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Sunday, May 6, 2012

श्री क्रिष्ण महामंत्र "निजनाम"

श्री सागर

श्री क्रिष्ण लीला की दूसरी साक्षी लेकर शुकदेव मुनि अवतरित हुये। उन्होंने परमधाम से सर्वप्रथम ब्रज मंडल में अवतरित हुई ब्रह्मात्माओ की ग्वाही दी है :-

फुरमान ल्याया दूसरा, जाको सुकजी नाम ।
दै तारतम गवाही ब्रह्मस्रुष्टि की, जो उतरी अब्बल से धाम ॥ (८/५)

परमधाम के आत्म – सम्बंध की पहचान करवाने के लिए पूर्णब्रह्म श्री क्रिष्ण जी ने इस जगत मे ब्रज और रास की दिव्य लीलाए की। इस प्रकार अपनी संबंधी ब्रह्मात्माओ को अपार सुख प्रदान करने के लिए ही वे स्वयं इस महीमामयी रात्रि (ब्रज, रास और जागनी) मे तीन बार आए है:-
सर्व प्रथम उन्होंने ब्रज लीला मे अपनी आत्माओ को परमधाम के प्रेम का अनुभव कराता और दूसरी बार रास की लीला मे भजनानंद लीला के द्वारा चिन्मय प्रेम के परम गोपनीय गूढ सहस्यो को स्पष्ट किया :-

हकें निसबत वास्ते, कै बंध माहें खेल ।
सब सुख देने निसबत को, तीन बेर आए माहें लैल ॥
अब्बल देखाया लैल मे, निसबत जान इसक ।
दूसरी बेर दे्खाइया, गुझ इसक मुतलक ॥ (सागर १४/७, ८)

अखंड परमधाम मे धामधनी की ब्रह्मांगनाओ का स्नेह एसा है की उनका चित्त प्रेम और आनंद से सदा परिपूर्ण है – जिसका वर्णन इस अनित्य देह की जिह्वा से कदापि नही हो सकता है :-

इन धाम के जो धनी, तिन अंगो का सनेह ।
हेत चित आनंद इनका, क्यों कहू जुबा इन देह ॥ (सागर ११/३२)

श्री राजजी महाराज अपने ह्रदय मे स्थित जिस दिव्य प्रेम के गूढ रहस्य को मूल मिलावा मे बैठ कर प्रकट किया था–उसी मूल मिलावा के प्रेम को अपने ह्रदय मे धारण कर ब्रह्मात्माए ब्रज और रास के ब्रह्मांड मे अवतरित हुई थी और परमधाम का अमुल्य उपहार स्वरुप उस प्रेम को प्रकट किया है :-

इसक गुझ दिल हक का, सो करे जाहेर माहें खिलवत ।
सो खिलवत ल्याए इत आसिक, करी इसकें जाहेर न्यामत ॥ (१२/१९)

ब्रह्मात्माए तथा ईश्वर स्रुष्टि ब्रज और रास की इस महिमामयी ‘’लैल तुल कद्र'’ की रात्रि मे किस लिए अवतरित हुई तथा ‘’ कुन – हो जा'’ एसा कह कर यह सम्पूर्ण स्रुष्टि किसने तथा किस लिए उतपन्न की, यह सुधि किसीको भी नही है । सो इस प्रेम के रहस्य को ‘निजनाम' महामंत्र रुपी कुंजी – तारतम ज्ञान ने सम्पूर्ण विवरण सहित प्रकट किया जिससे सारे सन्देह समाप्त हो गये कि इस महिमामयी रात्रि मे ब्रह्मात्माए मूल मिलावा के प्रेम को लेकर तीनो ब्रह्मांडो ब्रज, रास और जागनी मे अवतरित हुई :-

गिरो रुहें फिरस्ते लैल में, किन वास्ते आए उतर ।
कुंन केहेते खेल पैदा किया, ए किन ने किन खातर ॥
ए बल देखो कुंजीय का, जिन बेवरा किया बेसक ।
ए भी बेवरा देखाइया, जो गैब खिलवत का इसका ॥ (१३/१९, ३१)
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प्रेम प्रणाम सुंदरसाथजी..................
 

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