को हुई तथा तारतम ज्ञानरुपी नूरी झण्डे का दिव्य प्रकाश परमधाम तक पहुंचा। अत: कहा गया है:-
झण्डा पोहोंच्या अरस अजीम लग,
देखाए हक बडा अरस तमाम ।
श्री मुखवाणी मे जागनी रास लीला के अनेक दिव्य प्रसंगो का मंगलमय वर्णन है, जिसमे भी मुक्तिपीठ श्री ५ पदमावतीपुरी धाम की अलौकीक, अनुपम एवं असीम महिमा का पावन वर्णन मिलता है। स्वामी श्री लाल्दासजी ने भी अपनी बीतक मे परमधाम मे जो अष्ट प्रहर की दिव्य लीलाये होती है तद्नुसार ११ वर्ष तक पन्ना मे अष्ट प्रहर की लीलाओ का साक्षात अनुपम वर्णन कर पन्ना को परमधाम स्वरुप सिद्ध किया है।
मुक्तिपीठ श्री ५ पदमावती पूरी धाम की जागनी रास लीला नित्य और निरन्तर होती रहती है। अत: श्री क्रिष्ण प्रणामी धर्म मे पदमावती पुरी धाम का महत्त्व अनन्त, असीम, अपूर्व, अखंड और परम पावनकारी है। इस पुण्य धाम को ब्रह्मुनियो ने जागनी रास का मुलमिलावा कहा है। अत: इस पुरी का महत्व अन्य पुरिपो से अधिक है। शास्त्रो मे इसी पावन धाम को जगज्जीवो की मुक्ति का स्थन माना है।
श्री तारतम मंत्र के अवरण और पूर्णब्रह्म श्री प्राणनाथजी के प्राकट्य मात्र से श्री ५ नवतनपुरी धाम स्वयं नित्य, अखंड, नवतन एवं असीम महिमामय और अपूर्व महिमा मंडित है।
जागनी लीला भूमी और विश्वशान्ति का परम पावन आदेश देने वाली पावन भूमी श्री ५ महामंगलपुरी धाम सुरत भी सदा सर्वदा आनन्द मंगलमयी और अनन्त महिमामयी भूमी के रुप मे अखंड, नित्य एवं परमपावन महिमामंडित है।
अखंड मुक्तिपीठ श्री ५ पदमावती पुरी धाम परना अनन्त, असीम, अपूर्व, नित्यधाम की शोभा से विभूषित है। सर्वप्रथम नवतनपुरी धाम मे निजानन्द संप्रदाय का बीज उदय हुआ। महामंगलपुरी धाम मे वह बीज बडे व्रुक्ष के रुप मे विकसित हुआ और मुक्तिपीठ श्री ५ पदमावतीपुरी धाम पन्ना मे इस व्रुक्ष मे अनंत शोभायुक्त मुक्तिदायक मीठे मीठे फल लगे। जिनका आस्वादन कर चराचर धन्य धन्य हुआ ।
श्री राजजी की लाडली सखीयो को श्री चरनों में बंटी भावसार प्रणामी का प्रेम प्रणाम
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