परब्रह्म अक्षरातीत
को ही अपना इष्ट मानते हैं ।
वह अक्षरातीत युगल स्वरूप, परम
किशोर, अनादि, अविनाशी व
स्वलीला अद्वैत है ।
दिव्य ब्रह्मपुर ही हमारा धाम है ।
धाम धनी अक्षरातीत
की उपासना पतिव्रत साधन से
करते हैं ।
हकी स्वरूप श्री प्राणनाथ
जी की शोभा सुन्दरसाथ (परमहंसों)
व हद-बेहद ब्रह्माण्डों में
सर्वोपरि है ।
अपने पूजा स्थल में श्री प्राणनाथ
जी (परब्रह्म अक्षरातीत)
द्वारा अवतरित
वाणी 'श्री कुलजम स्वरूप'
को उन्ही का वाङमय स्वरूप
मानकर पूजा करते हैं ।
सभी पूजा स्थल वास्तव में ज्ञान
मंदिर हैं, जिनका मूल प्रयोजन
श्री मुख वाणी के पठन-पाठन व
चि��्तन-मनन को प्रोत्साहित
करना है ।
श्री प्राणनाथ जी के वाङमय
स्वरूप के अतिरिक्त
किसी अन्य स्वरूप, व्यक्ति,
मूर्ति, चित्र, समाधि या जड़
वस्तु की पूजा निषेध है ।
निजानन्द सम्प्रदाय के
सभी अनुयायियों (सुन्दरसाथ)
को परमधाम
की आत्मा (ब्रह्मसृष्टि) मानकर
उनकी सेवा करना ।
सभी सुन्दरसाथ समान हैं । उनमें
आध्यात्मिक पद, आयु, जाति,
क्षेत्र, लिंग या आर्थिक
स्थिति का भेद मान्य नहीं है ।
आत्मिक दृष्टिकोण व
आध्यात्मिक
योग्यता को ही प्राथमिकता देना ।
परमधाम की आत्माएँ
जो अभी संसार में ही मग्न हैं, उन
तक
ब्रह्मवाणी को पहुँचाना ही जागनी है
। जागनी सभी सुन्दरसाथ
का नैतिक धर्म व वास्तविक
सेवा है ।
जिस प्रकार दीपक से दीपक
जलाया जाता है, उसी प्रकार कोई
भी सुन्दरसाथ
किसी भी जिज्ञासु
व्यक्ति को प्रबोधित करके
(तारतम देकर) सुन्दरसाथ के समूह में
सम्मिलित कर सकता है ।
किसी भी शारीरिक कर्मकाण्ड
(जप, परिक्रमा, उपवास, भजन-
नृत्य, आदि) पर विश्वास न करके
आत्मिक भाव से ज्ञानार्जन, प्रेम
व चितवनि के मार्ग पर चलना ।
सबसे पूजनीय स्थान श्री ५
पद्मावती पुरी (पन्ना, मध्य प्रदेश)
को माना जाता है ।
धूम्रपान, मांस, मदिरादि नशीले
पदार्थ व तामसी भोजन का सेवन
वर्जित है । विषय-वासना, झूठ व
चोरी से संयम करना आवश्यक है ।
श्री प्राणनाथ जी के आवेश से
अवतरित श्री कुलजम स्वरूप
वाणी व श्री बीतक साहेब पूज्य
ग्रन्थ हैं ।
सभी आयु वर्ग के सुन्दरसाथ एक-
दूसरे को समान मानते हुए परस्पर
अभिवादन में प्रणाम का प्रयोग
करते हैं।
शारीरिक संस्कारों (जन्म,
विवाह, मृत्यु, आदि)
को भी सादी रीति से निभाना ।
कोई विशेष कर्मकाण्ड वर्जित
है।
जो हमारे साथ बुराई करे उसके साथ
भी भलाई करना ।
धर्म के अन्य सामान्य
सिद्धान्तों का पालन ।
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