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Tuesday, May 8, 2012

श्री क्रिष्ण महामंत्र " निजनाम "

जिन गोकुलको  तुम अखंड कहत हो, सो तुमारी द्रष्टें न आया ।
सुकजी के वचन में प्रगट लिखा है, पर तुमको किने न बताया ॥ (किरंतन १० / २)

जिस गोकुल लीलाको तुम अखंड कहते हो और उसे इस बूमण्डल मे ही दिखाते हो, तुम्हारी द्रुष्टि (समझ) मे नही आई है। शुकदेवजी ने श्री मदभागवत मे स्पष्ट कहा है किन्तु आज तक तुम्हें किसीने नही समझाया है।


कौन तुम और कहां तें आए, और कहां है तुमारा घर ।
ए कौन भोम कहां श्री क्रिष्ण जी, पाओगे कौन तर ॥ (किरंतन १२ / ५)

परन्तु तुम कौन हो, इस संसार में कहां से आए हो, तुम्हारा मूल घर कहां है, यह संसार क्या है, श्री क्रिष्णजी कहां है और उन्हें किस प्रकार प्राप्त कर सकोगे? इन प्रश्नो पर विचार तो करो।


आज सांच केहेना सो तो काहूं ना रुचे, तो भी कछुक प्रकासूं सत ।
सतके  साथीको   सतके   वान  चूभसी,  दुष्ट  दुखासी   दुरमत ।
                                                     अखंड सुख लागियो ॥ १    

आज के युद में परिस्थिति एसी हो गई है कि सत्य बात कहे जाने पर किसीको सुहाती नही, तथापि कुछ सत्य बाते में कहूंगा। सत्य के साथी ब्रह्मस्रुष्टिको तो यह सत्य भाएगा, परन्तु इसके विपरित चलने वालोंको अवश्य ठेस पहुंचेगी। चलो, अखंड सुख की ओर बढें।

         
 वेदने पुरान सास्त्र सब उपजे, पीछे भारत परव अठार ।
दाझ न  मिटी तिन व्यासकी, पीछे उदयो भागवत सार ॥ २

वेद व्यासजी ने चारो वेदो का वर्गीकरण किया और कथानक शैली द्वारा उनका अर्थ समझाने के लिए पुराणो की रचना की। अन्त मे अठारह पर्व वाले महाभारत की रचना की, तथापि उनकी दाह शान्त नही हुई और अन्त मे नारदमुनिकी प्रेरणासे सबके साररुप श्री मदभागवत की रचना की।
 

इत व्रुन्दावन रासलीला रातडी अखंड, खेले पींउ गोपी जन ।
तो उधव संदेसे किन पर ल्याइया, कहो किनने किए रुदन ॥ ६

वल्लभाचार्यजी ने स्पष्ट कहा है कि व्रुन्दावन मे महारात्रि मे अखण्ड रासलीला चल रही है, श्री क्रिष्ण जी गोपियों के साथ रास खेल रहे है। अब तुम बताओ कि उद्धवजी श्री क्रिष्णजी का सन्देश लेकर किन गोपियो के पास गए ? किन्होने श्री क्रिष्णजी के वियोगमे रुदन किया ? (रास लीला अखण्ड होनेसे मूल गोपिया तो रास खेल रही है फिर वे गोपिया कौन है, जिनके पास उद्धवजी सन्देश लेकर गए है)


व्रज रास लीला दोऊ नित कही, खेले दोऊ लीला बाल किसोर ।
तो मथुरा आए कंस किनने मारया, ए कौन भई तीसरी लीला और ॥ ११

व्रज और रास दोनो लीलाओको अखण्ड कहा है। व्रज मे श्री क्रिष्ण जी के बाल स्वरुप की लीला है। जब कि रास मे उन्होने किशोर लीला की है। तो प्रश्न यह उपस्थित होता है कि बाल और किशोर क्रिष्ण दोनो व्रज और रास मे नित्य लीला कर रहे है, तो फिर मथुरा जाकर कंसको किसने मारा ? यह तीसरी लीला कौन सी है ?


तुम आंकडी न  पाई इत अखंड कह्या, तो ए न खुले रे द्वार ।
तुम समझे नही वानी सुकदेव की, तो हिरदे रह्यो रे अंधकार ॥ १३

तुम यह रहस्य समझ ही नही पाए हो कि व्रज और रास की लीलाको क्यों अखण्ड कहा है ? तुम्हारे मनके द्वार अभी तक नही खुले है। क्योंकि तुमने शुकदेवजीकी वाणी (भागवत) को यथार्थ रुप से समझा नही है, इसीलिए तुम्हारे ह्रदय मे अज्ञान का अन्धकार छाया हुआ है।
(किरंतन प्रकरण १३)


वैस्नवो मोह थकी निध न्यारी दीधी, आपणने अविनास ।
नाम तत्व कह्यु श्रीक्रिष्णजी, जे रमे अखंड लीला रास ॥ ७ ॥ किरंतन प्र – ६४

हे वैष्णवो ! वल्लभाचार्यजी ने हमे इस मोहसागर से परेका अखंड अविनाशी धन (ज्ञान) दिया और कहा कि श्री क्रिष्ण नाम ही परम तत्व है, जो श्री क्रिष्णजी अखंड रास की लीला करते है।
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