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Saturday, June 9, 2012

॥ श्री अरजी छोटी ॥

निसदिन ग्रहीये प्रेमसों, श्री जुगल स्वरुप के चरण ।
निर्मल होना याहीसों, और धाम बरनन ॥
इन विध नर्कसे छुटिये, और उपाय कोई नहीं ।
भजन बिना सब नर्क है, पचि पचि मरिये मांही ॥
एक आतम धनी पहेचानिये, निर्मल एही उपाये ।
श्री महामत कहे समझ धनीके, ग्रहिये सों प्रेमें पाये ॥
श्री महामत कहे महेबुबजी, अब दिजे पट उडाये ।
नैना खोलके अंकभर, दुल्हा लिजे कंठ लगाय ॥
कंठ लगाये कंठसु, किजे हांस विलास ।
वारणे जाय श्री इन्द्रावती, पियाजी राखियों कदमों की पास ॥
सदा सुख दाता श्री धाम धनी, काहा कहुं ए बात ।
श्री महामति जुगल स्वरुप पर, अंगना बल बल जात ॥
गुण अवगुण सबके माफ किये, किये पिछले जौन ।
साहेब सों सनमुख सदा, साधी साचो तौन ॥
अवगुण काढे गुण ग्रहे, हारसें होय जीत ।
साहब सौ सनमुख सदा, ब्रह्म स्रुष्टि ए रीत ॥
ए सुख शब्दातीत के, क्यों कर आवे जुबान ।
बालेंसे बुढापन लगे, मेरे शीरपर खडे सुभान ॥
नजरसें नां काढी मुझे, अवलसें आज दिन ।
क्यों कहुं मेहेर मेहेबुबकी, जो करत उपर मोमिन ॥
क्यों मेहेर मुज पर भई, जो दिलमें थी एति सक ।
में जानी मोज मेहेबुबकी, वह देत आप माफक ॥
कोई देत कसाला तुमको, तुम भला चाहियों तिन ।
सुरत धामकी ना छोडियों, सुरत पीछे फिराईयों जीन ॥
हमतो हाथ हुकम के, हक्के हाथ हुकम ।
इत ह्मारा क्या चले, ज्यों जानो त्यों करो खसम ॥
चाहो तो राजी रखो, या चाहो तो दलगिर ।
या पाक करों हादी पना, या बेठावों मांहे तकसीर ॥
पीयाजी तुम तुमारे गुण ना छोडे, मैं तो बोहोत करी दुष्टाई ।
मैं तो करम किये अती निचे, पर तुम राखी मूल सगाई ॥
श्री धनीजी के गुण की मैं क्यों कहो, इन अवगुण पर एते गुण ।
श्री महामत कहे इन दुल्हें पर, मैं वारी वारी दुलहीन ॥
पीयाजी तुमारी साहेबी, अपनी राखों आप ।
इश्क दिजे मोहें आपनों, मैं तासों करुं मिलाप ॥
तुम दुल्हां मैं दुल्हीन, और ना जानु बात ।
इश्क सों सेवा करुं, सबो अंगो साक्षात ॥
मेरे दिलकी देखीयों, दरदना क्छु इश्क ।
ना सेवा ना बंदगी, ए हमारी बितक ॥
अब हुकम धणीके, सब बीध दै पोहोंचाये ।
चेत सको सो चेतियों, लिजो आतम जगायें ॥
अब दिल दलगीर छोडदो, होत तेरा नुकसान ।
जानतहों गोविन्द भेदा, याके पिठ दीजे आसान ॥
अब भली बुरी दुनिकी, जीन लेवो चित ल्याये ।
सुरत पक्की करों धाम की, पर आतम धणी संग मिलाये ॥
सुख दु:ख डारों आगमें, ए जो जुथी माया के ।
पिंड ना देखों ब्रह्मांड, राखो सुरत धाम धणी जे ॥
अब जो कोई होय ब्रह्म स्रुष्टि की, सो लीजो बचन ए मान ।
अपने पोहोरे जागीये, समैया पोहोंच्या आन ॥
सुता हो, सो जागीयों, जागा बैठा होय ।
बैठा ठाढा होईयों, ठाढा पाऊं भर आगे सोय ॥
युं तैयारी किजीयों, आगे करनी हे दौड ।
सब अंगो इश्क लेयके, निकसों ब्रह्मांड फोड ॥
श्री महामति कहे पिछे न देखीयें, न किसी की परवाहें ।
एक धाम हिरदेमें लेयकें, उदाय दीजीये अरवाय ॥
श्री महामत कहे अरवाहें अर्ससे, जो कोई आई होय उतर ।
सो इन स्वरुप के चरण लेयके, चलिये अपने घर ॥
पिया तुमहों तैसी कीजीयों, मैं अर्ज करुं मेरे पिऊंजी ।
हम जैसी तुम जीन करो, मेरा तलफ तलफ जाय जीवजी ॥
जीवरा तो जीवे नहीं, क्यों मिते दिलकी प्यासजी ।
तुम बिना में किनसों कहों, पिया तुम हो मेरी आसजी ॥
आस बिरानी तो करूं, पिया जो कोई दूसरा होयजी ।
सब बिध पियाजी साम्रथ, दीन रैन जात रोय रोयजी ॥
जन्म अंधजो हम हती, पिया सो तुम देखिते कियेजी ।
जब तुम आप दिखाओगे, तब देखुं नैन नजरजी ॥
ए पुकार पिया सुनके, ढिल करो अब जिनजी ।
खीन खीन खबर जो लिजीयों, मैं अर्ज करुं दुलहीनजी ॥
एती अर्ज मैं तो करुं पिया, बीच पडी अंतरायजी ।
सो अंतराय आडी टालके, गुलहा लीजे कंठ लगायजी ॥
कंठ लगाई कंठसुं, कीजे हांस बीलासजी ।
वारणे जाय श्री इन्द्रावती, पिया राखों कदमों के पासजी ॥
तुम दुलहा मैं दुलहीन, और ना जानु बातजी ।
इश्क सों सेवा करुं, सबो अंगो साक्षातजी ॥
सदा सुख दाता श्री धाम धणी, मैं कहां कहुं इन बातजी ।
श्री महामति जुगल किशोर पर, वारी अंगना बल बल जातजी ॥

प्रणाम सुंदरसाथजी

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