Search

Friday, May 4, 2012

श्री क्रिष्ण महामंत्र " निजनाम "

श्री खिलवत 
तारतम ज्ञान के माध्यम से श्री महामति जी ने कहा कि परमधाम में परब्रह्म श्री क्रिष्ण जी, श्यामाजी और ब्रह्मात्माओ में परस्पर प्रेम को लेकर विवाद सर्वदा होता रहता था - 

दायम रबद होत है, रुहें हादी हक ।
सब कोई कहे अपना, बडा है इसक ॥ 
एक समें हक हादी रुहें, मिल किया मजकूर ।
रब्द किया इस्क का, सबों आप अपना जहूर ॥ ( खिलवत १६/७)

 तब श्री राजजी ने सभी ब्रह्मात्माओ को बताया कि मैं तुम्हारा और बडी रुह श्यामाजी का भी प्रेमी अर्थात आशिक हू।  मेरे अखंड परमधाम कि पातशाही और महिमा का तुम्हें पता नही है । इसीलिए तो तुम सबको अपना - अपना प्रेम बडा दिखायी दे रहा है । 

परमधाम का प्रभुत्व और एक दिली का प्रेमभाव ब्रह्मात्माओ को देखाने के लिए सर्वप्रथम अनादि अक्षरातीत श्री क्रिष्ण ने अपने मन में लिया :-
एक पातसाही अरस की, और वाहेदत का इसक ।
सो देखलावने रुहन को, पेहेले दिल मे लिया हक ॥ (खिलवत १६/१७)

तब परवरदिगार श्री राज जी ने अपने अंगनाओ को जगत की मायामयी अपरा लीला दिखाने के लिए सर्वप्रथम ब्रजमंडल में और दूसरी बार योगमाया के ब्रहमांड ' रास मंड्ल ' में भेजकर परमधाम के अनन्त अखंड सुख प्रदान किये । तीसरे खंड - जागनी के ब्रहमांड में फज्र  - अरुणोदय (जागनी रास) का अनन्त सुख प्रदान किया:-
कई सुख दिये लैलत कदर में, जो अब्वल दो तक्कार ।
सुख दिए फजर तीसरे, कई सुख परवरदिगार ॥ (खिलवत ८/२०)

न्यामत ल्याए सब रात में, लैलत कदर के माहें ।
बुलाए ल्याओ रुहें फजर को, वतन कायम है जाहें ॥ (खिलवत ६/६)

इस प्रकार श्रीजी महाराज कहते हैं कि नि:संदेह परमधाम से ब्रह्मात्मायें अपने प्रियतम श्री क्रिष्ण के साथ इस जगत में तीन बार (ब्रज, रास और जागनी के तीनो ब्रह्मांडो में) अवतरित हुई है:-
सक ना अरवाहें अरस की, जो तीन बेर उतरे ।
लैल में आये जिन वास्ते, कछू सक ना रही ए ॥ (खिलवत ६/२५)

प्रणामजी सभी सुंदरसाथजी को
 

No comments:

Post a Comment