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Wednesday, May 9, 2012

श्री ५ महामंगलपुरी धाम, सूरत (गुजरात)

मंगलपुरी महिमा बडी, है सबका गुरुद्वार ।
चले जगावन साथ को, श्री प्राणनाथ भरतार ॥

सदगुरु श्री देवचंद्रजी महाराज के धामगमन के पश्चात महामति श्री प्राणनाथजी ने सुन्दरसाथ की जागनी के लिए महान धर्म – अभियान प्रारम्भ किया। वे दीव बन्दर, ठ्तठानगर, बसरा, मसकत, अब्बासी, नलिया आदि स्थानो मे जागनी करते हुए अपने धर्मप्रिय सुन्दरसाथ को संग लेकर वि. सं. १७२९ अषाढ क्रिष्ण १४ को महामंगलपुरी धाम, सूरत पहुंचे। वहा १७ माह तक रहकर वे वैष्णवो और वेदान्तियो के साथ शास्त्रार्थ करके विजयी हुये। परिणाम स्वरुप भीम भट्ट, श्याम भट्ट, नवरंग स्वामी जैसे प्रणामी धर्म के महान वि्द्वान प्राप्त हुये। सूरत मे ही कलशवाणी के १२ प्रकरण और ५०४ चौपाइया अवतरित हुई, जिनके माध्यम से महामतिजी ने विश्व मे अखंड शान्ति स्थापित करने के लिए दावे के साथ महासंकल्प किये और विश्व महामंगल कीइ घोषणा की। तब से सूरत प्रणामी समाज मे 'श्री ५ महामंगलपुरी धाम’ के नाम से प्रसिद्ध है। उन्होने अपने संकल्प को चरितार्थ करने हेतु महाभियान प्रारम्भ किया। तब सूरत से ५०० धर्मप्राण सुन्दरसाथ सर्वस्व समर्पित करके श्रीजी के साथ निकल पदे। अत: सुन्दरसाथ के प्रति अप्रतिम प्रेम दर्शाते हुये वे कलसवाणी मे कहते है :-

हवे दु: ख न देऊंफूल पांखडी, सीतल द्रस्टे जोंऊ ।
सुख सागर मां झीलावी, विकार सघला धोऊं ॥ प्र. १२/२४

श्री ५ महामंगलपुरी धाम विश्व शांति के लिये स्वयं अदभुत, अनुपम एवं क्रान्तिकारी रहा है। जागनी अभियान का प्रमुख केन्द्र और सुन्दरसाथ मिलन का दिव्य प्रेरणा – स्रोत भी रहा है।
श्री महामति जी की महामंगलपुरी धाम मे हुई घोषणा को दोहराते हुए अपने बीतक ग्रन्थ मे स्वामी श्री लालदासजी कहते है:-

तब श्रीजी साहेबजी ने कहा, जो कोई लूला पांगला साथ ।
इन्द्रावती न छेडे तिनको, पहुंचावे पकड हाथ ॥ बी. प्र. ३१/२१

सदगुरु श्री देवचन्द्रजी महाराज का आदेश संदेश याद दिलाकर उन्होने बिहारीजी को कहा कि जाति – पांति के भेदो को समाज से दूर करके सबको एक सूत्र मे बांधना है और जाति विहीन समाज की रचना करना जरुरी है। जाति विहीन समाज – रचना का सरल मार्ग प्रस्तुत करते हुये वे कहते है:-

जित जो अंकुर निजधाम का, गिनिए ऊंच नीच न तित ।
ए राह श्री देवचन्द्रजी ए कही, आतम द्र्ष्टि कि इत ॥ बी. प्र. ३१/५९

जब श्रीजी ने बिहारीजी को सदगुरुजी के सिद्धांतो के मुताबिक धर्म – जागनी करने के लिए लिखा तो बिहारीजी आग बबूले हो गये और शीघ्र ही श्रीजी को धर्म और साथ मे से वहिष्क्रुत कर दिया। इसी समय सूरत के सुन्दरसाथ ने नि्र्णय लिया कि निजानन्द स्वामी अपनी मूल शक्तियो के साथ श्रीजी के दिल मे विराजमान है। इसलिये श्रीजी को यहा से विश्व जागनी का कार्य कर देना चाहिये। यह सोचकर सुन्दरसाथ ने श्रीजी के चरणो मे प्रार्थना की और भीमभाई के नेत्रुत्व मे श्रीजी को महामंगलपुरी धाम की गादी पर प्रतिष्ठित किया और श्रीजी के साथ श्री बाईजू राजजी को सिंहासन पर बिठाकर भीमभाई और सभी सुन्दरसाथ ने मिलकर “युगल स्वरुप" की आरती उतारी। इस परम पावन द्रुश्य को देखकर नवरंग स्वामी अत्यंत प्रभावित हुये। उसी समय उन्होने परमधाम मे विराजमान साक्षात श्री राजजी महाराज और श्री श्यामाजी महारानी जी के युगल स्वरुप के दर्शन किये और गदगद होकर नाचने लगे तथा उनके मुंह से वाणी नि: स्रुत हुई:-

श्री प्राणनाथ निजमूलपति, श्री मेहेराज सुनाम ।
तेज कुंवरि श्यामा जुगल को, पल पल करुं प्रणाम ॥ 

इस तरह महामंगलपुरी धाम मे भी परमधाम की आनन्दमयी लीलाए होती रही।
अत: श्री क्रिष्ण प्रणामी धर्म मे श्री ५ महामंगलपुरी धाम की महिमा और माहात्म्य अनुपम, अपूर्व, नित्य और महामंगलमय रही है।

प्राणाधार धर्मप्रेमी सुंदरसाथजी को मेरा कोती कोती प्रेम प्रणाम    
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