Search

Friday, April 20, 2012

कृपानिध सुंदरवर स्याम

कृपानिध सुंदरवर स्याम, भले भले सुंदरवर स्याम।

उपज्यो सुख संसार में, आए धनी श्री धाम।।१

श्री श्यामाजीके वर श्याम-श्रीराजजी कृपाके सागर तथा अत्यन्त सुन्दर हैं. ऐसे धामके धनीके प्रकट होने पर संसारमें अखण्ड सुखका उदय हुआ.
...
प्रगटे पूरन ब्रह्म सकल में, ब्रह्म सृष्टि सिरदार।

ईस्वरी सृष्टि और जीव की, सब आए करो दीदार।।२

ब्रह्मसृष्टियोंकी शिरोमणि श्यामाजी पूर्णब्रह्मका आवेश लेकर इस संसारमें सद्गुरुके रूपमें पधारी हैं. ईश्वरीसृष्टि एवं जीवसृष्टि सभी आकर उनके दर्शन करें.

नित नए उछव आनंद में, होत किरंतन सार।

वैस्नव जो कोई षट दरसनी, आए इष्ट आचार।।३

धामके सुन्दरसाथ नित्य नवीन उत्साहके साथ धनीजीके गुणानुवादके लिए कीर्तनोंका गान कर आनन्द मङ्गलके साथ उत्सव मनाते हैं, वैष्णव, षट्दर्शनके ज्ञााता और विभिन्न इष्टों तथा आचारको मानने वाले लोग भी दर्शनके लिए आने लगे.

भोजन सरवे भोग लगावत, पांच सात अंन पाक।

मेवा मिठाई अनेक अथाने, विध विध के बहु साक ।।४

सभी मिलकर मेवा-मिठाई पक्वान्न सहित विभिन्न प्रकारकी सामग्रियाँ, भाँति-भाँतिके अचार, नाना प्रकारके शाक तैयार कर धामधनीको भोग लगाते हैं. (पाँच-सातका तात्पर्य छप्पन्न प्रकारका व्यञ्जन (भोग) और एक जल इस प्रकार सतावन (५) प्रकारके भोग भी माना जाता है).

अठारे बरन नर नारी आए, साजे सकल सिनगार।

प्रेम मगन होए गावें पिया के, धवल मंगल चार।।५

अठारह वर्णके स्त्री-पुरुष सुन्दर वस्त्राभूषणसे सजकर आते हैं. धनीजीके प्रेमानन्दमें मग्न होकर, धामधनीके गुणानुवादके साथ विविध गीतों, मङ्गलाचरणका गान करते हैं.

कै गंधर्व गुन गावें बजावें, कै नट नाचनहार।

कै रिषी मुनी वेद पढत हैं, वरतत जै जै कार।।६

कई सङ्गीतशास्त्री (गन्धर्व), गवैये विभिन्न प्रकारके वाद्ययन्त्रोंकी सुन्दर सुरावलीके साथ धनीजीके गुणोंका गान करते हैं, नर्तक नृत्य करते हैं, ऋषि-मुनि वेद मन्त्रोंका पठन-पाठन करते हैं, इस प्रकार सर्वत्र जय-जयकार होती है.

जब की माया ए भई पैदा, ए लीला न जाहेर कब ।

व्रज रास और जागनी लीला, ए जो प्रगटी अब।।

जबसे यह माया (मायावी खेल) उत्पन्न हुई है, तबसे आज तक यह ब्राह्मी लीला प्रकट नहीं हुई थी. अब यह लीला व्रज, रास और जागनीके रूपमें नवतनपुरीमें प्रकट हो गई है.

चारों तरफों चौदे लोकों, ए सुध हुई सबों पार।

बाजे दुंदभी भई जीत सकल में, नेहेचल सुख बेसुमार ।।८

चौदह लोकोंकी चारों दिशाओंमें ब्राह्मी लीलाकी सुधि हुई, चारों ओर विजयकी दुन्दुभी बजने लगी, सर्वत्र विजय पताका फहराने लगी. इस प्रकार सभीको अपार तथा अखण्ड सुखका अनुभव हुआ.

जोत उदोत कियो त्रिलोकी, उडयो मोह तत्व अंधेर।

वरस्यो नूर वतन को, जिन भांन्यो उलटो फेर।।९

धनीजीके अखण्ड ज्ञाानकी ज्योतिका प्रकाश तीनों लोकोंमें फैल जानेसे मोह तत्त्वका अन्धकार मिट गया. परमधामके दिव्य ज्ञाानके तेज (नूर) की वर्षा हुई, जिससे आवागमनरूपी मायावी बन्धनोंका नाश हो गया.

प्रगटे ब्रह्म और ब्रह्मसृष्टि, और ब्रह्म वतन।

महामत इन प्रकास थें, अखंड किए सब जन।।१०

इस संसारमें पूर्णब्रह्म परमात्मा, ब्रह्मसृष्टि और ब्रह्मधाम (परमधाम) की पहचान प्रकट हो गई. महामतिने इस अखण्ड ज्ञाानके द्वारा संसारके सभी जीवोंको अमरत्व प्रदान किया है.

प्रकरण ५7 श्री किरन्तन

No comments:

Post a Comment