परिणाम स्वरूप श्री राधा जी जीवन भर श्री क्रुष्ण के विरह में तडपती रहीं परन्तु श्री क्रुष्ण जी से भेंट नहीं हुई। यह केवल श्री क्रुष्ण जी का स्वरूप भेद ही था जिसके कारण श्री राधा जी एवं उनकी सह अंगनाओं का श्री क्रुशःण जी से मिअलन नहीं हो पाया, अन्यथा गोकुल और मथुरा में केवल ५/६ कोस की दूरी थी जिसे पार करके श्री राधा और क्रुष्ण जी मिल सकते थे परन्तु एसा नहीं हुआ। व्रुहद सदा शिव संहिता में इस शंका का समाधान करते हुए शिव जी कहते है :-
अर्थात : जिस स्वरूप ने महारास के पश्चात सात दिन और चार दिन लीला क्रमश: व्रुन्दावन एवं मथुरा में की, उसने कंस वध कर के ग्वाल भेष नंद बाबा को लौटा दिया और स्वयं राजसी श्रुंगार किया। तत्पश्चात जो मथुरा एवं द्वारिका में ११२ वर्ष लीला की और भूमि का भार हलका किया, वह विष्णु भगवान की लीला थि। इस प्रकार उपरोक्त श्लोक की अन्तिम पंक्ति "एवं गुह्यतर: प्रोक्त: क्रुष्णलीला रस: त्रिधा:" की व्याख्या करते हुए कहा गय है। ***********************************************************************
अर्थात : देवकी के गर्भ से जन्म लेने वाला और जरासिंध के युद्ध काल से बैकुंठ गमन तक क्रुष्न लीला बैकुंठ वासी विष्णु भगवान की है। जिस बाल स्वरूप को वासुदेव जी मथुरा से गोकुल में ले गए और जो अक्रूर के साथ मथुरा गए और वहां पर हाथी तथा मुष्टिक आदि पहलवानों (मल्ल - राज) एवं कंस का वध किया वह गोलोक वासी श्री क्रुष्ण का स्वरूप है किन्तु जिस श्री क्रुष्ण स्वरूप ने ११ वर्ष ५२ दिन तक **नंद घर में प्रवेश करते हुए ब्रज में और तत्पश्चात रास मण्डल में रास लीला की, वह स्वरूप पूर्ण ब्रह्म परमात्मा की आवेश शक्ति से सम्पन्न था। इसकी पुष्टि हमें आलम दार संहिता में इस प्रकार मिलती है।
" तस्मात एकादस समा द्विपंचादस दिनानि क्रुष्णो
व्रजातु संयातो लीलां क्रुत्वा स्व आलयम " ५६/११४
[**मूल सूरत अक्षर की जेह जिन छह्या देखूं प्रेम ।
कोई सूरत धनी को ले आवेश, नंद घर कियो प्रखेस ॥ (प्रका. ग्र.)]
अर्थात : श्री क्रुष्ण जी ने ११ वर्ष ५२ दिन तक ब्रज में दिव्य लीला कर तत्पश्चात अपने आवेश को लेकर अपने अखंड परमधाम को चले गए।
उपरोक्त तीनों स्वरूपों की लीला "प्रकाश ग्रन्थ" के अन्तिम प्रकरण "प्रगट वाणी" में सुचारू रूप से दर्शायी गई हैं जिसे क्रमश: क,ख,ग भागों में, संक्षिप्त में प्रस्तुत की जा रही है :-
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दो भुजा स्वरूप जो स्याम, आतम अक्षर जोश धनी धाम ।
यह खेल देख्या सैयां सबन, हम खेले धनी भेले आनंद धन ॥
बाल चरित्र लीला जो वन जै विध सनेह किए सैयन ।
कई लिए प्रेम विलास जो सुख सो केते कहुं या मुख ॥
अर्थात : चतुर्भुज स्वरूप विष्णु भगवान के आवेश पर जब वसुदेव जी दो भुजा स्वरूप वाले बालक को लेकर नंद घर (गोकुल) पहुंचे उस स्वरूप का व्रुतांत इस प्रकार है :
पारब्रह्म एवं ब्रह्मात्माओं की प्रणय लीला देखने की इच्छा जो अक्षर ब्रह्म ने की थी, उसी सुरत ने अक्षरातीत (धाम धनी) का आवेश लेकर नंद के घर प्रवेश किया। अत: दो भुजा स्वरूप वाले श्याम जो गोकुल में श्री क्रुष्ण रूप से जाने गए उनमें अक्षर ब्रह्म की आतम और अक्षरातीत पार - ब्रह्म का आवेश था। इस संसार का खेल हम सब ब्रह्मा्त्माओं ने देखा एवं पार - ब्रह्म सच्चिदानंद स्वरूप अक्षरातीत परमात्मा की आवेश शक्ति से सम्पन्न श्री क्रुष्ण जी ने गोकुल गाम तथा वन में मधुर लीलाएं करके अपनी आत्माओं को स्नेह प्रदान किया।
दिन अग्यारह ग्वाला भेस तिन पर नही धनी को आवेस ।
सात दिन गोकुल में रहे चार दिन मथुरा के कहे ॥
गज मल्ल कंस को कारज कियो उग्रसेन को टीका दियो ।
काराग्रह में दरसन दिए जिन आए छुडाए बंध थे तिन ॥
वसुदेव देवकी के लोहे भान उतारयो भेष कियो अस्नान ।
जबराज बागे को कियो सिंगार तब बल पराक्रम ना रहे लगार ॥
अर्थात : यहां तक गो -लोक वासी श्री क्रुष्ण की लीला है जिसने कंस वध किया और उग्रसेन को राज सिंहासन पर आसीन किया।
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AAPKA SEVAK
BANTI KRISHNA PRANAMI.
PREM PRANAM.